यूएन महासचिव एंतोनियो गटेरेश ने गुरूवार को न्यूयॉर्क में मंत्रियों की एक उच्चस्तरीय बैठक में यह बात कही है.
ग़ौरतलब है कि ग़ाज़ा में लगभग एक वर्ष की भीषण इसराइली बमबारी में 41 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 90 हज़ार से अधिक घायल हुए हैं. इनमें बहुसंख्या महिलाओं और बच्चों की है.
यूएन प्रमुख ने कहा, “लगभग 20 लाख फ़लस्तीनी लोग इस समय इतने छोटे स्थान में सिमटकर रह गए हैं जिसका दायरा शंघाई अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बराबर है, वो केवल जीवित भर हैं, जीवन नहीं जी पा रहे हैं – जहाँ गन्दगी के नालों का पानी रास्तों-सड़कों पर फैला हुआ है, कूड़े-कचरे और गन्दगी के ढेर लगे हुए हैं और मलबे के पहाड़ इकट्ठे हो गए हैं.”
“उनके सामने केवल एक निश्चितता है और वो ये कि आने वाला कल और भी भीषण व बदतर होगा.”
UNRWA का त्याग
UNRWA, ग़ाज़ा में अलबत्ता आशा की एक मात्र किरण बची है, फिर भी उसके 222 कर्मचारी और उनके परिवारों के बहुत से सदस्य मारे गए हैं. उनमें से कुछ लोगों की मौत तो तब हुई जब वो आश्रय स्थलों में सेवाएँ दे रहे थे और बमबारी के शिकार हो गए. यूएन इतिहास में उसके कर्मचारियों की यह अभी तक की सबसे बड़ी मृतक संख्या है.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि UNRWA के कर्मचारियों पर केवल इसलिए हमले किए गए हैं कि वो अपना काम कर रहे थे, और इसके अलावा ग़ाज़ा में मानवीय सहायता कार्रवाई का दम घोंट दिया गया है.
उन्होंने बताया, “मानवीय सहायता कर्मियों द्वारा की जाने वाली सहायता आपूर्ति की व्यवस्था के लिए संरक्षण और तनाव-कमी नाकाम हो गए हैं. UNRWA के पूर्वी येरूशेलम में स्थित मुख्यालय से उसे बेदख़ल करने के प्रयास जारी हैं, और UNRWA को राजनैतिक मोर्चे पर भी नहीं बख़्शा गया है.”
“इसमें एक ऐसा व्यवस्थागत दुष्प्रचार शामिल है, जो इस एजेंसी के लम्बे समय से चले आ रहे कामकाज की साख़ को ख़राब करता है.”
उन्होंने इसराइली संसद नैसेट में एक विधेयक की तरफ़ भी ध्यान दिलाया जिसमें UNRWA को एक आतंकवादी संगठन घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया है और अगर यह विधेयक क़ानून बन गया तो यह एजेंसी इसराइली क्षेत्र में अपनी सेवाएँ नहीं दे पाएगी.