आपात राहत: विशाल झटका
युद्ध से पहले:
- 10 लाख से अधिक फ़लस्तीनी शरणार्थियों के पूर्ण निर्धनता में जीवन गुज़ारने का अनुमान था, यानि वे अपनी बुनियादी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते थे.
- ग़ाज़ा निवासी, इसराइल द्वारा पिछले 15 वर्षों से थोपी गई हवाई, भूमि व समुद्री नाकेबन्दी का सामना करने में संघर्ष कर रहे थे.
- इस स्थिति से उबारने के लिए, UNRWA ने ज़रूरतमन्दों के लिए खाद्य व मेडिकल सहायता की व्यवस्था की और नक़दी-आधारित हस्तांतरण भी कराए.
युद्ध शुरू होने के बाद:
- किसी भी प्रकार की मानवीय सहायता मुहैया कराने की UNRWA की क्षमता पर असर हुआ है. यह सहायता सामग्री उपलब्ध ना होने की वजह से नहीं है, बल्कि इसराइली प्रशासन द्वारा थोपी गई पाबन्दियों के कारण है, जिससे संगठन के लिए आपूर्ति वितरित कर पाना सम्भव नहीं है.
- यूएन एजेंसी के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने इस वर्ष अक्टूबर में बताया कि ग़ाज़ा में हर दिन, मानवीय सहायता से लदे क़रीब 30 ट्रक प्रवेश कर रहे हैं, जोकि युद्ध से पहले में स्वीकृत मात्रा का केवल छह फ़ीसदी है.
- मानवीय सहायता मामलों में समन्वय के लिए यूएन कार्यालय (OCHA) के अनुसार, क़रीब आधी आबादी को प्रति व्यक्ति प्रति दिन पीने, खाना पकाने और स्वच्छता बरतने के लिए 15 लीटर जल नहीं मिल पा रहा है.
स्वास्थ्य देखभाल: एक नाज़ुक डोर से बंधी
युद्ध से पहले:
- पिछले 60 वर्षों से UNRWA द्वारा फ़लस्तीनी शरणार्थियों को व्यापक स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराई जा रही थी.
- इनमें 22 स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र ग़ाज़ा में थे जहाँ क्लीनिक व लैब सुविधा उपलब्ध थी, मातृत्व देखभाल व परिवार नियोजन में निजी ज़रूरतों का ख़याल रखा जाता था.
- ग़ाज़ा के अनेक स्कूलों में मनोसामाजिक परामर्शदाता उपलब्ध हैं, और विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के लिए क्लीनिक भी हैं जहाँ बच्चों को अवसाद, बेचैनी व तनाव से उबरना सिखाया जाता है.
युद्ध शुरू होने के बाद:
- 7 अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक, इसराइली सैन्य बलों ने अस्पतालों को अनेक बार निशाना बनाया गया है. स्वास्थ्यकर्मियों, मरीज़ों, अस्पतालों और अन्य बुनियादी ढाँचों पर 500 से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं.
- तमाम चुनौतियों के बावजूद, UNRWA ने अपने आठ स्वास्थ्य केन्द्रों में कामकाज जारी रखा है और पिछले एक वर्ष में उसकी मेडिकल टीमों ने 62 लाख प्राथमिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदान किए गए, जोकि उससे पहले के वर्ष में 26 लाख से कहीं अधिक हैं.
- यूएन एजेंसी ने ग़ाज़ा में पोलियो टीकाकरण अभियान के तहत अहम भूमिका निभाई, जिसमें पहले चरण में पाँच लाख 60 हज़ार बच्चों को ख़ुराक दी गई और दूसरे दौर में पाँच लाख 45 हज़ार बच्चों को टीके लगे.
- हज़ारों बच्चों तक पहुँचना मगर सम्भव नहीं हो पाया है, जिसकी वजह इसराइल द्वारा जारी किए गए बेदख़ली आदेश व बमबारी हैं, जिससे बड़े अवरोध पैदा हुए हैं.
शिक्षा: एक साल बर्बाद
युद्ध से पहले:
- ग़ाज़ा में UNRWA द्वारा बड़े स्तर पर शिक्षा कार्यक्रम संचालित किया जाता है, जिसमें 183 शैक्षणिक परिसरों में 284 स्कूलों में शिक्षा प्रदान की जा रही थी. इनमें साढ़े 10 हज़ार से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे, और क़रीब तीन लाख छात्र पंजीकृत थे.
