प्रयागराज । मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मंगलवार को हिंदू पक्ष ने अपनी बहस शुरू की और सुनवाई के बाद अदालत ने अगली तिथि 22 अप्रैल, 2024 तय की। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन द्वारा की जा रही है।
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने मंगलवार को कहा कि यह वाद पोषणीय है और पूजा स्थल अधिनियम एवं वक्फ अधिनियम के संबंध में अर्जी पक्षों के साक्ष्यों से ही निर्धारित हो सकती है। जैन ने कहा कि महज यह कहने से कि वहां एक मस्जिद है, वक्फ अधिनियम लागू नहीं होगा। संपत्ति का धार्मिक चरित्र महज ढांचे को ध्वस्त कर बदला नहीं जा सकता, यह देखना जरूरी है कि क्या कथित वक्फ विलेख (डीड) वैध है या नहीं। ये सभी चीजें मुकदमे में देखी जानी चाहिए और मौजूदा वाद पोषणीय है।
समय सीमा की बाध्यता के सवाल पर उन्होंने कहा कि मौजूदा वाद समय सीमा के भीतर दाखिल किया गया है। वर्ष 1968 का कथित समझौता वादी के संज्ञान में 2020 में आया और संज्ञान में आने के तीन साल के भीतर यह वाद दायर किया गया है। इसके साथ ही यदि सेवायत या ट्रस्ट लापरवाह है और अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहा है तो देवता अपने अगले मित्र के जरिए आगे आ सकते हैं और वाद दायर कर सकते हैं और ऐसे में समय सीमा का सवाल ही नहीं उठता।
इससे पूर्व, मुस्लिम पक्ष की ओर से वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए जिरह आगे बढ़ाते हुए अधिवक्ता तस्लीमा अजीज अहमदी ने कहा था कि मौजूदा वाद समय सीमा बीत जाने के बाद दायर किया गया है। अहमदी ने आगे दलील दी थी कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
मुस्लिम पक्ष की वकील ने दलील दी कि, “इस प्रकार से वक्फ की संपत्ति पर एक सवाल/विवाद खड़ा किया गया है और वक्फ कानून के प्रावधान लागू होंगे और इस तरह से इस मामले में सुनवाई वक्फ अधिकरण के न्याय क्षेत्र में आता है ना कि दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र में।
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