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Loksabha Election 2024: मोदी को जिताने और हराने के नाम पर है ये लोकसभा चुनाव, वोट यात्रा में जानें क्या है वोटर्स का मूड

‘अब मैं किसको बता दूं कि कौन जीतेगा। तीन नेता मैदान में हैं। मोदी तो हैं ही। अखिलेश की पार्टी भी बहुत पीछे नहीं है। बहन जी भी किसी से कम नहीं है।’ सिधौली के बाजार में सब्जी खरीद रहे बिपिन रावत चुनाव के सवाल पर पहले कुछ खुलकर नहीं कहते हैं, लेकिन फिर वह कहते हैं कि मोदी थोड़ा आगे चल रहे हैं। हालांकि, बहन जी भी कमजोर नहीं हैं। मुसलमान और यादव मतदाता अखिलेश के ही साथ है। बाजार में धनंजय मिश्र मिल जाते हैं। वह बहुत ही मुखर हैं। उनका मानना है कि राजनीति और चुनाव के बारे में जितना ज्यादा वह जानते हैं और कोई नहीं जानता। वह कहते हैं कि अब चुनाव के बारे में क्या-क्या बताएं। हर बात की जानकारी है, लेकिन कोई पूछे तो।

जब मैं उनसे चुनाव पर सवाल करता हूं, तो तमाम समीकरण बताते हुए कहते है कि मोदी आगे निकल रहे हैं, लेकिन चिंतू सिंह यह कहकर धनंजय की बात को सिरे से खारिज कर देते हैं कि ‘लड़ाई तो अखिलेश ही लड़’ रहे हैं। इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी है कि कौन जीतेगा कौन हारेगा। अब भाई चुनाव के बारे में जनता ही तय करेगी। लेकिन मुझे तो अखिलेश बहुत मजबूत लग रहे हैं।

चुनावी हवा की परत-दर-परत खुली

चुनावी यात्रा के लिए जब पहली बार लखनऊ से निकला, तो चुनावी हवा की परत-दर-परत खुलनी शुरू हुई। यह यात्रा पूरे प्रदेश में चलेगी और ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आता जायेगा और भी रोचक और दिलचस्प होगी। 2024 का लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) न सिर्फ रोचक हैं, बल्कि यह जंग करो या मरो की है।

खैराबाद के जगन पाल कहते हैं कि मोदी की घेराबंदी तो खूब की गई है, लेकिन मोदी को घेर पाना थोड़ा मुश्किल है। चुनावी यात्रा शुरू होते ही ये साफ हो गया कि मोदी को जीताने और हराने के नाम पर ही यह चुनावी लड़ाई हो रही है। इस लड़ाई के केंद्र में मोदी हैं।

कांग्रेस अखिलेश के पीछे बैठ गई है

आगे बढ़ता हूं, तो सीतापुर में रामखेलावन मिल जाते हैं। वह बताते हैं कि यहां पर कांग्रेस नहीं है, जो भी आधार है, वो अखिलेश यादव का है, लेकिन कांग्रेस अखिलेश के पीछे बैठ गई है। कम लोग ही हैं, जो कांग्रेस के नाम पर वोट दे रहे हैं। मैदान में तो मोदी हैं, योगी हैं, अखिलेश है और मायावती हैं। अब आप किसी को भी वोट दें, लेकिन कांग्रेस का वोट बहुत ज्यादा नहीं है।

सीतापुर के राधेलाल गुप्ता यह कहकर स्थिति को साफ कर देते हैं की हवा अभी बन रही है, लेकिन जो भी बन रही है, वो मोदी के समर्थन और विरोध के नाम पर ही बना रही है।

चुनाव के पहले चरण को समझने के लिए बरेली और पीलीभीत तक पहुंचना था। पीलीभीत में बहुत ही रोचक लड़ाई हो रही है। इसलिए पहले पीलीभीत को देखने का निर्णय किया, लेकिन चुनावी मिजाज क्या है, इसके लिए सड़क के किनारे लोगों से बातचीत करता रहा। गांव और कस्बो में लोगों से बात करने के बाद एक ही निष्कर्ष में पहुंचा कि वास्तव में 2024 का लोकसभा चुनाव एक बार फिर मोदी को सत्ता मे लाने और मोदी को सत्ता से बाहर करने का चुनाव है।

कानून व्यवस्था से खुश हैं लोग

रास्ते पर लोगों से बात करने पर एक बात साफ हो जाती है कि लोग बीजेपी का नाम कम लेते हैं। वे या तो कहते हैं कि मोदी और योगी को वोट देंगे या कहते हैं कि फूल को देंगे या अखिलेश और मायावती को। एक दौर था, जब BJP की सभा में नारा लगता था, चप्पा-चप्पा भाजपा। यह दौर अटल और आडवाणी का था, लेकिन यह नारा अब हवा के साथ कहीं उड़ गया है और उसकी जगह योगी और मोदी ने ले ली है।

सीतापुर का मैगलगंज कस्बा रसगुल्ले के लिए बहुत मशहूर है। रास्ते में लोग रसगुल्ला खाने के लिए यहां कुछ देर रुकते हैं और वहीं पर एक दुकान में मिल गए रमेश कनौजिया। वह कहते हैं कि मुझे तो लग रहा है की चुनाव में जितना मोदी का असर है, उससे कम योगी का भी नहीं है। लोग यह नाप तोल रहे हैं कि वोट किसे दिया जाए। सवाल कानून व्यवस्था का है, इसलिए योगी का नाम भी बार-बार आता है।

वह कहते हैं की अब किस क्षेत्र में कौन से समीकरण है यह नहीं मालूम। लेकिन इस चुनाव में कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा है और लोग सरकार से खुश हैं। लोगों की बातों से यह साफ होने लगता है कि इस चुनाव में योगी का नाम और काम भी बहुत बड़ा फैक्टर है। शाहजहांपुर के बाहर हाईवे की एक ढाबे में बैठे आशु कहते हैं कि अब इस बात की चिंता नहीं है कि अपराधी किसी को परेशान करेगा। अपराधियों की कमर तोड़ दी गई है।

साइकिल भी बहुत तेज दौड़ रही है

वह इसका क्रेडिट सरकार को देते हैं और उसके समर्थक भी है। लेकिन देवेंद्र मौर्य अखिलेश के समर्थक हैं और कहते हैं कि मोदी के लोग यह गलत समझ रहे हैं कि लड़ाई बहुत आसान है। यह समझ लीजिए लड़ाई आसान नहीं है। साइकिल भी बहुत तेज दौड़ रही है। वह BSP सुप्रीमो मायावती को सिरे से खारिज कर देते हैं। लेकिन उनकी बात और कोई मानने को तैयार नहीं।

इसी मुद्दे पर बहस शुरू हो जाती है यह बहस भी मोदी और योगी के समर्थन और विरोध में बंट जाती है। इसी बीच लोगों से पूछ लेता हूं कि BSP का क्या हाल रहेगा चुनाव में। बहस में शामिल लोग बताते हैं कि उनका अपना सजातीय वोट कहीं नहीं गया है और कहीं-कहीं अन्य जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में चले जाएंगे। इसलिए उनको हल्के में लेना उचित नहीं है।

बसपा पिछले चुनाव में 10 लोकसभा सीटों में जीती थी, लेकिन इस बार लगता नहीं कि BSP इस संख्या तक पहुंच पाएगी। फिर भी यह सभी मानते हैं की BSP भी लड़ाई का एक केंद्र है। इसीलिए लड़ाई त्रिकोणीय हो रही है। वास्तव में जमीन पर देखने से यह साफ हो जाता है कि BSP वोट तो पाएगी, लेकिन निर्णायक स्थिति में पहुंच जाएगी यह लगता नहीं है। मायावती ने इसी स्थिति को भांपते हुए बड़ी संख्या में मुसलमान और अति पिछड़ों को टिकट दिया है। धीरे-धीरे यात्रा आगे बढ़ती है और बरेली के पास जा पहुंचता हूं। यहां पर चुनाव का असर दिखने लगा है। चाय और पान की दुकानों में चुनाव की चर्चा चल रही है।

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