इसराइली प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को यूएन महासभा के 79वें सत्र के दौरान अपने सम्बोधन में कहा कि वह अपने लोगों, अपने देश और सच्चाई के लिए बोलने के इरादे से यहाँ आए हैं. उन्होंने कहा कि इसराइल वर्षों से शान्ति हासिल करने की चाह में है.
“हम ऐसे शत्रुओं का सामना कर रहे हैं, जो हमारा सर्वनाश चाहते हैं, और हमें इन वहशी हत्यारों से अपनी रक्षा करनी है, जो हमें ना केवल बर्बाद कर देना चाहते हैं बल्कि हमारी साझा सभ्यता को भी तबाह करना चाहते हैं और हम सभी को निरंकुशता व आतंक के काले अध्याय में भेजना चाहते हैं.”
प्रधानमंत्री नेतानयाहू ने पिछले वर्ष जनरल डिबेट में अपने सम्बोधन का ध्यान दिलाया, जिसमें उन्होंने कहा कि इसराइल के सामने वही शाश्वत विकल्प है, जिसे मूसा ने हज़ारों लोग पहले अपने लोगों के सामने रखा था.
“हमारे उठाए गए क़दम ही यह तय करेंगे कि हम अपनी भावी पीढ़ियों को क्या सौंपेंगे, एक आशीर्वाद या एक अभिशाप.”
“और इसी चयन का सामना हम आज भी कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि ईरान की अनवरत आक्रामकता का अभिशाप या अरब व यहूदी में ऐतिहासिक मेलमिलाप का वरदान.
प्रधानमंत्री नेतानयाहू ने कहा कि आशीर्वाद के रास्ते पर आगे बढ़ने से, सऊदी अरब और इसराइल के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए समझौता हुआ.
लेकिन फिर 7 अक्टूबर का अभिशाप भी था, जब ईरान-समर्थित हज़ारों हमास चरमपंथियों ने इसराइल में धावा बोला और ऐसे अत्याचारों को अंजाम दिया, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि बर्बरता से 1,200 लोगों की हत्या कर दी गई, जिनमें बच्चे भी थे. महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा को अंजाम दिया गया और विभिन्न देशों के 251 लोगों को बन्धक बना लिया गया.
“ये दृश्य नात्ज़ी जनसंहार की ध्यान दिलाते थे.”