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UNGA79: सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी से भूटान का बाहर आना, ‘रूपान्तरकारी बदलाव’ से परिपूर्ण

UNGA79: सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी से भूटान का बाहर आना, ‘रूपान्तरकारी बदलाव’ से परिपूर्ण

प्रधानमंत्री तोबगे ने कहा कि 50 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी केवल सात देशों को ही सबसे कम विकसित देश (Least Developed Countries/LDC) की श्रेणी से बाहर आने में सफलता मिली है. 46 देश अब भी इस समूह का हिस्सा हैं और उन्हें विकास के लिए आवश्यकता है.

उन्होंने अपने देश की विकास यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि भूटान, वर्ष 1971 में संयुक्त राष्ट्र का 128वाँ सदस्य बना था, जोकि उनके देशवासियों के लिए एक बेहद अहम क्षण था.

एक लम्हा जब “एक छोटा, निर्धन, भूमिबद्ध देश, दुनिया में सबसे ऊँचे पर्वतों की गोद में बसा हुआ, राष्ट्रों के वैश्विक समुदाय में शामिल होता है.”

उसी वर्ष, संयुक्त राष्ट्र ने सबसे कम विकसित देशों के लिए एक श्रेणी स्थापित की, जिसका उद्देश्य निर्धनतम देशों को लक्षित ढंग से समर्थन मुहैया कराना था. भूटान, इस समूह में शामिल किए जाने वाले पहले चन्द देशों में था.

प्रधानमंत्री तोबगे ने ध्यान दिलाया कि उस समय देश की प्रति व्यक्ति आय केवल 215 डॉलर थी, जीवन प्रत्याशा महज़ 40 वर्ष थी, जबकि नवजात शिशु मृत्यु दर ऊँची थी, एक हज़ार जन्मे बच्चों पर 142 मौतें.

“आज, मैं आपके समक्ष रूपान्तरकारी बदलावों की प्रगति की कहानी के साथ यहाँ खड़ा हूँ.” भूटान का सकल घरेलू उत्पाद अब साढ़े तीन हज़ार डॉलर तक पहुँच गया है, जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष है, नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति एक हज़ार जन्म पर 15 मौतें तक लुढ़क गई है. साक्षरता दर 71 प्रतिशत तक पहुँच गई है, युवाओं में यह 99 फ़ीसदी है.

प्रधानमंत्री तोबगे ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के 52 वर्ष बाद, दिसम्बर 2023 में भूटान सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी से बाहर निकल आया.

उन्होंने विकास की दिशा में इस यात्रा में समर्थन देने के लिए संयुक्त राष्ट्र व उसकी विभिन्न एजेंसियों, योरोपीय संघ, विश्व बैन्क, एशियाई विकास बैन्क, जापान और भारत समेत विकास साझीदारों का आभार प्रकट किया.

भूटान के नेता ने कहा कि राजशाही के नेतृत्व में भूटान, सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (Gross National Happiness) की नींव पर आधारित दर्शन को अपनाया है. यह एक ऐसा मार्ग है, जिसमें देश की जनता की ख़ुशी व कल्याण को विकास एजेंडा में प्राथमिकता दी जाती है.

“भूटान की अर्थव्यवस्था छोटी ज़रूर है, मगर यह सतत व समावेशी है. स्वास्थ्य देखभाल व शिक्षा सर्वजन के लिए निशुल्क है. इसकी भूमि का 72 प्रतिशत से अधिक वन आच्छादित है. भूटान को जैवविविधता के एक मुख्य केन्द्र के रूप में देखा जाता है और यह कार्बन नेगेटिव देश है.”

उन्होंने कहा कि नई चुनौतियों से निपटने के लिए भूटान को अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करनी होगी, युवाओं को अर्थपूर्ण अवसर देने होंगे और एक नए विकास मॉडल को अपनाना होगा.

उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि सबसे कम विकसित देशों को इस श्रेणी से बाहर निकलने में मदद दी जानी होगी. हाल ही में पारित भविष्य के लिए सहमति पत्र में इन निर्बल देशों में बड़े बदलाव लाने का एक रोडमैप दिया गया है, लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं में आवश्यकता अनुसार नए सुधार किए जाएं.

प्रधानमंत्री तोबगे ने कहा कि भूटान लम्बे समय से सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्वशील व कारगर बनाने की पैरवी करता रहा है. उनके अनुसार, भारत ने ठोस आर्थिक प्रगति हासिल की है और वैश्विक दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित देशों का नेतृत्व किया है, वह सुरक्षा परिषद में एक स्थाई सीट का हक़दार है. वैसे ही जापान एक दानदाता देश व शान्तिनिर्माता है और उसे भी स्थाई सदस्यता दी जानी होगी

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