विश्व

इसराइल पर ICJ के आदेश को लागू किए जाने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र के उच्चतम न्यायालय (ICJ) ने 19 जुलाई को एक परामर्श-मत घोषित किया था जिसमें कहा गया था कि ग़ाज़ा पट्टी और पूर्वी येरूशेलम सहित पश्चिमी तट में इसराइल का क़ब्ज़ा “अवैध” यानि “ग़ैर-क़ानूनी है”.

न्यायालय ने यूएन महासभा के अनुरोध पर यह निर्णय सुनाया था जिसमें क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में, इसराइल की नीतियों और गतिविधियों के क़ानूनी परिणामों के बारे में, ICJ की राय मांगी गई थी.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा है कि न्यायालय का परामर्श-मत में फ़लस्तीनी इलाकों को छीना जाने, उन पर यहूदी बस्तियाँ बसाने, जातीय विभाजन और रंगभेद सम्बन्धी गतिविधियों को निषिद्ध क़रार दिया गया है और उन्हें आदेशात्मक प्रवृत्ति का मानने के साथ-साथ इसराइल और उन तमाम देशों पर बाध्य समझा जाना चाहिए, जो फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़े का समर्थन करते हैं.

आत्म निर्णय का अधिकार

विशेषज्ञों के अनुसार, न्यायालय ने इस अवधारणा को भी निरस्त कर दिया है कि फ़लस्तीनी लोगों के आत्म निर्णय के अधिकार को, केवल इसराइल के साथ द्विपक्षीय बातचीत के ज़रिए ही हासिल किया जा सकता है. उन्होंने ध्यान दिलाया है कि इस अनिवार्यता ने, फ़लस्तीनियों को पिछले 30 वर्षों से, हिंसा, बेदख़ली और उनके अधिकारों के उल्लंघन का शिकार बनाया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “न्यायालय ने अन्ततः उस सिद्धान्त की पुष्टि कर दी है जो संयुक्त राष्ट्र की नज़र में भी स्पष्ट नहीं था: विदेशी सेना के नियंत्रण, नस्लीय विभाजन और रंगभेद से स्वतंत्रता के मुद्दे पर क़तई कोई बातचीत नहीं हो सकती है.”

उन्होंने न्यायालय की इस मान्यता का भी स्वागत किया है जिसमें कहा गया है कि फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल के नियंत्रण की स्थिति को, फ़लस्तीनियों के घरों को ध्वस्त करके, यहूदी बाशिन्दोंको नए घर बनाने के परमिट जारी करके और ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की गतिविधियों से, भूमि स्वामित्व में तब्दील करना, उन निषिद्धात्मक नियमों के ख़िलाफ़ है जिनमें अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र को छीनने के लिए बल प्रयोग करना मना है.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के इस ऐतिहासिक निर्णय से, फ़लस्तीनी लोगों के आत्म निर्णय के अधिकार को एक वास्तविकता में तब्दील होने और सभी के लिए स्वतंत्रता में निहित शान्ति स्थापना की कामना भी की है.

एक अहम साधन

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि न्यायालय का परामर्श-मत, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के लिए सम्मान बहाल करने में भी एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में काम करेगा, विशेष रूप में ऐसे पड़ाव पर जब अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय इसराइल द्वारा ग़ाज़ा में जनसंहार को अंजाम दिए जाने के आरोपों के मुक़दमे की सुनवाई कर रहा है.

उन्होंने कहा है कि ICJ का यह परामर्श-मत, इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में अवैध विशाल दीवार के निर्माण को अवैध बताने वाले, इसी न्यायालय के एक अन्य परामर्श-मत के 20 वर्ष बाद आया है.

उन्होंने कहा कि वो भी न्यायालय का एक ऐसा आदेशात्मक निर्णय था, जिसे इसराइल और संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने अनदेखा कर दिया जिससे, “दंडमुक्ति के चलन” को अनुमति मिली.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इसराइल ने 19 जुलाई को यह परामर्श-मत आने के बाद, ग़ाज़ा में आम लोगों व संसाधनों पर अपने हमले और भी सघन कर दिए हैं.

उन्होंने कहा है कि इसराइल को न्यायालय के इस परामर्श-मत व इस वर्ष आए अन्य निर्णयों का पालन करना होगा. “इसराइल को इस तरह का बर्ताव करना बन्द करना होगा, जैसेकि वो अकेला ऐसा देश है जो क़ानून से ऊपर है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से इसराइल को दिए जाने वाले हथियारों की आपूर्ति बन्द किए जाने का भी आग्रह किया है.

संयुक्त राष्ट्र के जिन स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने यह वक्तव्य जारी किया है उनकी नियुक्ति, जिनीवा स्थित, यूएन मानवाधिकार परिषद करती है और ये विशेषज्ञ इस संस्था की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

विशेष रैपोर्टेयर और यूएन कार्यकारी दल के सदस्यों को, मानवाधिकार परिषद की तरफ़ से, किसी विशेष मानवाधिकार स्थिति या देश की स्थिति की निगरानी करके, उस पर रिपोर्ट सौंपने का शासनादेश मिलता है.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ, अपनी व्यक्तिगत क्षमता में काम करते हैं, वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और उन्हें उनके इस काम के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

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