लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) से पहले मोदी सरकार (Modi Government) ने एक बहुत ही बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार ने आज नागरिकता संशोधन कानून 2019 यानी CAA के नियमों को देशभर में लागू कर दिया है। गृह मंत्रालय (MHA) ने CAA का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। इसी के साथ BJP ने अपना 2019 का चुनावी वादा भी पूरा कर दिया है। खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके थे कि लोकसभा चुनाव से पहले CAA को लागू कर दिया जाएगा और अब ये लागू हो चुका है।
CAA 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के घोषणापत्र का एक सबसे अहम वादा था। CAA के नियम जारी होते ही अब अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले प्रवासियों के लिए भारत में नागरिकता पाने का रास्ता भी खुल गया है।
अब बात करते हैं कि आखिर ये CAA है क्या? हर देश की तरह ही हमारे देश का भी एक नागरिकता कानून है। ये कानून 1955 से लागू है, अब हुआ ये कि 2019 में मोदी सरकार ने इस नागरिकता कानून 1955 में बदलाव किए और बदलाव के बाद ये बन गया नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 यानि CAAA 2019। नाम में संशोधन जोड़ा गया, मतलब कि इस कानून में बड़े बदलाव भी हुए।
11 दिसंबर, 2019 को इसे संसद में पारित किया गया था। बदलाव के बाद इस कानून में जोड़ा गया कि 31 दिसंबर 2014 से पहले या उस तक पड़ोसी मुस्लिम बहुसंख्यक देश- जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत भाग कर आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
सिर्फ 6 धर्म के लोग ही क्यों?
एक सवाल फिर खड़ा हुआ कि सिर्फ इनको ही नागरिकता क्यों दी जाएगी? वो इसलिए क्योंकि ये सभी समुदाय इन देशों में अल्पसंख्यक हैं। पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो या अफगानिस्तान हो, इन सभी देशों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। मुस्लिम समुदाय के अलावा बाकी दूसरे समुदायों की आबादी यहां कम है। इसलिए वे अल्पसंख्यक हैं और ये लोग “धार्मिक उत्पीड़न या हिंसा से बचने के लिए भाग कर भारत आए। इसलिए ये कानून कहता है कि ऐसे प्रवासियों को छह साल के भीतर फास्ट ट्रैक यानि तेज प्रक्रिया के साथ भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
हालांकि, इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। इस पर भी बात करेंगे। पहले जान लेते हैं कि फिलहाल सरकार इस पूरे कानून के तहत किस तरह से नागरिकता देगी।
गृह मंत्रालय ने खुद बताया है कि नागरिकता के लिए आवेदन पूरी तरह से ऑनलाइन मोड में जमा किए जाएंगे, जिसके लिए एक वेब पोर्टल भी तैयार किया गया है। अधिकारिक सूत्रों की अगर मानें, तो नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को वो साल भी बताना होगा कि कब उन्होंने बिना किसी यात्रा दस्तावेज के भारत में एंट्री की थी। इसके अलावा उनसे और कोई दस्तेवाज नहीं मांगा जाएगा।
नागरिकता पाने के लिए क्या है जरूरी?
इस कानून से उन्हें खुदबखुद नागरिकता नहीं मिलेगी, बल्कि वे सिर्फ इसके जरिए आवेदन कर पाएंगे।
– उन्हें दिखाना होगा कि वे पांच साल तक भारत में रहे हैं।
– उन्हें यह साबित करना होगा कि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हैं।
– यह साबित करना होगा कि वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण अपने देशों से भाग गए हैं।
– वे संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाएं बोलते हैं
– नागरिक संहिता 1955 की तीसरी अनुसूची की जरूरतों को पूरा करते हैं।
इसके जरिए ये लोग भारतीय नागरिकता के लिए सिर्फ आवेदन करने के पात्र होंगे। इसके बाद यह भारत सरकार पर निर्भर करेगा कि वो उन्हें नागरिकता देती है या नहीं।
संसद से पास होने के बाद भी क्यों लागू नहीं हुआ CAA?
अब आते हैं कि जब 2019 में CAA को संसद से भी पास करा लिया गया, तो ये देश में लागू क्यों नहीं हुआ? इसके पीछे का एक बड़ा कारण था, इसके खिलाफ हुए प्रदर्शन। हालांकि, सरकार Covid-19 महामारी को भी इस देरी के लिए जिम्मेदार ठहराती है।
CAA दिसंबर 2019 में पारित हुआ था और बाद में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन इसके खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, CAA विरोधी प्रदर्शनों या पुलिस कार्रवाई के दौरान 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
संसद के नियमों के अनुसार, किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ विधान समितियों से विस्तार मांगना होगा। इसी के तहत 2019 से गृह मंत्रालय CAA के नियम बनाने के लिए संसदीय समिति से लगातार अंतराल पर एक्सटेंशन लेता रहा है।
CAA को लेकर इतना फसाद क्यों?
सबसे अहम सवाल कि आखिर CAA को लेकर इतना फसाद क्यों हुआ… दरअसल CAA के खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली और पूर्वोत्तर राज्यों समेत देश भर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए। असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन इस डर से हिंसक हो गया कि इस CAA से उनके “राजनीतिक अधिकारों, संस्कृति और भूमि अधिकारों” का नुकसान होगा और बांग्लादेश से आने वाले और ज्यादा लोगों को बढ़ावा मिलेगा।
आंदोलनकारियों का कहना था कि नागरिकता कानून में नया संशोधन मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है और देश के संविधान में दिया गया समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। कई विरोधियों का कहना ये भी था कि ‘सरकार इसके जरिए देश में रह रहे मुस्लिमों की नागरिकता भी खत्म कर देगी।’
मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना था कि शिया और अहमदी जैसे संप्रदायों को भी पाकिस्तान जैसे मुस्लिम-बहुल देशों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्हें CAA में शामिल नहीं किया गया है।
इसमें तिब्बत, श्रीलंका और म्यांमार जैसे दूसरे देशों से सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों के बहिष्कार पर भी सवाल उठाए गए थे। इस तरह के विरोध प्रदर्शन और विवादों के कारण ही पांच साल से CAA के नियमों को देश में लागू नहीं किया गया था।
CAA को लेकर क्या है सरकार का पक्ष?
खैर इस कानून को लेकर फैले भ्रम को भी सरकार ने साफ किया और बताया कि CAA के तहत तीन पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी, न कि किसी की मौजूदा नागरिकता छीन ली जाएगी।
खुद गृह मंत्री ने इसे लेकर कहा,”हमारे मुस्लिम भाइयों को CAA के मुद्दे पर भड़काया जा रहा है। CAA के जरिए किसी की नागरिकता नहीं छीनी जा सकती है,क्योंकि इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। ये उन लोगों को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है, जो बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का सामना करके आए हैं। इसलिए इस कानून का किसी को विरोध नहीं करना चाहिए।”
इस बीच, पिछले दो सालों में, नौ राज्यों के 30 से ज्यादा जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता कानून 1955 के तहत ही अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं।
वे नौ राज्य जहां कानून के तहत रजिस्ट्रेशन या नेचुरलाइजेशन के जरिए भारतीय नागरिकता दी जाती है, वो हैं गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र।
दिलचस्प बात यह है कि असम और पश्चिम बंगाल के किसी भी जिले के अधिकारियों को अब तक ये अधिकार नहीं दिए गए हैं, जबकि यह मुद्दा राजनीतिक रूप से इन राज्यों में बेहद संवेदनशील है।