पर्यावरण

भारत: पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर कचरा प्रबन्धन पर बल

भारत: पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर कचरा प्रबन्धन पर बल

35 वर्षीय सफ़ाई साथी (कचरा कर्मी) संदीप पवार, मुंबई की दहिसर सामग्री रिकवरी सुविधा (MRF) में अपने कामकाज का ज़िक्र करते हुए धीरे से मुस्कुराते हैं. प्लास्टिक कचरे के लिए बनी कन्वेयर बेल्ट से टूटे हुए काँच के टुकड़े निकालते हुए वो कहते हैं, “यहाँ आने के बाद मुझे अहसास हुआ कि कचरा अलग करना एक सम्मानजनक पेशा भी हो सकता है. पहले, मैं खुले कचरा घर में काम करता था, जहाँ गर्मी या प्रदूषण से बचने के लिए कोई सुरक्षात्मक उपाय भी नहीं था. लेकिन यहाँ स्थिति अलग हैं.”

वर्तमान में भारत में हर साल 6 करोड़ 20 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें ठोस, प्लास्टिक और ई-कचरा सामग्री प्रमुख है. इस कचरे का प्रबन्धन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण, औपचारिक और अनौपचारिक आर्थिक प्रणालियों, मैनुअल तकनीकों और आधुनिक तकनीकों की एक जटिल प्रक्रिया से किया जाता है.

भारत सरकार की स्वच्छ भारत मिशन जैसी पहलों के तहत, देश भर की नगरपालिकाओं में इकट्ठा होने वाले ठोस कचरे को वैज्ञानिक तरीक़े से संसाधित करने का लक्ष्य रखा गया था.

वर्तमान में, कुल उत्पन्न कचरे का 75 प्रतिशत हिस्सा संसाधित व रीसायकिल किया जा रहा है, जोकि 2014 में 17 प्रतिशत था, और यह एक उल्लेखनीय वृद्धि है. लेकिन साथ ही कचरा भी बढ़ता जा रहा है, जिसे देखते हुए उसके प्रबन्धन व रीसायकलिंग के प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता है.  

संदीप जैसे सफ़ाई साथी, कचरा प्रबंधन के मज़बूत स्तम्भ हैं.

ज़मीनी स्तर पर, संदीप जैसे सफ़ाई साथी कचरा एकत्र करते हैं. इस काम में लगभग 15 लाख सफ़ाई साथियों का मज़बूत कार्यबल लगा है, जिसमें कचरा बीनने वाले और अलग करने वाले शामिल हैं. 

ये सफ़ाई साथी, री-सायकिल योग्य कचरे को छाँटकर, अलग-करके और ​​फेंके गए कचरे को अर्थव्यवस्था में वापिस लाकर, कुशल अपशिष्ट प्रबन्धन एवं संसाधन दक्षता में योगदान देते हैं. हालाँकि, इनमें से ज़्यादातर संख्या अनौपचारिक श्रमिकों की है, जिनके काम को कोई औपचारिक मान्यता नहीं मिलती है. 

उन्हें अक्सर हाशिए पर धकेले जाने, गम्भीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करने और सामाजिक एवं क़ानूनी सुरक्षा से वंचित होने का ख़तरा रहता है.

इसके मद्देनज़र, उनके कामकाज के लिए एक सुरक्षित माहौल प्रदान करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना, देश की अपशिष्ट प्रबन्धन प्रणाली को आगे बढ़ाने तथा एक चक्रीय अर्थव्यवस्था बनाने का दृष्टिकोण हासिल करने के लिए बहुत अहम है.

यूएनडीपी के सहयोग से स्थापित, मुंबई का एक सूखा कचरा संग्रह केन्द्र.

भारत में स्थित यूएनडीपी, आधुनिक अपशिष्ट प्रबन्धन केंद्र विकसित करने और सफ़ाई साथियों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र एवं नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है. मुंबई का दहिसर एमआरएफ़ केंद्र एक ऐसी ही सुविधा है.

एमआरएफ़ में दिन की शुरुआत, सुबह जल्दी ही होती है. कचरा संग्रहण के लिए जाने से पहले, सफ़ाई साथी सुरक्षा उपकरण पहनते हैं. फिर पृथक्कीरण (उसे अलग करने) वाले कंटेनरों से सुसज्जित ट्रकों पर, घरों से कचरा इकट्ठा करने के लिए निकल पड़ते हैं. 

एमआरएफ़ में, कचरे से भरे ट्रकों का वज़न किया जाता है. वज़न करने के बाद, सफ़ाई साथी सामग्री को विभिन्न श्रेणियों में क्रमबद्ध तरीक़े से अलग करके,कन्वेयर बेल्ट पर भेजा जाता है. अलग किए गए कचरे को री-सायकलिंग संयंत्रों में भेजने से से पहले पीसा जाता है.

भारत में हर साल लगभग 6 करोड़ 20 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से एक बड़ी मात्रा प्लास्टिक की होती है.

अपशिष्ट घटाने व री-सायकिल करने की दिशा में व्यवहार परिवर्तन भी एक महत्वपूर्ण क़दम है. चूँकि सफ़ाई साथी, कचरा इकट्ठा करने के लिए घर-घर जाते हैं, वे घरों में लोगों को कचरा पृथक्कीरण के महत्व पर जागरूक करने की कोशिश करते हैं. साथ ही, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इससे न केवल उनका काम आसान व अधिक कुशल बनेगा, बल्कि पर्यावरण की रक्षा होगी, जिससे हर एक व्यक्ति को लाभ पहुँचेगा.

संदीप और उनके सहयोगियों का दिन का काम ख़त्म होने वाला था, और आकाश में बादल छाने लगे थे. सभी सफ़ाई साथी मुस्कुराते हुए, हल्की-फुल्की बातों में मग्न थे – मानो अपशिष्ट प्रबन्धन के प्रति दृष्टिकोण व कामकाज में बदलाव का प्रमाण – एक मौन विजय का संकेत दे रहे हों. 

आँकड़ों और रणनीतियों से परे, उनके अनुभव कचरा प्रबन्धन के मानवीय आयाम का प्रतीक हैं, जहाँ श्रम की गरिमा बहाल करके, उन लोगों के योगदान को मान्यता दी जा रही है, जो हमारे शहरों को साफ़ रखने के लिए अथक परिश्रम करते हैं.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.

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