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2025: अनिश्चितता के बीच, वैश्विक आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान

2025: अनिश्चितता के बीच, वैश्विक आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान

आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (DESA) ने गुरूवार को ‘विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावनाएँ 2025’ नामक अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है.

रिपोर्ट बताती है कि विश्व अर्थव्यवस्था ने सिलसिलेवार चुनौतियों का सामना किया है, मगर इसकी रफ़्तार थम गई है और अब यह वैश्विक महामारी से पहले के वार्षिक औसत, 3.2 प्रतिशत, से कम बनी हुई है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट की प्रस्ताव में वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की पुकार लगाई है.

“देश इन जोखिमों को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकते हैं. हमारी आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था में, एक ओर महसूस किए गए झटकों से दूसरी ओर क़ीमतों में उछाल आता है. हर देश प्रभावित है और उसे समाधान का हिस्सा बनाना होगा.”

क्षेत्रवार स्थिति: असमान प्रदर्शन

संयुक्त राज्य अमेरिका में आर्थिक वृद्ध की दर वर्ष 2024 में 2.8 प्रतिशत से घटकर इस साल 1.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. श्रम बाज़ार में सुस्ती आने और उपभोक्ता व्यय की धीमी रफ़्तार इसकी वजह है.

वहीं योरोप में आर्थिक हालात में मामूली सुधार आने की आशा है. 2024 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत थी, जोकि 2025 में 1.3 प्रतिशत तक पहुँच सकती है. योरोपीय क्षेत्र में मुद्रास्फीति में नरमी आई है, श्रम बाज़ारों का प्रदर्शन भी मज़बूत है, मगर उत्पादकता में कमज़ोरी और बुज़ुर्ग होती आबादी जैसे रुझानों से आर्थिक परिदृश्य पर असर हो रहा है.

वहीं, पूर्वी एशिया में आर्थिक वृद्धि की दर इस साल 4.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जोकि मुख्यत: चीन के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर है, जहाँ वृद्धि की रफ़्तार 4.8 प्रतिशत होने की सम्भावना है.

दक्षिण एशिया सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र साबित होने का अनुमान है, जहाँ वर्ष 2025 में जीडीपी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसकी अगुवाई 6.6 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ भारत द्वारा की जाएगी. साथ ही, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में हालात बेहतर हुए हैं. हालांकि इस क्षेत्र में बाहरी मांग में गिरावट है, कर्ज़ चुनौतियाँ जारी हैं और सामाजिक अशान्ति का जोखिम भी है.

अफ़्रीका की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पिछले वर्ष 3.4 प्रतिशत के आँकड़े से बढ़कर इस साल 3.7 प्रतिशत तक पहुँच सकती है, जिसकी एक वजह मिस्र, नाइजीरिया और दक्षिण अफ़्रीका में दर्ज किया गया सुधार है. मगर, हिंसक टकराव, कर्ज़ की ऊँची क़ीमतों और जलवायु सम्बन्धी चुनौतियों के कारण क्षेत्र की आर्थिक सम्भावनाओं पर अनिश्चितता बरक़रार है.

वैश्विक व्यापार में इस वर्ष 3.2 प्रतिशत का विस्तार होने का अनुमान है, जोकि एशिया से हुए मज़ूबत निर्यात और सेवा व्यापार में उछाल से सम्भव हो पाएगा.

दुनिया भर में मुद्रास्फीति में कुछ कमी आने की सम्भावना जताई गई है, और यह घटकर 3.4 प्रतिशत के आँकड़े पर पहुँच सकती है, जिससे व्यवसायों व घर-परिवारों को राहत मिलने की आशा है.

विकासशील देशों के समक्ष चुनौतियाँ

अनेक विकासशील देशों के सामने मुद्रास्फीतित सम्बन्धी दबाव बने रहने की सम्भावना जताई गई है, और हर पाँच में से एक देश को दहाई अंकों में महंगाई से जूझना पड़ सकता है.

कर्ज़ का ऊँचा बोझ होने और अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण तक सीमित पहुँच होने की वजह से पुनर्बहाली के रास्ते में अवरोध जारी रहेंगे.

खाद्य मुद्रास्फीति भी एक बड़ा मुद्दा है, और क़रीब आधी संख्या में विकासशील देशों में यह पाँच फ़ीसदी से ऊपर बनी हुई है. इससे खाद्य असुरक्षा गहरी हुई है, विशेष रूप से निम्न-आय वाले उन देशों में, जो पहले से ही चरम मौसम घटनाओं, हिंसक टकराव और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं.

रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति बरक़रार रहने और आर्थिक प्रगति की दर में सुस्ती से लाखों लोग निर्धनता के गर्त में धँस सकते हैं.

बहुपक्षीय कार्रवाई की पुकार

रिपोर्ट में बहुपक्षीय कार्रवाई का आहवान किया गया है ताकि कर्ज़, असमानता और जलवायु परिवर्तन समेत आपस में गुंथे हुए अन्य वैश्विक संकटों से निपटा जा सके.

देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि स्वच्छ ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और शिक्षा व स्वास्थ्य समेत महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश में ध्यान केन्द्रित किया जाना होगा.

अति-महत्वपूर्ण खनिजों में निहित जोखिमों और आर्थिक अवसरों के बेहतर प्रबन्धन के लिए मज़बूत अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को अहम माना गया है, ताकि विकासशील देशों के लिए टिकाऊ और समतापूर्ण लाभ सुनिश्चित किए जा सकें.

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