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जलवायु परिवर्तन: ओज़ोन परत में सुधार, पूर्ण बहाली की ओर अग्रसर

ओज़ोन परत एक रक्षा ऐसा कवच है जिसके ज़रिये हानिकारक अल्ट्रावायलेट (पराबैंगनी) किरणों से पृथ्वी पर जीवन को  सुरक्षित रखने में मदद मिलती है.

यूएन एजेंसी का वार्षिक ‘ओज़ोन व पराबैंगनी’ बुलेटिन को ‘विश्व ओज़ोन दिवस’ के अवसर पर जारी किया गया है, जिसे ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ और उसमें हुए संशोधन ‘किगाली समाझौता’ को लागू करने के सिलसिले में मनाया जाता है.

इन अन्तरराष्ट्रीय समझौतों के परिणामस्वरूप, ओज़ोन को गम्भीर नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों के उत्पादन पर रोकने में मदद मिली थी.

अतीत में किए गए अध्ययन में चेतावनी जारी की गई थी कि फ़्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन और आयोडिन समेत ऐसे अनेक रसायन हैं, जिनके इस्तेमाल से ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँच रहा है.

विभिन्न उत्पादों के लिए तैयार किए जाने वाले क्लोरोफ़्लोरोकार्बन समेत अन्य रसायन व पदार्थ, ओज़ोन परत में छेद कर रहे थे, जिन्हें एयरोसोल्स, रेफ़्रिजरेशन सिस्टम और वातावरण को ठंडा रखने के लिए चलने वाली मशीनों में भारी मात्रा में पाया जाता है.

रिपोर्टों में कहा गया था कि ओज़ोन परत में छेद होने की वजह से सूरज से निकलने वाली ख़तरनाक़ अल्ट्रावायलेट किरणों का विकिरण, पृथ्वी तक पहुँचने लगा था.

भर रहा है छेद

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ओज़ोन परत में हो रहे सुधार का स्वागत करते हुए कहा कि इन रक्षा उपायों को जारी रखा जाना होगा.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि प्रोटोकॉल का किगाली संशोधन, गर्माती जलवायु के लिए ज़िम्मेदार शक्तिशाली गैस हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन (HFC) का इस्तेमाल चरणबद्ध ढंग से हटाने पर केन्द्रित है.

इस संशोधन से कार्बन उत्सर्जन में कटौती लाने, आम नागरिकों व पृथ्वी की रक्षा सुनिश्चित करने में योगदान दिया जा सकता है.

“जैसे-जैसे तापमान के रिकॉर्ड का ध्वस्त होना जारी है, इसी की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है.”

यूएन एजेंसी ने बताया कि ओज़ोन की परत में सुधार, 1980 के स्तर तक पहुँच सकता है, जब उसमें कोई छेद नहीं उभरा था, मगर इसके लिए मौजूदा नीतियों को जारी रखना होगा.

अंटार्कटिक क्षेत्र में इसके लिए 2066 तक का समय लग सकता है. आर्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत में पूर्ण सुधार 2045 तक और शेष दुनिया तक 2040 तक होने की सम्भावना है.

अन्य निष्कर्ष

विश्व मौसम विज्ञान संगठन के बुलेटिन में मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की अल्ट्रावायलेट विकिरण से रक्षा करने के लिए रणनीतियों को साझा किया गया है.

साथ ही, 2023 में अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत में छेद पर, मौसमी रुझानों और ज्वालामुखी फटने के असर का भी विश्लेषण किया गया है.

बुलेटिन में अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत में आ रहे सकारात्मक बदलावों की बात कही गई है, मगर यह आशंका जताई गई है कि वातावरण में किसी भी घटना से ये प्रभावित हो सकते हैं.

यूएन एजेंसी वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी ऐसे प्रभावों की वजह को पूर्ण रूप से समझा जाना है, और इसके लिए ओज़ोन परत की निगरानी को जारी रखना होगा.

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