KFS Rule: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लोन एग्रीमेंट में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सभी रिटेल और माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) टर्म लोन लेने वाले कर्जदारों के लिए KFS की एप्लीकेबिलिटी को बढ़ा दिया है। आरबीआई ने फैसला किया है कि रिटेल और MSME लोन लेने वालों को अब अपने लोन एग्रीमेंट के साथ एक ‘की फैक्ट स्टेटमेंट’ यानी केएफएस मिलेगा। केएफएस एक सिंपल और ईजी भाषा में लोन एग्रीमेंट के मेन प्वॉइंट्स को समझाने वाला एक स्टैंडर्डाइस्ड फॉरमेट है। जो कर्जदारों को दिया जाता है। ये स्टेटमेंट अब अधिक सिंपल लैंग्वेज में होगा, जिससे लोन लेने वाले लोगों को अपने लोन के बारे में महत्वपूर्ण डिटेल्स समझना आसान हो जाएगा।
सर्कुलर जारी
आरबीआई के निर्देश के मुताबिक,बैंक कर्जदार से पूछे बिना या उनकी सहमति के बिना एक्स्ट्रा फीस नहीं ले सकते हैं, खासतौर पर जिसकी स्टेटमेंट केएफएस में नहीं लिखी गई हैं। आरबीआई ने सर्कुलर में कहा, कोई भी चार्ज, जो केएफएस में नहीं लिखा गया है, लोन टर्म के दौरान किसी भी लेवल पर रेगुलेटेड कंपनियों के जरिए कर्जदारों से नहीं लिया जा सकता है।
लोन का भुगतान
केएफएस में एनुअल पर्सेंटेज रेट (APR) कैलकुलेशन और एक शेड्यूल भी शामिल किया जाएगा, जिसमें दिखाया जाएगा कि समय के साथ लोन का भुगतान कैसे किया जाएगा। ये डिसीजन लेने का मकसद कर्जदारों के लिए लोन शर्तों को पारदर्शी और स्पष्ट बनाना है, जिससे उन्हें बेहतर फाइनेंशियल डिसीजन लेने में सहयता मिलेगी। यह नियम रेगुलेटेड कंपनियों के लोन पर लागू होगा।
यूनिक प्रपोजल नंबर
केएफएस को समझना आसान होगा, इसका एक यूनिक प्रपोजल नंबर भी होगा और यह लोन टर्म के आधार पर निश्चित दिनों के लिए वैलिड होगा। इतना ही नहीं, इंश्योरेंस या लीगल फीस जैसी कोई भी फीस, जो थर्ड-पार्टी की सर्विसेज के जरिए कर्जदारों से लिया जाता है, को भी एपीआर में शामिल किया जाएगा और इसके बारे में अलग से डिस्क्लोज किया जाएगा। आरबीआई ने ये कहा कि क्रेडिट कार्ड से मिलने वाले लोन पर ये नियम लागू नहीं होंगे।