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सरकार अब तक NJAC निरस्त होने को स्वीकार नहीं कर पाई है : जस्टिस एसके कौल

सरकार अब तक NJAC निरस्त होने को स्वीकार नहीं कर पाई है : जस्टिस एसके कौल

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और कॉलेजियम के पूर्व सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल (Sanjay Kishan Kaul) का मानना है कि सरकार अब भी यह समझने को तैयार नहीं है कि नेशनल अप्वॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) एक्ट को देश की सबसे बड़ी अदालत निरस्त कर चुकी है। इससे कॉलेजियम सिस्टम के लिए काम करना मुश्किल हुआ है। मनीकंट्रोल से बातचीत में कौल ने NJAC और न्यायधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में खुलकर अपनी राय बताई। उन्होंने कहा कि सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि ससंद करीब आम राय से बिल पास करती है और उसे निरस्त कर दिया जाता है। इस वजह से कॉलेजियम सिस्टम के लिए काम करना थोड़ा मुश्किल हो गया है।

NJAC क्या है?

केंद्र सरकार ने 2014 में NJAC एक्ट पारित किया था। सरकार कॉलेजियम सिस्टम की जगह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की जगह NJAC की व्यवस्था लागू करना चाहती थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इसे निरस्त कर दिया था। तब से जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार और सुप्रीम कोर्ट का रुख एक समान नहीं रहा है।

कॉलेजियम सिस्टम क्या है?

अभी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के लिए कॉलेजियम सिस्टम का इस्तेमाल होता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर चार जज कॉलेजियम में शामिल होते हैं। कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए जजों के नामों का प्रस्ताव सरकार को भेजता है। सरकार नामों पर विचार करने के बाद उस पर अपनी मंजूरी देती है या उस पर दोबारा विचार करने के लिए कॉलेजियम को वापस कर देती है। यह सिस्टम संसद से पारित किसी एक्ट के जरिए या संवैधानिक प्रावधान पर आधारित नहीं है। यह फर्स्ट जजेज केस (1981), सेकेंड जजेज केस (1993) और NJAC केस (2015) पर आधारित है।

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NJAC के नियम क्या थे?

सरकार ने 2014 को जो एनजीएसी बनाया था, उसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन जज, केंद्रीय कानून मंत्री और सिविल सोसायटी के दो एक्सपर्ट्स थे। इसमें यह प्रावधान था कि अगर अगर किसी जज की नियुक्ति के प्रस्ताव पर एनजेएसी के दो सदस्य असहमत होते हैं तो उसकी नियुक्ति नहीं हो सकती। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एनजीएसी एक्ट को निरस्त कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे सीनियर जज थे जस्टिस कौल

जस्टिस संजय किशन कौल सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे सीनियर जज थे। वह 26 दिसंबर को रिटायर हो गए। वह डेढ़ साल तक कॉलेजियम के सदस्य रहे। उन्होंने कहा, “कोई सिस्टम परफेक्ट नहीं है। हमारे पास एप्वाइंटमेंट का एक सिस्टम था, जिसका इस्तेमाल 1950 के दशक से 1990 के दशक तक हुआ। 1990 के दशक में कॉलेजिम सिस्टम ने काम करना शुरू किया। इस सिस्टम ने भी कुछ अच्छी वजहों के चलते काफी समय तक काम करता रहा। लेकिन, चाहे किसी पार्टी की भी सरकार हो यह कभी सरकारों को पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं रहा। आखिरकार एक कानून पारित किया गया। इस कानून को चुनौती दी गई। फिर इसे निरस्त कर दिया गया। इसे असंवैधानिक माना गया क्योंकि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही थी।”

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