- यूएन एजेंसी के पास पाठ्यक्रम या किताबों में बदलाव लाने के लिए कोई अधिकार नहीं है (ये राष्ट्रीय सम्प्रभुता से जुड़ा हुआ विषय है). मगर, यूएन एजेंसी ने यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए कि यूएन मूल्यों व सिद्धान्तों के अनुरूप ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई हो.
युद्ध शुरू होने के बाद:
- यूएन एजेंसी का मानना है कि ग़ाज़ा पट्टी मे बच्चों के पास पढ़ाई-लिखाई के लिए कोई भी जगह सुरक्षित नहीं बची है. इसके बावजूद, UNRWA बच्चों को शैक्षिक अवसर मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है.
- संगठन की ओर से ऐसी पहल शुरू की गई हैं, जिनमें बच्चों को सीखने-सिखाने की गतिविधियों में शामिल किया जा रहा है. 36 आश्रय स्थलों पर साढ़े नौ हज़ार से अधिक बच्चों को इन पहल का लाभ मिला है, जिनमें क़रीब 60 फ़ीसदी लड़कियाँ हैं.
- युद्ध के दौरान, ग़ाज़ा में यूएन एजेंसी के 85 फ़ीसदी स्कूल हमले की चपेट में आए हैं या क्षतिग्रस्त हुए हैं. बहुत से स्कूलों को विस्थापित लोगों के लिए आश्रय स्थल के रूप में इस्तेमाल में लाया जा रहा था.
- इसके परिणामस्वरूप, ग़ाज़ा में बच्चों ने 2023-2024 स्कूली वर्ष के दौरान केवल छह सप्ताह ही पढ़ाई की और उनके लिए एक वर्ष की शिक्षा बर्बाद हो गई है.
आर्थिक विकास: 1955 के स्तर पर
युद्ध से पहले:
- पिछले कई वर्षों से, UNRWA ने आर्थिक विकास को सहारा देने के लिए कार्यक्रम संचालित किए जिनमें उद्यमियों को समर्थन प्रदान किया गया, महिलाओं को श्रमबल में प्रवेश मिला और विकलांगजन का सशक्तिकरण किया गया.
- यूएन एजेंसी का माइक्रोफ़ाइनेंस विभाग, निर्धन व हाशिए पर रहने वाले लोगों को सतत कमाई के लिए समर्थन मुहैया कराता है और उन लोगों को कर्ज़ भी मुहैया कराया जाता है, जिन्हें बैन्क से ऋण मिलना सम्भव नहीं है.
- 2020 में, UNRWA ने बेरोज़गारी से निपटने, डिजिटल सैक्टर में फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए अवसर मुहैया कराने और उनके करियर शुरू करने के इरादे से IT सेवा केन्द्र की स्थापना की.
युद्ध शुरू होने के बाद:
- ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध के कारण ऐसी पहलों को गहरा धक्का लगा है. अक्टूबर में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा और पश्चिमी तट में आर्थिक विकास 70 वर्ष पहले के स्तर पर पहुँच गया है.
- यूएन विशेषज्ञों के आकलन में बर्बाद हो रही लाखों ज़िन्दगियों और दशकों के विकास प्रयासों के मिटने पर चिन्ता जताई गई है.
शरणार्थी शिविर: हमले की चपेट में
युद्ध से पहले:
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के जीवन में बेहतरी लाने के लिए UNRWA कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से मौजूद रहे हैं, जिनकी मदद से सैकड़ों घर बनाए गए, सीवेज व नालों की व्यवस्था की गई.
युद्ध शुरू होने के बाद:
- पिछले एक वर्ष में, सैन्य कार्रवाई, लड़ाई और बढ़ती हिंसा की वजह से ग़ाज़ा में क़रीब 66 फ़ीसदी इमारतों के ध्वस्त या क्षतिग्रस्त होने का अनुमान है.
- घनी आबादी वाले शरणार्थी शिविरों में भी तबाही हुई है. सवा दो लाख से अधिक आवासीय इकाइयों को नुक़सान पहुँचा है.
- सीवेज और अपशिष्ट व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है. सैकड़ों लोगों के पास टॉयलेट जाने की सुविधा नहीं है और सड़कों पर कचरा व सीवर की गंदगी फैली हुई है.