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9 हवन कुंड और 121 विद्वान… कुछ ऐसे होगी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा, ‘शुभ मुहूर्त से होगा राष्‍ट्र का कल्‍याण’

Ram Mandir Inauguration: अयोध्या (Ayodhya) में भगवान राम के अपने भव्य मंदिर में विराजमान होने में अब महज 16 दिन का समय बचा है। इस समारोह को देशभर में एक पर्व की तरह मनाया जा रहा है। समय कम है और तैयारियों जोरों पर। हर कोई चाहता है कि रामलला के इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह को सभी तरह से एक यादगार पल बनाया जाए। इसी कड़ी में धार्मिक अनुष्ठान को लेकर तैयारियां भी खूब हो रही हैं। सूत्रों की मानें, तो प्राण प्रतिष्ठा की पूजा देशभर के 121 वैदिक विद्वानों संपन्न कराएंगे।

बड़ी बात ये है कि अयोध्या में 16 जनवरी से ही धार्मिक अनुष्ठान शुरू कर दिए जाएंगे। इसके लिए काशी के वैदिक विद्वान लक्ष्मीकांत दीक्षित के पुत्र अरुण दीक्षित अयोध्या में करीब एक दर्जन वैदिक विद्वानों के साथ धार्मिक अनुष्ठान की तैयारी में लगे हुए हैं। इन सभी अनुष्ठानों के लिए राम जन्मभूमि परिसर में यज्ञ शाला भी बनाई जा रहा है।

‘शुभ मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा करने से होगा राष्‍ट्र का कल्‍याण’

अरुण दीक्षित बताते हैं, “रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की विधि 16 जनवरी से शुरू होगी। इसके लिए राम मंदिर परिसर में हवन कुंड बनाए जा रहे हैं, जिसमें 9 कुंड बनाए जाएंगे। हम पांच विद्वान काशी से आए हैं।”

उन्होंने आगे बताया कि मृगषिरा या मृगशीर्ष नक्षत्र में रामलला की स्‍थापना करना बेहद शुभ रहेगा। ज्‍योतिष में मृगषिरा नक्षत्र को कृषि कार्य, व्‍यापार, विदेश यात्रा के लिए सर्वश्रेष्‍ठ माना गया है। क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है, ऐसे में रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा इस शुभ मुहूर्त में करने से राष्‍ट्र का कल्‍याण होगा।

क्या होगी पूरी विधि?

वैदिक विद्वान ने बताया कि अनुष्ठान की शुरूआत 16 जनवरी को प्रायश्चित पूजन से होगी। यजमान की शुद्धता के लिए प्रायश्चित पूजन किया जाता है। इसी दिन मां सरयू की भी पूजा होगी। पूजन के लिए पांच वेदियां बनाई जा रही हैं। पद्मिनी वेदी में भगवान को बिठाकर पूजन के संस्कार किए जाएंगे। इस वेदी में विराजमान रामलला की मूर्ति ही रखी जाएगी।

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इसके अलावा 200 कलश तांबे के पवित्र नदियों के जल के साथ प्रभु राम का अभिषेक किया जाएगा। मंदिर के ईशान कोण पर भगवान के प्राण प्रतिष्ठा का मंडप बनाया जा रहा है।

ईंट, बालू, मिट्टी, गोबर, पंचगव्य और सीमेंट आदि जैसी सामग्रियों का इस्तेमाल कर मंदिर परिसर में नौ हवन कुंड तैयार किए जा रहे हैं।

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