सेबी ने डेरिवेटिव सेगमेंट के शेयरों के डायनेमिक प्राइस बैंड सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए नए नियम जारी किए हैं। इससे अचानक शेयर प्राइसेज में आए उछाल, प्राइसेज में गड़बड़ी रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही रिस्क मैनेजमेंट भी बढ़ेगा। डायनेमिक प्राइस बैंड का मतलब एक दायरे से है, जिसमें स्टॉक का प्राइस किसी दिन ऊपर या नीजे जा सकता है। अचानक स्टॉक की कीमतों में बहुत ज्यादा तेजी या गिरावट रोकने के लिए डायनेमिक प्राइस बैंड का सिस्टम शुरू किया गया था। डेरिवेटिव सेगमेंट के स्टॉक्स के लिए प्राइस बैंड की शुरुआत पिछले ट्रेडिंग सेशन के क्लोजिंग प्राइस के 10 फीसदी से होती है।
अभी के नियम के मुताबिक, शेयर की कीमत 9.90 फीसदी या ज्यादा चढ़ने या उतरने की स्थिति में प्राइस बैंड की फ्लेक्सिंग के लिए हर साइड से कम से कम 5 यूनिक क्लाइंट कोड (यूसीजी) से 25 ट्रेड होने चाहिए। नए नियम में 5 यूसीसी की संख्या बढ़ाकर कम से कम 10 कर दी गई है। इनके तरफ से अब 50 ट्रेड जरूरी होंगे। नए नियम का असर यह होगा कि प्राइस बैंड के एडजस्टमेंट के लिए अब ज्यादा ट्रेडिंग वॉल्यूम जरूरी होगा। इससे बाजार में उतारचढ़ाव की स्थिति में किसी स्टॉक के प्राइस पर किसी सिंगल ट्रेड का असर घटेगा।
फ्लेक्सिंग प्रोसेस के मौजूदा सिस्टम में किसी स्टॉक के प्राइस बैंड में एक दिन में प्राइस बैंड में 5 फीसदी का उतारचढ़ाव कई बार हो सकता है। नए सिस्टम में 15 मिटन के कूलिंग पीरियड के साथ 5 फीसदी बदलाव के बाद पहले दो फ्लेक्सेज की इजाजत पहले की तरह जारी रहेगी। लेकिन बाद की फ्लेक्सिंग के लिए 30 मिनट और 60 मिनट के कूलिंग पीरियड के साथ 3 फीसदी और 2 फीसदी के छोटे इंक्रीमेंट जरूरी होंगे। इसका असर यह होगा कि मार्केट पार्टिसिपेंट्स को नए इंफॉर्मेशन की प्रोसेसिंग के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा।
नए नियम के मुताबिक, अगर किसी एक दिन में प्राइस बैंड फ्लेक्स होता है दूसरे साइड के बैंड को भी उतने ही अमाउंट के साथ एडजस्ट करना होगा। इससे स्टॉक में एक दिशा में ज्यादा मूवमेंट को रोकने में मदद मिलेगी। इससे मार्केट में स्थिरिता आएगी। सेबी के नियमों में बदलाव का मकसद मार्केट को इनवेस्टर्स के सुरिक्षित और स्टेबल बनाना है। सेबी के नए नियम इनवेस्टर्स के लिए फायदेमंद हैं। शेयरों की कीमतों में ज्यादा उतारचढ़ाव नहीं होने से वे उनकी कीमतों के बारे में अंदाजा लगा सकेंगे।