सूडान में यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रतिनिधि डॉक्टर शिबल सहबानी ने बताया कि परस्पर विरोधी सैन्य बलों के बीच भीषण लड़ाई की वजह से, अल फ़शर तक पहुँच पाना पूरी तरह से असम्भव है.
इस बीच, सूडान में सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बल (RSF) के प्रतिनिधियों के बीच जिनीवा में युद्धविराम पर सहमति बनाने के इरादे से बातचीत जारी है.
15 महीने पहले, अप्रैल 2023 में लोकतांत्रिक शासन की दिशा में आगे बढ़ने के मुद्दे पर परस्पर विरोधी सैन्य बलों के बीच हिंसक टकराव भड़क उठा था. 2019 में सूडान के पूर्व राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया था और फिर 2021 में सैन्य तख़्तापलट हुआ.
WHO प्रतिनिधि ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि लगातार लड़ाई जारी रहने की वजह से दारफ़ूर, कोर्दोफ़ान, ख़ारतूम और अल जज़ीरा प्रान्त क़रीब पूरी तरह से मानवतावादी व स्वास्थ्य सहायता से कट चुके हैं.
“दारफ़ूर में स्थिति विशेष रूप से चिन्ताजनक है, जहाँ अल फ़शर जैसे स्थानों पर…घायल अपने लिए तत्काल देखभाल हासिल नहीं कर सकते हैं. बच्चे और गर्भवती व स्तनपान करा रही महिलाएँ पिछले कुछ समय से भूख के कारण कमज़ोर हैं.”
सूडान में लड़ाई राजधानी ख़ारतूम में टकराव शुरू हुआ जिसमें भारी हथियारों और लड़ाकू जेट का भी इस्तेमाल किया गया. इसके बाद देश के अन्य क्षेत्र भी लड़ाई की चपेट में आ गए.
मानवीय सहायता टीमों ने युद्धरत पक्षों से अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून के अनुरूप आम नागरिकों, अस्पतालों समेत सार्वजनिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने की पुकार लगाई है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी अधिकारी के अनुसार, ज़रूरतमन्दों तक मानवीय राहत पहुँचाने के लिए मार्ग की तत्काल आवश्यकता है, ताकि स्वास्थ्य हालात को बद से बदतर होने से रोका जा सके.
राहत आपूर्ति के लिए प्रयास
स्वास्थ्य देखभाल सामग्री के भंडार को फ़िलहाल अल फ़शर के कुछ अस्पतालों में मुहैया कराया गया है, मगर यह पर्याप्त नहीं है, और हालात इस तरह से जारी नहीं रह सकते हैं.
उन्होंने बताया कि मानवीय सहायता में समन्वय के लिए यूएन कार्यालय (OCHA) विभिन्न पक्षों के साथ बातचीत में जुटा है, ताकि ट्रकों के ज़रिये राहत सामग्री को ज़रूरतमन्दों तक पहुँचाया जा सके.
डॉक्टर सहबानी हाल ही में सूडान के पड़ोसी देश चाड के मिशन पर थे, जहाँ हताश शरणार्थियों ने उन्हें बताया कि उनके सूडान छोड़ने की मुख्य वजह भूख, अकाल है.
“उन्होंने कहा कि यह असुरक्षा नहीं है, यह बुनियादी सेवाओं की सुलभता का अभाव भी नहीं है. लेकिन चूँकि हमारे पास वहाँ खाने के लिए कुछ नहीं है.”
दारफ़ूर से जान बचाकर चाड की पूर्वी सीमा, आद्रे में शरण लेनी वाली एक महिला ने WHO अधिकारी को बताया कि उनके द्वारा खाने के लिए जो कुछ भी स्थानीय स्तर पर उगाया जाता था, उसे लड़ाकों ने छीन लिया.
यह महिला तीन दिन तक अपने बच्चों के साथ सुरक्षा की तलाश में पैदल चलने के बाद वहाँ पहुँची और इस पूरी यात्रा के दौरान उनके पास कुछ खाने के लिए नहीं था.
जिनीवा वार्ता
युद्ध में अब तक 14 हज़ार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 33 हज़ार घायल हुए हैं. सूडान, विश्व का सबसे बड़ा विस्थापन संकट बन गया है. 1.1 करोड़ लोग अपने घर से जबरन विस्थापित हुए हैं और साढ़े सात लाख से अधिक लोगों पर आने वाले महीनों में अकाल की चपेट में आने का जोखिम है.
डॉक्टर सहबानी ने आगाह किया कि सूडान में मानवतावादी अभियान के लिए की गई अपील में केवल 26 फ़ीसदी का ही प्रबन्ध हो पाया है. उनके अनुसार वहाँ आपात स्थिति, विश्व में सबसे बदतरीन में से है.
जिनीवा में युद्धरत पक्षों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत पिछले सप्ताह शुरू हुई, जिसे सूडान के लिए यूएन महासचिव के निजी दूत रामतने लमामरा के नेतृत्व में संचालित किया जा रहा है.
यूएन प्रवक्ता ऐलेसान्द्रा वैलुची ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि दोनों प्रतिनिधिमंडल सम्पर्क में हैं और यूएन दूत व उनकी टीम ने प्रतिनिधियों के साथ सप्ताहांत के दौरान भी चर्चा की.
डॉक्टर सहबानी ने उम्मीद जताई कि यदि हमें युद्धविराम नहीं हासिल होता है, तो कम से कम आम नागरिकों के सरंक्षण और मानवीय सहायता गलियारों को तो खोला जा सकता है.