Atal Bihar Vajpayee Birthday Special: सन 1971 के भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak War 1971) के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। इंदिरा सरकार को खबरदार करने के लिए जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) तब शिमला में मौजूद थे। शिमला समझौते (Shimla Agreement) पर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और पाक के राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) ने दस्तखत किए। समझौते की शर्तों से जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी संतुष्ट नहीं थे। वे इसे लेकर वहां एक जनसभा करना करना चाहते थे, लेकिन उन्हें इजाजत नहीं मिली।
वैसे शिमला समझौते के समय स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष पीलू मोदी भी शिमला पहुंच गए थे। अटल जी चाहते थे कि इंदिरा गांधी, जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ नरम रुख नहीं अपनाएं। दूसरी ओर, वहां पीलू मोदी अपने दोस्त ‘जुल्फी’ के साथ के अपने पुराने दिन याद कर रहे थे।
साथ ही, यह घोषणा कर रहे थे कि मैं जुल्फी पर किताब लिखूंगा। याद रहे कि दोनों छात्र जीवन में सहपाठी थे। अगले साल पीलू मोदी की वह किताब आ भी गई। उसका नाम है ‘जुल्फी माई फ्रेंड।’
याद रहे कि अमरीका में पढ़ाई के दौरान जुल्फी और पीलू एक ही आवास में रहते थे। भारतीय सेना ने 1965 के युद्ध में जो उपलब्धि हासिल की, उसे भारत सरकार ने 1966 के ताशकंद समझौते में गंवा दिया था।
उसके विरोध में तब के केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पूर्व सैनिक त्यागी का आरोप था कि हमने जीती हुई, ऐसी जमीन पाकिस्तान को लौटा दी, जिस रास्ते पाकिस्तानी हमलावर अक्सर कश्मीर को निशाना बनाते हैं। कहा गया कि वह इस्तीफा लालबहादुर शास्त्री के रेल मंत्री पद से इस्तीफे से भी बड़ा था।
ताशकंद की गलती न दुहराई जाए, इस कोशिश में अटल जी लगे हुए थे। पर अंततः वे विफल ही रहे। हालांकि, उससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने तब शिमला के जैन हॉल में बैठक की। प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया।
उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से अपील की कि वे सैनिकों के बलिदान को न गवाएं, पर ऐसा न हो सका।
2 जुलाई 1972 की रात में हुए समझौते के बाद अटल जी ने कहा कि हमारी सरकार ने पाकिस्तान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। क्योंकि दोनों देशों के बीच विद्यमान विवादों पर कोई समझौता न होने पर भी भारतीय सेना हटा लेने का निर्णय हो गया। कश्मीर समस्या तो सजीव बनी ही रहेगी।
युद्ध में हुई क्षति, विभाजन के समय के कर्ज, विस्थापितों की संपत्ति के मामले भी फिर टाल दिए गए।
इसके विपरीत राष्ट्रपति भुट्टो दो लक्ष्य लेकर वात्र्ता में शामिल हुए थे। एक, युद्ध में खोए भूभाग की वापसी और दूसरा युद्धबंदियों की रिहाई। दोनों में वे सफल रहे।
हालांकि विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा कि पाकिस्तान 69 वर्ग मील भारतीय क्षेत्र खाली करेगा। भारत 5139 वर्ग मील पाकिस्तानी इलाका खाली करेगा।
हमने उदारता का परिचय दिया है। साथ ही यह तय हुआ कि अब दोनों देश अपने विवाद परस्पर बातचीत से हल करेंगे, लेकिन उधर चर्चा रही कि इंदिरा जी भुट्टो के सिर्फ मौखिक आश्वासनों पर ही मान गईं।
पाकिस्तान पहुंच कर बदल गए भुट्टो
भुट्टो ने कहा था कि हम कश्मीर के बारे में बाद में ठोस कदम उठाएंगे, लेकिन पाकिस्तान लौट कर भुट्टो बदल गए। याद रहे कि 1971 के बांग्ला देश युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ था।
पाकिस्तान के करीब 90 हजार युद्धबंदी भारत में थे। उन्हें छुड़ाना भुट्टो का सबसे बड़ा मकसद था। इसको लेकर पाकिस्तान में वहां की सरकार की जनता फजीहत कर रही थी। लेकिन पीलू मोदी अपनी पुस्तक लायक सामग्री हासिल करने में सफल रहे।
उन्होंने टुकड़ों में अपने लंगोटिया यार ‘जुल्फी’ से कुल 11 घंटे तक बातचीत की। दिल्ली लौटने के बाद पीलू मोदी ने भुट्टो के बारे में कई बातें बताईं। पत्रकारों ने पीलू से भुट्टो के बारे में जो सवाल किए, उनमें ज्यादातर सवाल गैर राजनीतिक थे।
पीलू के अनुसार, शिमला शिखर वार्ता के बारे में उन दिनों किसी को ये पता नहीं चल रहा था कि भीतर क्या हो रहा है। दोनों देशों के नेताओं ने शिमला से वापस जाने के बाद ही अपने मुंह खोले।
पीलू मोदी ने बताया कि भुट्टो बुद्धिमान, तीखा और जज्बाती इनसान है। तैश में आ जाने की उसकी पुरानी आदत है। लेकिन वह दिल का बुरा नहीं है।
भुट्टो के सिर पर समाजवाद का भूत सवार है। वह हमारी यानी स्वतंत्र पार्टी की नीतियों में विश्वास नहीं करता, लेकिन अमल हमारी नीतियों पर ही करता है।
मोदी ने कहा कि दोस्ती और राजनीति अलग-अलग पटरियां हैं। 11 घंटे की मुलाकात दो दोस्तों की बेमिसाल दास्तान है।
उधर इंदिरा सरकार ने शिमला शिखर वार्ता के लिए आए पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल को देखने के लिए, जो भारतीय कथा फिल्में भेजी थीं, उन पर भी तब इस देश में विवाद उठा था।
वे फिल्में थीं-‘चैदहवीं का चांद’,‘मिर्जा गालिब’,‘पाकिजा’,‘साहब बीवी और गुलाम’ और ‘मुगल ए आजम’।
भारत के कुछ लोगों ने तब सवाल किया था कि इस चयन का आधार क्या था ? भारत की ‘प्रतिनिधि कथा फिल्में’ क्यों नहीं भेजी गईं?
उधर बातचीत के समय अपने पिता के साथ आई बेनजीर भुट्टो, जब शिमला की सड़कों पर घूमा करती थीं, तो उन्हें देखने के लिए बड़ी भीड़ लग जाती थी।
एक दिन तो इंदिरा गांधी की भी सड़क पर संयोगवश बेनजीर से मुलाकात हो गई और दोनों साथ-साथ घूमीं। पीलू मोदी ने विनोदपूर्ण ढंग से कहा था कि अगर बेनजीर यहां से चुनाव लड़ जाए, तो यहां के मुख्यमंत्री वाई.एस. परमार को भी हरा देगी।