दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की एक्साइज पॉलिसी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) का कहना है कि 100 करोड़ रुपये हवाला रूट से ट्रांसफर हुए। ईडी ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल की ईडी द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने की संभावना पर भी विचार करेगी। बता दें कि केजरीवाल की न्यायिक हिरासत मंगलवार, 7 मई को खत्म हो रही है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांका दत्ता की पीठ दिल्ली के मुख्यमंत्री की याचिका पर सुनवाई कर रही है।
ईडी (Enforcement Directorate) की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने अदालत को बताया कि 176 फोन नष्ट कर दिए गए हैं और हवाला ऑपरेटर्स को नकदी भेजी गई है। 100 करोड़ रुपये का नकद लेनदेन हवाला के जरिए ट्रांसफर किया गया और दूसरे राज्यों में खर्च किया गया। उनका कहना है कि दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को जमानत देने से इनकार करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ईडी ने 100 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की थी।
₹100 करोड़ कैसे बन गए ₹1100 करोड़
जस्टिस खन्ना ने कहा कि 100 करोड़ रुपये अपराध की आय थी। उन्होंने पूछा कि यह दो या तीन वर्षों में 1,100 करोड़ रुपये कैसे हो गया। जरूर रिटर्न की दर अभूतपूर्व होगी। मामले में केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पैरवी सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ईडी से मामले की फाइलें पहले पेश करने को कहा। साथ ही ईडी से यह भी कहा कि यह देखने की जरूरत है कि एक चरण से दूसरे चरण तक जांच का क्या हुआ। हमारे सामने मुद्दा बहुत सीमित है और यह धारा 19 का अनुपालन है, हमें यह देखने की जरूरत है कि जांच की प्रकृति क्या है।
राजनीति से प्रेरित नहीं है मामला
एसवी राजू ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जिस समय हमने जांच शुरू की थी, उस वक्त वह केजरीवाल के खिलाफ नहीं थी। बाद में जब हमें सबूत मिले, तब जांच उस दिशा में शिफ्ट हुई। एसवी राजू ने ईडी का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि मामला राजनीति से प्रेरित है। ईडी का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है।
एसवी राजू का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि केजरीवाल गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान गोवा के ग्रैंड हयात नामक सात सितारा होटल में रुके थे। उनके बिलों के एक हिस्से का भुगतान दिल्ली सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट की ओर से किया गया था और एक हिस्से का भुगतान चनप्रीत सिंह के माध्यम से किया गया था।