
एनजीटी
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झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य में अपशिष्ट प्रबंधन की बाबत सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों के बारे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जानकारी दी है। सरकार ने एनजीटी को बताया कि उसने तरल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 1114 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। जल्द ही ये रुपये एक अलग रिंग-फेंस खाते में जमा किए जाएंगे।
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 19 जनवरी, 2023 को राज्य में कचरा प्रबंधन को लेकर एक आदेश पारित किया। इसमें पीठ ने कहा कि झारखंड के मुख्य सचिव ने स्वीकार किया है कि सीवेज उत्पादन और 32 लाख मीट्रिक टन कचरे के प्रबंधन में लगभग 330 एमएलडी का अंतर है। आदेश में आगे कहा गया है कि सामान्य परिस्थितियों में इसके लिए अन्य राज्यों में निर्धारित मुआवजे के पैमाने पर झारखंड पर लगभग 750 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए। हालांकि, सरकार द्वारा यह बताया गया है कि झारखंड में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अधिक राशि आवंटित की गई है। इसके लिए जल्द ही 1114 करोड़ रुपये एक अलग रिंग-फेंस खाते में जमा किए जाएंगे। इस आशय का एक उपक्रम इसी ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल के पास भी दायर किया गया है। बेंच ने कहा कि ऐसे में उसे देखते हुए हम फिलहाल झारखंड राज्य पर पर्यावरण मुआवजा नहीं लगाते हैं।
साथ ही ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि वह उम्मीद करता है कि मुख्य सचिव के कहे मुताबिक झारखंड राज्य अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नए उपाय और कड़ी निगरानी अपनाएगा। इसके साथ ही राज्य सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि ठोस और तरल अपशिष्ट के उत्पादन और निपटान का अंतराल कम किया जाए।
इससे पहले कई राज्यों में पर्यावरण मुआवजा लगाए जाने के दौरान एनजीटी ने कहा था कि एनजीटी अधिनियम की धारा 15 के तहत पर्यावरण को हो रहे नुकसान को दूर करने और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए इस ट्रिब्यूनल को निगरानी करने की आवश्यकता है। ऐसे में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए मानदंडों को लागू करना और राज्यों पर मुआवजा लगाना जरूरी हो गया है।

