संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने लेबनान के स्वाधीनता दिवस के अवसर पर आम नागरिकों के लिए उपजे आपात पर क्षोभ जताया और कहा कि देश में जारी युद्ध की वजह से अनिश्चितता गहरा रही है.
पिछले कुछ हफ़्तों में इसराइल सेना के हवाई हमलों और ज़मीनी अभियान में तेज़ी आई है, जिससे लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर फँसे आम नागरिकों की पीड़ा बढ़ी है.
लेबनान में यूएन शरणार्थी एजेंसी के प्रतिनिधि, इवो फ़्रेइसन ने बताया कि पिछले कुछ सप्ताह, लेबनान और वहाँ के लोगों के लिए कई दशकों में सबसे जानलेवा साबित हुए हैं.
अब तक, क़रीब 10 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, यानि स्थानीय आबादी में हर पाँच में एक व्यक्ति. इनमें से छह लाख लोगों ने सीरिया में शरण ली है.
लेबनान के प्रशासन के अनुसार, 20 नवम्बर तक 3,600 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, जिनमें 230 से अधिक बच्चे भी हैं. 15 हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं.
इस संकट की पृष्ठभूमि में, यूएन शरणार्थी एजेंसी ने सर्दी के मौसम में ज़रूरतमन्दों तक मदद पहुँचाने के लिए अन्तरराष्ट्रीय सहायता की अपील की है.
स्वास्थ्य सेवाओं पर हमले
अब तक, एक लाख से अधिक लोगों तक सहायता पहुँचाई गई है और देश भर में 44 स्वास्थ्य नैटवर्क को समर्थन प्रदान किया गया है, जिसके तहत जीवनरक्षक उपकरण का प्रबन्ध किया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर 10 में से एक अस्पताल में कामकाज या तो ठप है, या फिर देखभाल सेवाओं की उपलब्धता में कमी आई है चूँकि स्वास्थ्य केन्द्रों, ऐम्बुलेंस और चिकित्साकर्मियों पर हमले हो रहे हैं.
एक अनुमान के अनुसार, पिछले वर्ष 8 अक्टूबर के बाद से अब तक लेबनान में 330 स्वास्थ्यकर्मियों की जान गई है.
मौजूदा हालात से हताश
सीरिया के लिए UNHCR प्रतिनिधि गोंज़ालो वर्गास ल्लोसा ने बताया कि 24 सितम्बर के बाद से अब तक साढ़े पाँच लाख से अधिक लोगों ने सीरिया में शरण ली है.
इनमें 65 फ़ीसदी सीरियाई नागरिक और अन्य लेबनान के नागरिक हैं. हिंसक टकराव के बीच लेबनान और सीरिया की सीमा को पार करना, आम नागरिकों व मानवीय सहायताकर्मियों के लिए बेहद जोखिम से भरा है.
हालांकि, सीरिया में बदतरीन हालात और ख़राब आर्थिक स्थिति के कारण हर दिन क़रीब 50 लेबनानी नागरिक अपने देश वापिस लौट रहे हैं. कुछ सीरियाई नागरिकों के भी फिर लेबनान आने की ख़बर है.
यूएन एजेंसी के अनुसार, सीरिया में गुज़र-बसर के साधन ना होने के कारण उन्हें पर्याप्त स्तर पर समर्थन नहीं मिल पा रहा है और उनका मानना है कि लेबनान में शायद उनके लिए हालात बेहतर हों.