पर्यावरण

COP28: जलवायु परिवर्तन को ईंधन देने वाले तरीक़ों में हर साल ख़र्च होती है $7 ट्रिलियन की रक़म

COP28: जलवायु परिवर्तन को ईंधन देने वाले तरीक़ों में हर साल ख़र्च होती है  ट्रिलियन की रक़म

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण शाखा – UNEP की इस रिपोर्ट से यह भी मालूम होता है कि मानवता की कुछ सबसे मूल्यवान सम्पत्तियों को नुक़सान पहुँचाने वाले क्षेत्रों की ओर, वित्त प्रवाह को समाप्त करने के दशकों के आहवान के बावजूद, उन निवेशों का वर्तमान स्तर, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 7 प्रतिशत है.

शनिवार को यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी की गई है जब सम्मेलन के परिणाम-आलेख पर बातचीत तेज़ी से आगे बढ़ रही है. COP28 सम्मेलन, जलवायु न्याय के लिए अब तक की सबसे बड़ी सम्मेलनीय कार्रवाई की पृष्ठभूमि में, मंगलवार को समाप्त होने वाला है. 

जीवाश्म ईंधन पर दुनिया की निर्भरता को समाप्त करने और ‘हानि व क्षति’ के लिए मुआवज़े की मांग की गूंज भी, दुबई के प्रतिष्ठित ऐक्सपो सिटी स्थल में सुनी जा सकता है, जहाँ यह सम्मेलन आयोजित हो रहा है.

इस वर्ष की ‘प्रकृति के लिए वित्त की स्थिति’ रिपोर्ट, इस तरह का पहला सर्वेक्षण है जिसे “प्रकृति-नकारात्मक वित्त प्रवाह” के रूप में जाना जाता है और जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और भूमि क्षरण के परस्पर जुड़े संकटों पर ध्यान देने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है.

प्रकृति और भूमि उपयोग पर चर्चा के लिए नवीनतम संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में अलग निर्धारित किए गए दिन के साथ जारी की गई इस रिपोर्ट में, इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया है कि इन निवेशों ने प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश की जाने वाली वार्षिक राशि को कम कर दिया है, जो पिछले वर्ष लगभग 200 अरब डॉलर थी.

इन प्रकृति-नकारात्मक वित्त प्रवाह की, चौंका देने वाली $5 अरब राशि निजी क्षेत्र से आती है, जो प्रकृति-आधारित समाधानों में निजी निवेश से 140 गुना बड़ा हिस्सा है. और इसका लगभग आधा हिस्सा केवल 5 उद्योगों से आता है: निर्माण, विद्युत वस्तुओं, भ-सम्पदाओं,  तेल व गैस, और भोजन और तम्बाकू.

‘हरित वित्त’

रिपोर्ट में योगदान करने वाले यूएनईपी के भागीदारों में से एक ग्लोबल कैनोपी है, जो एक डेटा-संचालित ग़ैर-लाभकारी संस्था है. यह प्रकृति पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले बाज़ार चालकों को लक्षित करती है. 

इसके कार्यकारी निदेशकनिकी मर्दास ने यूएन न्यूज़ को बताया कि कम्पनियों या वित्तीय संस्थानों का एक समूह है जो प्रकृति-सकारात्मक निवेश कर रहा है और इसके बारे में आवाज़ भी काफ़ी बुलन्द भी की जा रही है, मगर वो प्रकृति-नकारात्मकता निवेश के प्रति जोखिम के बारे में वो भी स्पष्ट नहीं हैं, ख़ासकर जब यह उनकी आपूर्ति शृंखला में है.

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जहाँ इन कम्पनियों को सकारात्मक निवेश जारी रखना चाहिए, वहीं उन्हें यह समझने का कठिन और जटिल काम भी करना होगा कि वे समस्या को कैसे बढ़ा रहे हैं.

उन्हें इस बात पर ध्यान देना शुरू करना चाहिए कि “बाहर निकलने से या विनिवेश से नहीं, बल्कि कम्पनियों को अपने समूहों में शामिल करके, कम्पनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल करके, वे अपने संचालन और अपने व्यवहार को बदल सकते हैं.”

निकी मर्दास ने वनों की कटाई का मुक़ाबला करने का उदाहरण दिया, जो नैट-शून्य हासिल करने के किसी भी प्रयास का “केन्द्र” है, फिर भी 700 से अधिक वित्तीय संस्थानों में से केवल 20 प्रतिशत ने, ग्लासगो के हिस्से के रूप में, “वनों की कटाई पर कोई कार्रवाई की है.”

उन्होंने कहा, “हम प्रकृति, जलवायु और लोगों के लिए जो सबसे बड़ा क़दम उठा सकते हैं, वह है हरित वित्त. हमें हरित वित्त की आवश्यकता है, लेकिन हमें उस 7 ट्रिलियन डॉलर के वित्त को हरित करने की भी आवश्यकता है. अन्यथा, हम हमेशा इस चक्र में फँसे रहेंगे.”

ज्वार का रुख़ मोड़ना

यूएनईपी की नेचर फॉर क्लाइमेट शाखा की प्रमुख मीरे अटाल्लाह ने दुबई में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु संकट, अब भी इसे रोके जाने के प्रयासों से आगे निकल रहा है.

उन्होंने कहा कि वित्त “महान सम्बल है, और सही दिशा में धन प्रवाहित किए बिना, हम अपने निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते” जो जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण और जैव विविधता के नुक़सान की परस्पर जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए, 1992 के रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में निर्धारित किए गए थे.

मीरे अटाल्लाह ने कहा कि रिपोर्ट अलबत्ता, बहुत ही गम्भीर निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकती है, मगर यूएनईपी, रिपोर्ट के आँकड़ों का प्रयोग यह दिखाने के लिए करना चाहता है कि प्रकृति को नुक़सान पहुँचाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा धन, सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, और इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि COP28 इस मामले में एक निर्णायक बिन्दु होना चाहिए.

यूएनईपी अधिकारी ने यूएन न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि प्रकृति-आधारित समाधानों के लिए लम्बे समय से चली आ रही धन की कमी, धन अभाव के कारण नहीं है, “बात केवल इतनी है कि धन ग़लत दिशा में जा रहा है”.

उन्होंने कहा कि निजी कम्पनियों को सही निवेश करने के लिए राज़ी करने के लिए, धन को प्रकृति-सकारात्मक समाधानों की ओर निर्देशित करने में सहायता के लिए, आवश्यक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता होती है.

मीरे अटाल्लाह ने कहा कि कुछ निजी वित्तीय संस्थानों ने ऋण के लिए सम्पर्क किए जाने पर, पहले से ही जलवायु प्रभावों को ध्यान में रखना शुरू कर दिया है, जिससे “निवेश के ज्वार का रुख़ मोड़ने” में मदद मिल सकती है.

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