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NLC India और Coal India कभी नहीं होगी प्राइवेट, सरकार ने कर दिया क्लियर, लेकिन यहां अटकी है बात

सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि कोल मिनिस्ट्री के तहत जितनी भी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (PSUs) हैं, वे कभी भी निजी कंपनियों के हाथों में नहीं जाएंगी। ये बातें कोयला और खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मनीकंट्रोल से बातचीत में कही उन्होंने कहा कि सरकार का इरादा कोल मिनिस्ट्री के तहत आने वाली सभी सरकारी कंपनियों पर अपना स्वामित्व बनाए रखने का है। उन्होंने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब इसकी चर्चा जोरों पर है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय कोल मिनिस्ट्री के NLC India (पूर्व नाम Neyveli Lignite Corporation) समेत कुछ सरकारी कंपनियों में 10 फीसदी तक की हिस्सेदारी बेच सकती है। हालांकि कोल मिनिस्टर ने अब स्पष्ट कर दिया कि कोल मिनिस्ट्री के तहत आने वाले एनएलसी इंडिया और कोल इंडिया (Coal India) हमेशा भारत सरकार की रहेगी।

NLC India में सरकार की तगड़ी हिस्सेदारी

सरकार की एनएलसी इंडिया में 79.2 फीसदी हिस्सेदारी है। पिछले साल 13 जुलाई 2023 को मनीकंट्रोल के साथ इंटरव्यू में कंपनी के चेयरमैन और एमडी प्रसन्ना कुमार मोतुपल्ली (Prasanna Kumar Motupalli) ने कहा था कि यह पब्लिक सेक्टर में सरकार की सबसे अधिक हिस्सेदारी वाली कंपनियों में शुमार है। प्रसन्ना ने उस समय कहा था कि सरकार का फोकस अब विनिवेश की बजाय एसेट मोनेटाइजेशन पर है और अब तक इसमें सरकार की हिस्सेदारी बेचने की कोई योजना नहीं है।

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अब कोल मिनिस्टर ने ये तो कहा है कि कोल मिनिस्ट्री के तहत आने वाली किसी भी कंपनी पर सरकार का मालिकाना हक नहीं जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऑफर फॉर सेल (OFS) के तहत सरकार की 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला वित्त मंत्रालय लेगी। लिग्नाइट और कोयला निकालने वाली एनएलसी इंडिया घरेलू मार्केट में लिस्टेड है और इसका मार्केट कैप करीब 32,585 करोड़ रुपये है।

Disinvestment को लेकर सरकार की क्या है योजना

मनीकंट्रोल की 5 जनवरी 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्री एनएलसी इंडिया, मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (IRFC) में ऑफर फॉर सेल (OFS) के जरिए 10-10 फीसदी तक हिस्सेदारी बेच सकती है। यह काम वित्त वर्ष 2024 के विनिवेश प्रक्रिया के तहत 31 मार्च के पहले तक हो सकता है। इस वित्त वर्ष में 51 हजार करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य है और अब तक सरकार 10,051.73 करोड़ रुपये ही जुटा सकी है। अब इन तीन कंपनियों में अगर सरकार 10-10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने में सफल होती है तो इनके शेयरों के मौजूदा भाव के हिसाब से सरकार को 21200 करोड़ रुपये मिल सकते हैं।

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