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2030 तक, एड्स के ख़ात्मे के लिए, मानवाधिकारों पर केन्द्रित उपाय अपनाना ज़रूरी

2030 तक, एड्स के ख़ात्मे के लिए, मानवाधिकारों पर केन्द्रित उपाय अपनाना ज़रूरी

Take the rights path to end AIDS, शीर्षक वाली यह रिपोर्ट बताती है कि कथित कलंक, भेदभाव और दंडित करने वाले क़ानूनों की वजह से एचआईवी के विरुद्ध लड़ाई में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है.

एचआईवी के उपचार व रोकथाम की दिशा में अब तक ठोस प्रगति दर्ज की गई है, मगर मानवाधिकारों के उल्लंघन की वजह से अति-आवश्यक सेवाओं तक पहुँच पाना कठिन साबित हो रहा है.

2023 में छह लाख 30 हज़ार लोगों की एड्स-सम्बन्धी बीमारियों से मौत हुई और 13 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हुए. रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं, लड़कियों और एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों समेत हाशिए पर धकेल दिए गए अन्य समुदायों पर इसका ग़ैर-आनुपातिक असर होता है.

सब-सहारा अफ़्रीका में यह विसंगति विशेष रूप से नज़र आती है, जहाँ हर दिन, 15-24 वर्ष आयु वर्ग में 570 युवतियाँ एचआईवी से संक्रमित होती हैं. पुरुषों की तुलना में उनके संक्रमित होने की दर तीन गुना है.

विश्व भर में, 93 लाख लोग एचआईवी की अवस्था में जीवन गुज़ार रहे हैं, जिन्हें जीवनरक्षक उपचार नहीं मिल पा रहा है.

आपराधिकरण से प्रगति में अवरोध

अध्ययन में उन दंडात्मक क़ानूनों पर क्षोभ व्यक्त किया गया है, जिनकी वजह से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए यह संकट और गहरा हो रहा है. वर्ष 2023 में, 63 देशों में समलैंगिक रिश्तों को अब भी अपराध समझा जाता है.

इन देशों में समलैंगिक पुरुषों और पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने वाले अन्य पुरुषों में, एचआईवी संक्रमण के मामले उन देशों की तुलना में पाँच गुना अधिक हैं, जहाँ ऐसे क़ानून मौजूद नहीं हैं.

ऐसे दंडात्मक क़ानूनों व नीतियों की वजह से सम्वेदनशील परिस्थितियों से जूझ रहे लोगों को ज़रूरी सहायता नहीं मिल पाती है, जोकि एचआईवी की रोकथाम करने, परीक्षण कराने और उपचार के लिए अहम है.

विशेषज्ञों का मानना है कि हाशिए पर रहने वाले इन समुदायों को दंडित किए जाने के बजाय यह ज़रूरी है कि देशों की सरकारों द्वारा उनके मानवाधिकारों की रक्षा की जाए.

2021 में एचआईवी/एड्स के अन्त के लिए UNAIDS के राजनैतिक घोषणापत्र में वर्ष 2025 तक पाबन्दी लगाने वाले क़ानूनों को हटाए जाने की पुकार लगाई गई थी, मगर प्रगति बहुत धीमी साबित हुई है.

नवाचार पर बल

एचआईवी/एड्स उपचार के लिए वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रगति हासिल की गई है, जैसेकि इंजेक्शन के ज़रिये दी जाने वाली वो दवाएँ जोकि लम्बे समय तक रक्त में मौजूद रहती हैं.

मगर, ऊँची क़ीमतों और सीमित स्तर पर उत्पादन की वजह से वे पहुँच से बाहर हैं.

जिनीवा स्थित युनिवर्सिटी अस्पताल में एचआईवी विभाग की ऐलेक्सांड्रा काल्मि ने कहा कि जीवन की रक्षा करने वाले चिकित्या उपायों व उपचार के साथ किसी वस्तु जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता है.

उनके अनुसार रोकथाम व उपचार के इन क्रान्तिकारी विकल्पों को जल्द से जल्द हर किसी के लिए मुहैया कराना होगा.

रिपोर्ट में मानवाधिकार-केन्द्रित उपायों को अपनाए जाने पर बल दिया गया है ताकि ऐसे जीवनरक्षक नवाचारी उपचार विकल्पों की न्यायसंगत सुलभता सुनिश्चित की जा सके. 

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