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Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के आठवें दिन करें महागौरी की पूजा, सभी कष्ट होंगे दूर, जानिए भोग-मंत्र और महत्व

Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के आठवें दिन करें महागौरी की पूजा, सभी कष्ट होंगे दूर, जानिए भोग-मंत्र और महत्व

Chaitra Navratri 2024: चैत्र की नवरात्रि अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। आज (16 अप्रैल 2024) मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। मां के नौ रूप और 10 महाविद्याएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं। लेकिन भगवान शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इसलिए माता का एक नाम शिवा भी है। नवरात्र की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। माता के कुछ भक्त जो पूरे 9 दिन व्रत नहीं रख पाते हैं। वो प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखते हैं। महागौरी की कृपा मात्र से हर असंभव कार्य पूरे हो जाते हैं।

कहा जाता है कि मां महागौरी की सच्चे मन और अनुशासन से पूजा करने पर हर तरह के पाप मिट जाते हैं। महिलाओं को अखंड सुहाग सौभाग्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि मां महागौरी का राहु ग्रह पर नियंत्रण है। राहु दोष से निवारण के लिए इनकी पूजा जरूरी है।

मां महागौरी की पूजा विधि

मां दुर्गा के आठवें रूप मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह स्नान कर सफेद रंग के कपड़े पहनें। इसके बाद पूजा स्थल की साफ सफाई कर मां महागौरी की मूर्ति को गंगाजल से साफ करें। मां महागौरी को सफेद रंग ज्यादा प्रिय है। इसलिए पूजा में सफेद रंग के फूल भी अर्पित करें। इसके बाद मां को रोली और कुमकुम का तिलक लगाएं। फिर मिठाई, पंच मेवा और फल अर्पित करें। अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा करते समय उन्हें काले चने का भोग लगाना चाहिए। अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन भी शुभ माना जाता है। इसके बाद आरती और मंत्रों का जाप करें।

जानिए कैसे पड़ा महागौरी नाम

कहा जाता है कि देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के यहां हुआ था। माता को 8 साल की उम्र में अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। सिर्फ 8 साल की उम्र में ही माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में हासिल करने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इस तपस्या के बाद उनका नाम महागौरी पड़ा। इस तरह से नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती है।

मां महागौरी का स्वरूप कैसा है

अपने भक्तों के लिए मां अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। उनकी चार भुजाएं हैं और मां बैल की सवारी करती हैं। देवी मां के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू है। एक हाथ अभय और एक वरमुद्रा में है। हाथ डमरू होने से ही मां को शिवा भी कहा जाता है। मां का यह स्वरूप बेहद शांत है। उन्हें संगीत-भजन अत्यंत प्रिय है।

मां महागौरी के मंत्र

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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