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Haryana Crisis: हरियाणा में अब भी इतने कॉन्फिडेंस में क्यों है बीजेपी, कांग्रेस क्यों नहीं उठा रही कोई कदम? ये है इन सवालों के जवाब

Haryana Crisis: हरियाणा में अब भी इतने कॉन्फिडेंस में क्यों है बीजेपी, कांग्रेस क्यों नहीं उठा रही कोई कदम? ये है इन सवालों के जवाब

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए एक और समस्या आ खड़ी हुई है। तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद, इसके पुराने साथी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने घोषणा की कि वो सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस के किसी भी कदम का समर्थन करेगी। यह घटनाक्रम 25 मई को राज्य की सभी 10 सीटों पर होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सामने आया है, जिसके बाद साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी का कहना है कि मुख्यमंत्री नायब सैनी के नेतृत्व वाली उसकी सरकार सुरक्षित है। बीजेपी इतने आत्मविश्वास से ये कह सकती है कि उसकी सरकार नहीं करेगी, इसके पीछे ये पांच बड़े कारण माने जा रहे हैं।

मुश्किल लग रहा है अविश्वास प्रस्ताव

भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने हाल ही में 13 मार्च को नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। सीएम सैनी ने ध्वनि मत से इसे जीत लिया। JJP के 10 विधायकों के अलग हो जाने के बाद, उस समय BJP के पास 41 विधायक थे, साथ ही छह निर्दलीय विधायक और हरियाणा लोकहित पार्टी (HLP) के एक विधायक ने उसे समर्थन दिया था, जिससे 90 के सदन में उसकी संख्या 48 हो गई।

कांग्रेस के 30 विधायक थे, INLD का एक विधायक था, जबकि एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू, जो हरियाणा में पूरे उतार-चढ़ाव के दौरान न इधर रहे न उधर, उन्होंने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। JJP की तरफ से व्हिप जारी करने के बाद उसके किसी भी विधायक ने वोट नहीं दिया, जिससे बीजेपी को आसानी से जीत मिल गई।

नियमों के मुताबिक, पिछले छह महीने के भीतर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता। इस बारे में पूछे जाने पर, हुड्डा ने सहमति जताई कि इस बिंदु पर प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है, लेकिन उन्होंने कहा कि “मुख्यमंत्री को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि उनकी सरकार बहुमत खो चुकी है।”

मार्च की और अब की स्थिति में कितना अंतर

आज, सदन में कुल नंबर 88 है, मनोहर लाल खट्टर ने करनाल और रणजीत सिंह ने रानिया के अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से इस्तीफा देकर करनाल और हिसार से बीजेपी के लोकसभा उम्मीदवार बन गए हैं।

मौजूदा नंबर गेम के हिसाब से बीजेपी को बहुमत के लिए 45 विधायकों की जरूरत है। खट्टर के इस्तीफे के साथ, उसके पास 40 विधायक हैं, साथ ही दो निर्दलीय और HLP विधायक का समर्थन है, जिससे उसकी कुल संख्या 43 हो गई है।

भाजपा ने जेजेपी के 10 विधायकों में से तीन के समर्थन का भी दावा किया है, जिन्होंने खुद को दुष्यंत चौटाला से दूर कर लिया है। उन्हें “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए नोटिस दिया गया है। तीनों को मिलाकर बीजेपी सरकार के पास 46 विधायकों का समर्थन है, जो सामान्य बहुमत से सिर्फ 1 ज्यादा है।

अब अगर वे दलबदल के लिए अयोग्य घोषित भी हो जाते हैं, तो भी सदन की ताकत घटकर 85 रह जाएगी और बहुमत का आंकड़ा 43 हो जाएगा। ऐसे बीजेपी के पास तब भी 43 सीटें बरकरार रहेंगी।

लेकिन कांग्रेस ने दावा किया है कि कई दूसरे विधायक उसके संपर्क में हैं, जैसा कि बीजेपी ने किया है।

क्या विपक्ष दावा ठोक सकता है?

सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए उसे पहले राज्यपाल से मिलने का समय लेना होगा। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के कारण कांग्रेस को यह करना ही होगा, लेकिन अभी तक उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है।

बुधवार को, कांग्रेस को ऐसा कोई कदम उठाने की शर्त पर ही अपना समर्थन देते हुए, दुष्यंत ने कहा, “सरकार को गिराने के लिए कदम उठाना विपक्ष के नेता हुड्डा पर निर्भर है।”

The Indian Express से बात करते हुए हुडा ने कहा कि दुष्यंत भी पहल कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “BJP के नेतृत्व वाली सरकार में साढ़े चार साल रहने के बाद वो ये बातें कह रहे हैं। अगर वो बीजेपी की बी-टीम नहीं हैं, तो उन्हें राज्यपाल से मिलना चाहिए और अपने 10 विधायकों की परेड करानी चाहिए, और फिर मैं विधायक भारत भूषण बत्रा के नेतृत्व में अपने 10 विधायकों को राजभवन भेजूंगा।

JJP के विधायकों का भरोसा नहीं

भले ही कांग्रेस और जेजेपी दोनों राज्यपाल से मिलें और दावा पेश करने के लिए अपने-अपने विधायकों की परेड कराएं, लेकिन राज्यपाल क्या करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। भले ही राज्यपाल राज्य सरकार को एक निश्चित समय के भीतर अपना बहुमत साबित करने का निर्देश देते हैं, फिर भी संभावना ज्यादा है कि JJP के कुछ विधायक या तो दल बदल देंगे या मतदान से अनुपस्थित रहेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो बीजेपी फिर से बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है।

साथ ही, कांग्रेस का पूरा ध्यान अब 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों पर है। वर्तमान में सभी 10 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है और वो उन्हें बरकरार रखने के लिए गहन प्रचार कर रही है।

विधानसभा चुनाव से पहले फिर उठ सकता है मुद्दा

हरियाणा विधानसभा चुनाव भी अब ज्यादा दूर नहीं हैं, अक्टूबर में होने हैं। ऐसी संभावना है कि लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) खत्म होने के बाद विपक्ष विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए इस मुद्दे को फिर से उठा सकता है।

हरियाणा बीजेपी नेताओं को भरोसा है कि उनकी सरकार ‘बरकरार’ है और अगर जरूरत पड़ी तो ‘बाकी विधायक भी हमारा समर्थन करेंगे।’ खट्टर ने मीडियाकर्मियों से कहा, “कांग्रेस और JJP को हमारी चिंता नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, उन्हें पहले अपना घर व्यवस्थित करना चाहिए। हमारी सरकार को कोई खतरा नहीं है। लोगों की सेवा करते रहेंगे। हम अगले विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करेंगे, ताकि ऐसी स्थिति फिर कभी पैदा न हो।”

राज्यपाल पर बहुत कुछ निर्भर

विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा, “आधिकारिक तौर पर मुझे किसी भी विधायक से कोई सूचना नहीं मिली है। मीडिया में ही ऐसी खबरें आ रही हैं कि तीन निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है। आमतौर पर, जब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो अगला प्रस्ताव केवल छह महीने के बाद ही पेश किया जा सकता है। हालांकि राज्यपाल, एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में, जरूरत पड़ने पर कोई भी निर्णय ले सकते हैं। अगर वो हमें कोई निर्देश देंगे, तो हम उसका पालन करेंगे।”

पूर्व गृह मंत्री अनिल विज, जो खट्टर की जगह सैनी को लाने और उन्हें सरकार में जगह नहीं मिलने के बाद से नाराज चल रहे हैं, उन्होंने कहा, “मुझे दुख है कि निर्दलीय विधायकों ने आज अपना समर्थन वापस ले लिया है, लेकिन यह हुडा साहब की इच्छा है। यह कभी पूरा नहीं होगा, क्योंकि हमारे तरकश में बहुत सारे तीर हैं।”

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