पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों को लेकर चल रहे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा है कि भ्रामक विज्ञापनों को बढ़ावा देने वाले मशहूर हस्तियों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है। यह फैसला भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर उस याचिका पर आया है, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद पर भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था।
जिम्मेदारी से काम करना अनिवार्य
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि विज्ञापनदाता, विज्ञापन एजेंसियां या सपोर्ट करने वाले लोग झूठे और भ्रामक विज्ञापन जारी करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। पीठ ने आगे कहा कि पब्लिक हस्तियां, इन्फ्लुएंसर, मशहूर हस्तियों आदि द्वारा सपोर्ट किसी प्रोडक्ट को बढ़ावा देने में एक लंबा रास्ता तय करता है और विज्ञापनों में किसी भी प्रोडक्ट का सपोर्ट करते समय उनके लिए जिम्मेदारी से काम करना अनिवार्य है।
गाइडलाइन्स का भी उल्लेख
निर्णय में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) की गाइडलाइन्स का भी उल्लेख किया गया है, जो इन्फ्लुएंसर को भुगतान किए गए विज्ञापनों के बारे में पारदर्शी रहने का आह्वान करते हैं। यह फैसला विज्ञापन जगत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और भ्रामक विज्ञापनों को रोकने में सहायक होगा। अब मशहूर हस्तियों और इन्फ्लुएंसर को किसी भी प्रोडक्ट का सपोर्ट करने से पहले सावधानी बरतनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे जिस प्रोडक्ट का सपोर्ट कर रहे हैं उसके दावे सत्य हैं।
‘भ्रामक विज्ञापन हटाने के लिए क्या किया’
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाते हुए पूछा कि जिन प्रोडक्ट्स पर बैन लगा दिया गया है, उनके भ्रामक विज्ञापन अभी भी वेबसाइटों और अन्य चैनलों पर क्यों उपलब्ध हैं। कोर्ट ने कहा कि आपने इन विज्ञापनों को हटाने के लिए क्या किया है? यह चिंताजनक है कि बैन प्रोडक्ट्स के विज्ञापन अभी भी लोगों को गुमराह कर रहे हैं। पतंजलि के वकील ने जवाब दिया कि कंपनी भी इस मुद्दे को लेकर चिंतित है और अगली सुनवाई में पूरा प्लान लेकर आएगी। उन्होंने बताया कि कंपनी ने पहले ही विज्ञापन एजेंसियों को पत्र लिखकर विज्ञापन हटाने के निर्देश दिए हैं और इंटरनल लेवल पर भी कार्रवाई की जा रही है।