इसराइली संसद क्नैसेट ने हाल ही में दो विधेयक पारित किए हैं, जिनके तहत इसराइली क्षेत्र में यूएन एजेंसी UNRWA की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कही गई है. साथ ही, प्रशासनिक एजेंसियों पर भी उसके साथ किसी तरह के सम्पर्क की मनाही है.
इसराइल ने आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष को नए क़ानून की जानकारी दी है. इस पत्र में कहा गया है कि 90 दिनों के भीतर एजेंसी के साथ सभी सहयोग समाप्त कर दिया जाएगा.
UNRWA के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने सोमवार को बताया कि पिछले महीने इसराइल ने ग़ाज़ा में औसतन प्रतिदिन 30 मानवीय सामग्री से भरे ट्रकों को प्रवेश की अनुमति दी, जो युद्ध से पहले भेजी जा रही व्यावसायिक एवं मानवीय आपूर्ति का केवल छह प्रतिशत है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा, “एक लम्बे समय में यह सबसे कम संख्या है, जिससे सहायता उसी स्तर पर पहुँच गई है जो युद्ध की शुरुआत में थी.“
”यह 20 लाख से अधिक ज़रूरतमन्दों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त, नहीं है जिनमें से कई भूख, बीमारी से पीड़ित हैं और दयनीय हालात में जी रहे हैं.”
लाखों लोगों की जीवन रेखा
उन्होंने कहा कि UNRWA को जितना सामान ले जाने की अनुमति मिल रही है, उसे वितरित किया जा रहा है.
यूएन एजेंसी ने पिछले अक्टूबर में युद्ध के बाद से 19 लाख से अधिक ग़ाज़ावासियों को खाद्य सहायता प्रदान की है, जबकि आश्रयों के भीतर व आस-पास रहने वाले सैकड़ों हज़ारों लोगों को बुनियादी आपूर्ति दी गई है.
UNRWA, ग़ाज़ा में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का सबसे बड़ा प्रदाता है, और उसकी टीमों ने 60 लाख से अधिक चिकित्सा परामर्श प्रदान किए हैं. फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि UNRWA के ज़रिए दी जाने वाली सामग्री समेत, ग़ाज़ा में अधिक से अधिक सहायता पहुँचाने की आवश्यकता है.
उनके अनुसार, मानवीय पहुँच पर प्रतिबन्ध और UNRWA पर पाबन्दी से, पहले ही अकल्पनीय पीड़ा का दंश झेल रहे लोगों के दुखों में और बढ़ोत्तरी होगी. मौजूदा हालात की वजह राजनीति है, औरर केवल राजनैतिक इच्छाशक्ति के ज़रिये हीइससे छुटकारा मिल सकता है.
UNRWA का कोई विकल्प नहीं
इससे पहले, UNRWA के प्रमुख फ़िलिपे लज़ारिनी ने एक ट्वीट में कहा था कि UNRWA फ़लस्तीनी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में भी सहायता करता है. उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों और राजनेताओं द्वारा एजेंसी पर पाबन्दी लगने की चर्चाओं में बच्चों व उनकी शिक्षा का कोई ज़िक्र नहीं है.
उन्होंने कहा कि राजसत्ता की अनुपस्थिति में, कोई वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध नहीं है. पिछले अक्टूबर तक, ग़ाज़ा में 3 लाख से अधिक बच्चे, यानि कुल स्कूली बच्चों में से आधे – UNRWA के स्कूलों में पढ़ते थे. यह दूसरा वर्ष है जब वे अपनी शिक्षा से वंचित हो रहे हैं.
वहीं, पश्चिमी तट में भी लगभग 50 हज़ार बच्चे UNRWA स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने बताया कि UNRWA एकमात्र ऐसी संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है, जो सीधे तौर पर शिक्षा प्रदान करती है. यह एजेंसी, क्षेत्र में एकमात्र ऐसी व्यवस्था संचालित करती है जिसमें संयुक्त राष्ट्र मानकों और मूल्यों के अनुसार मानवाधिकार कार्यक्रम शामिल है.
उन्होंने कहा कि, “एक उचित विकल्प की अनुपस्थिति में UNRWA को हटाने से, निकट भविष्य में फ़लस्तीनी बच्चों शिक्षा से वंचित हो जाएँगे.“
उन्होंने आगाह किया, “शिक्षा के अभाव में, बच्चे निराशा, ग़रीबी और उग्रवाद का रुख़ कर सकते हैं. इसके अलावा, शिक्षा के बिना बच्चे शोषण का शिकार हो सकते हैं, जिसमें सशस्त्र समूहों में भर्ती शामिल है. शिक्षा के बिना, यह क्षेत्र अस्थिर और असुरक्षित रहेगा.”
महाआयुक्त लज़ारिनी ने कहा कि UNRWA को बन्द करने या इसका विकल्प ढूंढने की बजाय, हिंसक टकराव को ख़त्म करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए.