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2050 तक, बच्चों के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियाँ उपजने की आशंका, UNICEF की चेतावनी

2050 तक, बच्चों के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियाँ उपजने की आशंका, UNICEF की चेतावनी

यूनीसेफ़ ने बुधवार, 20 नवम्बर को ‘विश्व बाल दिवस’ के अवसर पर बदलती दुनिया में बचपन के भविष्य पर ‘The State of the World’s Children 2024: The Future of Childhood in a Changing World’,  नामक अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें इन तीन बड़े रुझानों को पेश किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर अपने सन्देश में क्षोभ जताया कि 21वीं सदी में बच्चों को भूखे पेट, अशिक्षित, और बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के जीते हुए देखना स्तब्धकारी है.

“यह मानवता की चेताना पर एक धब्बा है जब निर्धनता व आपदाओं के कारण हुई उथलपुथल में बच्चों की ज़िन्दगियाँ फँस जाती हैं.”

जलवायु आपात स्थिति

यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि 2000 के दशक की तुलना में आने वाले वर्षों में बच्चों के लिए भीषण ताप लहरों का सामना करने का जोखिम आठ गुना, और बाढ़ का जोखिम तीन गुना तक बढ़ सकता है.

पिछले वर्ष रिकॉर्ड ध्वस्त करने वाले तापमानों के बाद, जलवायु जोखिमों का असर बच्चों पर अन्य की तुलना में कहीं अधिक होगा, जोकि उनके सामाजिक-आर्थिक हालात व संसाधनों तक उनकी पहुँच पर आधारित हो सकता है.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने बताया कि बच्चों को जलवायु झटकों से लेकर ऑनलाइन ख़तरों तक, विविध प्रकार के संकटों का अनुभव करना पड़ रहा है और इनकी गहनता समय के साथ बढ़ने की आशंका है.

“2050 में एक बेहतर भविष्य सृजित करने के लिए, कल्पना से कहीं अधिक की आवश्यकता होगी. इसके लिए क़दम उठाने होंगे. दशकों की प्रगति, विशेष रूप से लड़कियों के लिए ख़तरे में है.”

जनसांख्यिकी में बदलाव

रिपोर्ट बताती है कि बच्चों की जनसंख्या के मामले में विशाल बदलाव आ रहे हैं, और सब-सहारा अफ़्रीका व दक्षिण एशिया में 2050 तक बच्चों की सबसे अधिक आबादी होगी.

हालांकि बुज़ुर्ग जनसंख्या का प्रतिशत भी बढ़ रहा है और दुनिया के हर क्षेत्र में आबादी में बच्चों की हिस्सेदारी में कमी आने का अनुमान है.

ऊँचे स्तर पर होने के बावजूद, अफ़्रीका में बाल आबादी 40 फ़ीसदी से नीचे पहुँच जाएगी, जबकि 2000 के दशक में यह क़रीब 50 प्रतिशत थी. वहीं पूर्वी एशिया व पश्चिमी योरोप में यह 17 प्रतिशत से नीचे पहुँच सकती है, जहाँ 2000 के दशक में यह आँकड़ा क्रमश: 29 फ़ीसदी व 20 फ़ीसदी था.

आबादी में आने वाले इन बदलावों से चुनौतियाँ उपजती हैं और कुछ देशों पर बाल आबादी के लिए सेवाओं का विस्तार करने का बोझ बढ़ता है, जबकि अन्य बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं.

डिजिटल खाई

कृत्रिम बुद्धिमता और अत्याधुनिक टैक्नॉलॉजी के उभरने से नए अवसर सृजित हुए हैं, मगर रिपोर्ट में डिजिटल क्षेत्र में व्याप्त खाई को भी उजागर किया गया है.

2024 में उच्च-आय वाले देशों में 95 फ़ीसदी लोगों की इंटरनैट तक पहुँच थी, जबकि निम्न-आय वाले देशों में यह आँकड़ा केवल 26 फ़ीसदी है.

अध्ययन के अनुसार, विकासशील देशों में युवाओं को डिजिटल कौशल विकसित करने में संघर्ष करना पड़ रहा है और इससे उनके लिए शिक्षा व पेशेवर संभावनाओं पर असर हो रहा है.

आशा के संकेत

इन चिन्ताओं के बावजूद, कुछ सकारात्मक रुझान भी उभरे हैं. जैसेकि जीवन-प्रत्याशा का बढ़ना जारी है और यह अनुमान है कि 2050 तक विश्व भर में 96 फ़ीसदी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराई जा सकेगी.

साथ ही, शिक्षा व सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश किए जाने और सख़्त पर्यावरणीय संरक्षण उपायों को अपनाए जाने से, लैंगिक खाई को कम किया जा सकता है और जोखिमों से निपटा जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने बुनियादी ढाँचे, टैक्नॉलॉजी, अति-आवश्यक सेवाओं और सामाजिक समर्थन व्यवस्था में और अधिक निवेश की अपील की है ताकि हर बच्चे को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जा सके.

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