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Loksabha Election: कांग्रेस के घोषणा पत्र को लागू करने के लिए खर्च करने पड़ सकते हैं 15 लाख करोड़ रुपये

Loksabha Election: कांग्रेस के घोषणा पत्र को लागू करने के लिए खर्च करने पड़ सकते हैं 15 लाख करोड़ रुपये

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में ‘न्याय’ को केंद्र में रखा है। कांग्रेस के अपने ट्वीट में 5 न्याय स्तंभों का जिक्र किया है- युवा न्याय, नारी न्याय, किसान न्याय, श्रमिक न्याय और हिस्सेदारी न्याय। राहुल गांधी ने वादा किया है कि उनकी सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक हर साल मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की कानूनी गारंटी देगी।

इसके अलावा, महालक्ष्मी स्कीम के तहत हर गरीब परिवार को 1 लाख सालाना कैश ट्रांसफर किया जाएगा और महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) के तहत मजदूरी को बढ़ाकर 400 रुपये किया जाएगा। साथ ही, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत पेंशन को बढ़ाकर 1,000 रुपये प्रति महीना किया जाएगा और छात्रों का कर्ज माफ किया जाएगा।

मनीकंट्रोल ने अर्थशास्त्रियों से बात कर यह पता लगाने की कोशिश की है कि अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में आती है, तो इन वादों को पूरा करने के लिए उसे किस तरह की वित्तीय और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उनके मुताबिक, चुनाव प्रचार के दौरान वादे करना और उन्हें पूरा करने में जमीन-आसमान का फर्क है। उदाहरण के तौर पर, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत पेंशन को 200-500 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये प्रति महीना करने का वादा किया गया है। सिर्फ इस स्कीम को लागू करने पर सरकारी खजाने पर 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

एक वरिष्ट अर्थशास्त्री ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया, ‘ इस वादों को पूरा करने के लिए न सिर्फ बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधनों की जरूरत होगी, बल्कि फिस्कल मोर्चे पर चुनौतियों से निपटने के लिए अलग तरह की पॉलिसी बनाने की भी जरूरत होगी।’

कांग्रेस ने महालक्ष्मी स्कीम के तहत गरीब परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला को 1 लाख रुपये सालाना देने का वादा किया है। परिवार में बुजुर्ग महिला नहीं होने पर सबसे वरिष्ठ सदस्य को यह रकम देने की बात कही गई है। इससे सरकारी खजाने पर 2 लाख से 5 लाख करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।

अगर कांग्रेस पार्टी महालक्ष्मी स्कीम को 5 साल तक चलाने का फैसला करती है, तो उसे एक 1 साल में कम से कम 2.148 करोड़ परिवारों को 1 लाख रुपये देना होगा। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के मुताबिक है। मोटे तौर पर कैश ट्रांसफर के लिए सरकार को हर साल 2.1 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होगे। गरीब परिवारों की संख्या बढ़ने की स्थिति में यह आंकड़ा 5 लाख करोड़ रुपये तक भी पहुंच सकता है।

हेल्थ वर्कर्स का भुगतान

कांग्रेस के घोषणा पत्र के मुताबिक, अग्रणी पंक्ति में शामिल हेल्थ वर्कर्स, मसलन आशा वर्कर्स का मेहनताना दोगुना करने का वादा किया गया है। मोटे तौर पर अनुमानों के मुताबिक, इससे सरकारी खजाने पर 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। वित्त वर्ष 2020-21 के सालाना आशा अपडेट के मुताबिक, भारत में 9.83 लाख आशा वर्कर्स हैं, जबकि इसके लिए टारगेट 10.35 लाख वर्कर्स का है।

आशा वर्कर्स को परफॉर्मेंस के आधार पर मेहनताना मिलता है और इन्हें ऐसे वालंटियर की कैटगरी में रखा गया है, जिनके भुगतान के लिए केंद्र या राज्य सरकार की कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं है। आशा वर्कर्स को नेशनल हेल्थ मिशन के तहत 60 कामों के आधार पर मिलने वाले इंसेंटिव के जरिेय कमाई होती है। राज्य सरकारें आशा वर्कर्स के लिए इंसेंटिव तय करती हैं, जो 1 रुपये से 5,000 रुपये के बीच होता है।

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