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Lok Sabha Elections 2024: जयंत चौधरी के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई चुनौती, RLD को फिर से हसिल करनी होगी अपनी खोई हुई जमीन

Lok Sabha Elections 2024: जयंत चौधरी के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई चुनौती, RLD को फिर से हसिल करनी होगी अपनी खोई हुई जमीन

Lok Sabha Elections 2024: वह भी दौर था, जब पश्चिम उत्तर प्रदेश (Western UP) में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) की तूती बोलती थी। इसके पीछे किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) की वह थाती थी, जिसे उन्होंने जीवन में कमाया था। लेकिन अब RLD के लिए राजधानी दिल्ली से लगी यह उपजाऊ भूमि भी कठिन चुनौती बनी हुई है। सवाल यह है की क्या RLD अपने पुराने रुतबे को हासिल कर पाएगा या नहीं? क्योंकि अब अपना दबदबा हासिल करने के लिए चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) के पास समय कम है। इस क्षेत्र में अब बीजेपी का दबदबा है और वो भी तब, जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट और मुस्लिम बहुल है।

जयंत चौधरी सतर्क हैं और वह अपनी चुनौतियों को समझ भी रहे हैं। वह जानते हैं कि इस बार परिणाम देने ही होंगे, क्योंकि उनकी जमीन अगर इस बार भी खिसकी तो आगे कठिनाई ही कठिनाई है। RLD के नेता राजकुमार सांगवान कहते हैं कि जयंत चौधरी ने इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत जमीन तैयार की है और उसके परिणाम दिखेंगे। समाजवादी पार्टी ने RLD के लिए सात सीट छोड़ी हैं। वैसे तो अब तक इस बात की घोषणा नहीं की गई है कि वे कौन सी सात सीट हैं, जिस पर RLD लड़ेगा, लेकिन जानकारों का कहना है की बागपत, कैराना, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, बिजनौर, मथुरा सीट RLD के लिए छोड़ी गई हैं।

बड़े चौधरी यानी चौधरी चरण सिंह ने मुसलमान और पिछड़े वर्ग का जो मजबूत समीकरण तैयार किया था, वो धीरे-धीरे अब बिखर चुका है। जयंत चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह पुराने समीकरणों को दुरुस्त करें और उन वर्गों को एक बार फिर जोड़ें, जो कभी चौधरी साहब के साथ हुआ करते थे और जिनके बल पर चौधरी चरण सिंह देश की राजनीति के धुरी बने हुए थे। हालांकि, स्थितियां फिलहाल बहुत अनुकूल नहीं है।

RLD के ही नेता बताते हैं कि चौधरी साहब ने किसानों को साथ जोड़ा था, लेकिन अब किसान के नाम पर जाट मतदाता ही बचा है और दूसरे वर्ग पर बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। चौधरी ने इस बार वो सारे प्रयास किए हैं, जिससे उन्हें दूसरे वर्गों का भी समर्थन हासिल हो जाए, लेकिन सफलता-असफलता का आकलन चुनाव परिणाम से ही तय होगा।

अगर जमीनी हालात का अध्यन करें, तो साफ हो जाता है कि जाटों की सहानुभूति और समर्थन चौधरी परिवार के साथ था और है भी, लेकिन जाट मतदाता भी RLD को उसी सीट पर वोट देता है, जहां पर उसका प्रत्याशी होता है यानि हैंड पंप चुनाव चिन्ह होता है। RLD कि वो जमीनी पकड़ नहीं है कि वो अपने वोट अपने सहयोगी पार्टी को ट्रांसफर करा दे।

हालत यह है की 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद चौधरी अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों ही अपने अपने क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। 2014 में अजीत सिंह अपने सबसे मजबूत किले बागपत से चुनाव लड़े और हारे। यह वो सीट है, जिस पर चौधरी चरण सिंह एकतरफा जीत हासिल करते थे। इस हार के बाद 2019 में उन्होंने सामाजिक दृष्टि से अपने लिए सबसे सुरक्षित सीट मुजफ्फरनगर चुनी थी और इसके बावजूद उन्हें BJP प्रत्याशी ने हरा दिया।

यह तब हुआ था जब 2019 में सपा बसपा और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन था। यही नहीं उनके बेटे जयंत चौधरी भी 2014 में जाट बहुल सीट मथुरा से हारे और 2019 के लोकसभा चुनाव में बागपत से हार गए। बागपत लोकसभा सीट के बारे में यह धारणा रही है कि उस सीट पर चौधरी परिवार का कोई भी सदस्य खड़ा हो जाए उसे कोई हरा नहीं सकता।

साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में चौधरी परिवार की हार ने तमाम राजनीतिक पंडितों के आकलन को झुठला दिया। इन सीटों पर सारे समीकरण ध्वस्त हो गए। दिलचस्प तथ्य यह है कि लोकसभा चुनाव में RLD की दृष्टि में सबसे मजबूत सीटों पर इन दोनों दिग्गजों की हार तब हुई, जब सारे के सारे समीकरण उनके पक्ष में थे और यह माना जा रहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पिता और पुत्र दोनों लोकसभा पहुंच जाएंगे। फिर भी ऐसा नहीं हुआ। बाद में चौधरी अजीत सिंह का निधन हो गया और अब पार्टी के कमान पूरी तरह जयंत चौधरी के हाथ में है।

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी BSP और RLD के बीच चुनावी गठबंधन था। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी RLD और सपा का गठबंधन था। उस चुनाव में, तो सारे समीकरण सपा और RLD के पक्ष में ही थे। किसान आंदोलन का असर था। चौधरी चरण सिंह का नाम लेकर RLD किसानों के बीच भी जा रही थी। मुस्लिम मतदाता किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश से योगी सरकार को हटाने के लिए एकजुट था। सपा और RLD दोनों ही एकजुट हो कर किसान पंचायत कर रहे थे।

बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भविष्यवाणी कर रहे थे कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बीजेपी का सफाया हो जाएगा, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आए, तो RLD और सपा दोनों को झटका लगा। बीजेपी ने यहां अच्छी सफलता हासिल की। जिस समीकरण के बल पर सपा और RLD यहां भारी सफलता का दावा कर रहे थे, उसने काम नहीं किया और मोदी और योगी की लहर ने एक बार फिर सपा और RLD गठबंधन को जमीन दिखा दी।

इससे एक संकेत साफ गया की जो जमीन कभी चौधरी परिवार की हुआ करती थी, उस पर मोदी और योगी ने कब्जा कर लिया है। RLD के लिए यह बड़ा झटका था। अब 2024 का लोकसभा चुनाव आ गया है। जयंत चौधरी ने क्षेत्र का दौरा किया है। फिर एक बार चुनावी गोटियां बिछाई जा रही हैं। हर बार की तरह RLD उत्साह के साथ मैदान में है। चुनावी जीत के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन चुनाव, दावों से नहीं जमीनी मजबूती से जीता जाता है। क्या होगा इस चुनाव में? क्या RLD अपनी खोई जमीन वापस पा लेगी? अगर नहीं तो क्या होगा RLD का? समाजवादी पार्टी ने भी RLD पर भरोसा कर उसे लोकसभा की सात सीट दी हैं। फिलहाल RLD के सामने कहीं बड़ी चुनौती है। उसे यह साबित करना होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जमीन उसकी अपनी है।

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