राजनीति

Ram Mandir Inauguration: विपक्ष को झटका देने की तैयारी कर चुका है RSS, कमंडल के जरिए मंडल को साधने की कोशिश

अयोध्या में बना रहे भव्य राम मंदिर का 22 जनवरी को प्राणी प्रतिष्ठा होना है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। इसके अलावा इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश भर से अतिथियों को निमंत्रित भेजा जा रहा है। जिस तरीके से गेस्ट लिस्ट को तैयार किया गया है, उसके मुताबिक 150 से अधिक समुदायों के प्रतिनिधि को अयोध्या में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा गया है। इसको लेकर अलग तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है। कुछ लोग इसे संघ परिवार द्वारा दूसरे राम मंदिर आंदोलन के रूप में देख रहे है। राम मंदिर समारोह को लेकर संघ जो लोगों में संदेश देने की कोशिश कर रहा है वह यह है कि हिंदू समाज को जात-पांत से ऊपर उठकर एक दूसरे के साथ आने की कोशिश करनी चाहिए। 

विश्व हिंदू परिषद के आलोक कुमार के मुताबिक इस सूची में बड़ी संख्या में दलित और आदिवासी समुदाय के संत को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा सबसे गरीब परिवारों के 10 लोग भी हैं जो आज भी झोपड़िया में निवास करते हैं लेकिन राम मंदिर निधि के लिए 100 रुपये का योगदान दिया है। इतना ही नहीं, राम मंदिर के निर्माण में लगे कार्यकर्ताओं को भी मेहमानों की सूची में शामिल किया गया है। इस आयोजन को पूरी तरीके से देश के आयोजन के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। इसके जरिए कमंडल के साथ-साथ मंडल को भी साधने की कोशिश में लगा है। 

गेस्ट लिस्ट में जो 4000 संत और 25000 प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल है उसको इस तरीके से तैयार किया गया है कि हिंदू समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों को प्रतिनिधित्व मिल सके। इसे संघ की सामाजिक समरसता अभियान से जोड़ा जा रहा है। भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्ष पूरी तरीके से मंडल की राजनीति को उछालने की कोशिश कर रहा है, इसी कड़ी में संघ अब हिंदू समाज को जोड़ने में लगा हुआ है जिसका फायदा भाजपा को आने वाले चुनाव में हो सकता है। 

विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि मंदिर आंदोलन का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना था। उन्होंने कहा कि जब राम मंदिर के लिए शिला पूजन की चर्चा हो रही थी (1984 में), तो सभी ने सोचा कि या तो जगतगुरु शंकराचार्य या (विहिप के दिवंगत अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष) अशोकजी (सिंघल) इसे करेंगे। हालाँकि, अशोकजी ने इनकार कर दिया और यह उस समुदाय के एक व्यक्ति द्वारा किया गया जिसके लिए भगवान राम ने 14 वर्षों तक संघर्ष किया था। इसलिए, कामेश्वर चौपालजी को चुना गया। दलित विहिप नेता चौपाल को नवंबर 1989 में तत्कालीन विवादित स्थल पर मंदिर की आधारशिला रखने के लिए भी चुना गया था।

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