प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 1 दिसंबर को ‘विकास भारत संकल्प’ के लाभार्थियों के साथ बातचीत में कहा था, ‘मेरे लिए देश की सबसे बड़ी चार जातियां हैं। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है गरीब। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है युवा, मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है महिलाएं। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है किसान।’
ऐसे वक्त में जब विपक्षी पार्टियां जातीय जनगणना के इर्दगिर्द राजनीतिक विमर्श खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने इस बहस को लेकर नया दांव फेंक दिया वह नए भारत में जातियों के विभाजन को किस तरह देखते हैं। हिंदी पट्टी में बीजेपी (BJP) की शानदार जीत और तेलंगाना में पार्टी द्वारा बढ़त हासिल करने के अहम मायने कुछ इस तरह हैं:
बेकार गया जातीय जनगणना का दांव : कांग्रेस पार्टी गांधीवादी विचारधारा से लेफ्ट की तरह मुड़ गई है और भारतीय मतदाताओं ने जातीय आधार पर आरक्षण की राजनीति को नकार दिया है। विपक्षी पार्टी ने जाति आधारित अधिकारों को लेकर नारा बुलंद किया था। कांग्रेस पार्टी ने ‘जितना आबादी उतना हक’ नारा दिया था, जिससे भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था पर इसके नतीजों को लेकर चिंता पैदा हो गई थी। इस कदम को हिंदुओं की अलग-अलग जातियों को बांटने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा था। बीजेपी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह नारा संविधान की भावना के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि जाति, क्षेत्र, जन्मस्थान या लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी राष्ट्रीय पार्टी ने जाति को मुद्दा बनाया हो। इससे पहले जाति को लेकर आम तौर पर क्षेत्रीय पार्टियां ही बात करती थीं और राष्ट्रीय पार्टियां समावेशी राजनीति की भाषा बोलती थीं। बीजेपी के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी इस बात का भी संकेत है कि आज का भारत जातीय राजनीति के प्रभुत्व से बाहर निकल चुका है। साथ ही, कांग्रेस पार्टी एक मानक नीति पेश करने में सफल नहीं रही है। विभिन्न मुद्दों पर पार्टी के अलग-अलग नेता अलग-अलग राय पेश करते हैं।
कांग्रेस के पनौती: क्या राहुल गांधी ने अपने उस बयान से कांग्रेस को करारा झटका दिया, जिसमें उन्होंने 21 नवंबर की रैली में क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की हार के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री को ‘पनौती’ कहा था? जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी काफी ऊपर बनी हुई है और उन पर कीचड़ उछालने की किसी भी तरह की कोशिश शायद वोटरों को पसंद नहीं आए। साल 2022 के गुजरात चुनाव से पहले अहमदाबाद की एक चुनावी रैली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मोदी को ‘100 सिर वाला रावण’ बताया था। प्रधानमंत्री को लेकर इस तरह की भाषा का इस्तेमाल हमेशा कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा है।
नहीं चलेगा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण: तेलंगाना (Telangana) के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (K Chandrashekhar Rao) का मॉडल जनकल्याणकारी नीतियों और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर आधारित था। राव ने शिक्षा और नौकरियों में मुसलमानों के लिए 4 पर्सेंट आरक्षण लागू करने का फैसला किया, जिसे अमित शाह ने ‘असंवैधानिक’ करार दिया था। राव ने विशेष तौर पर मुसलमानों के लिए आईटी पार्क का भी वादा किया था।
ब्रांड मोदी और डबल इंजन: बीजेपी ने हर विधानसभा चुनाव में मोदी को आगे करने की अपनी जांची-परखी रणनीति का इस्तेमाल किया। पार्टी द्वारा चलाए गए प्रचार अभियान में किसी को सीएम चेहरा नहीं बनाया गया। आखिरकार, चुनावी मुकाबला प्रधानमंत्री और राज्यों के कांग्रेसी नेताओं के बीच शिफ्ट कर गया। प्रधानमंत्री का गवर्नेंस का रिकॉर्ड, जाति आधारित एजेंडा से पीएम की दूरी और विकास पर उनके फोकस की वजह से जनादेश बीजेपी के पक्ष में गया।