संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश, प्रशान्त महासागर क्षेत्र में स्थित देशों, टोंगा और समोआ की यात्रा पर हैं, जहाँ बढ़ता समुद्री जलस्तर एक बड़ा मुद्दा है. इस सिलसिले में उन्होंने स्थानीय समुदायों से उनके समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा की है.
25 सितम्बर को, वैश्विक नेता व विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक अहम बैठक के लिए जुटेंगे, जहाँ इस ख़तरे से निपटने के उपायों की तलाश की जाएगी. हमने समुद्री जलस्तर में वृद्धि की चुनौती पर आपके लिए विशेष सामग्री जुटाई है:
बढ़ता जलस्तर
एक अनुमान के अनुसार, 1880 के बाद से अब तक महासागर के जलस्तर में लगभग 20-23 सेंटीमीटर (8-9 इंच) की वृद्धि हो चुकी है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने पुष्टि की है कि वर्ष 2023 में औसत समुद्री जलस्तर अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है. यह निष्कर्ष 1993 से रखे गए सैटेलाइट रिकॉर्ड के आधार पर साझा किया गया है.
यूएन एजेंसी ने चिन्ता जताई है कि पिछले 10 वर्षों में समुद्री जलस्तर में वृद्धि की दर, 1993 से 2002 तक की रफ़्तार के दोगुने से भी अधिक है.
समुद्री जलस्तर में वृद्धि की क्या वजह है?
बढ़ता समुद्री जलस्तर, महासागर के तापमान में वृद्धि होने, हिमनद व जमे हुए पानी के पिघलने का परिणाम है. इन रुझानों के लिए सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार माना जाता है.
यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित भी रखा जाए, पृथ्वी पर समुद्री जल के स्तर में काफ़ी हद तक बढ़ोत्तरी हो चुकी होगी.
वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रकना, वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते का एक अहम लक्ष्य है.
यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि महासागर के परिसंचरण (circulation) रुझानों, जैसेकि खाड़ी की धारा (gulf stream) नामक महासागरीय प्रवाह के कारण समुद्री जलस्तर के विषय में क्षेत्रीय भिन्नताएँ नज़र आ सकती हैं.
इसके क्या परिणाम सामने आ सकते हैं?
बढ़ते समुद्री जलस्तर के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं, जोकि केवल भौतिक पर्यावरण तक ही सीमित रहने के बजाय, विश्व भर में सम्वेदनशील हालात से जूझ रहे देशों में आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक तानेबाने को भी प्रभावित कर सकते हैं.
खारे जल की बाढ़ आने से तटीय इलाक़ों में पर्यावास, जैसेकि प्रवाल भित्तियों व मछलियों, कृषि-योग्य भूमि के अलावा बुनियादी ढाँचे को क्षति पहुँच सकती है.
इससे तटीय समुदायों की आजीविका पर असर होता है और उनकी आवासीय व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है.
बाढ़ के कारण ताज़ा जल की आपूर्ति भी दूषित हो सकती है, जलजनित बीमारियाँ पनप सकती हैं, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर असर होता है और वे तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो सकते हैं.
इसके अलावा, पर्यटन से प्राप्त होने वाला राजस्व भी प्रभावित हो सकता है, जोकि अनेक लघु द्वीपीय विकासशील देशों में अर्थव्यवस्था के लिए अहम है.
इन सभी वजहों से, स्थानीय समुदायों को अपना घर छोड़कर जाने और ऊँचे स्थानों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था, आजीविका व आम जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इन रुझानों को एक ऐसा ख़तरा बताया है, जिनसे जोखिमों मे कई गुना वृद्धि हो सकती है.
बढ़ते समुद्री जलस्तर और जलवायु परिवर्तन में क्या सम्बन्ध है?
सरल शब्दों में, समुद्री जलस्तर में होने वाली वृद्धि, जलवायु परिवर्तन का ही एक लक्षण है. बदलती जलवायु के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, और यह अत्यधिक ताप महासागर में समा जाता है.
इससे गर्म जल की मात्रा बढ़ती है, और इस प्रक्रिया को उष्णता विस्तार (thermal expansion) के रूप में जाना जाता है. समुद्री जलस्तर में वृद्धि के लिए यह एक बड़ी वजह है. बढ़ते समुद्री जलस्तर से एक बेहद हानिकारक रुझान भी पनपता है.
उदाहरणस्वरूप, मैनग्रोव वनों से तटीय पर्यावासों की रक्षा होती है और वे जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार कार्बन गैसों को सोखते हैं.
मगर, जल का तापमान बढ़ने से इन वनों के लिए अपने रक्षात्मक गुण खो देने का जोखिम बढ़ जाता है.
मैनग्रोव की संख्या घटने का सीधा अर्थ है, पर्यावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ना, जिससे जलवायु परिवर्तन होता है, और तापमान बढ़ने से समुद्री जलस्तर और अधिक बढ़ जाता है.
सर्वाधिक प्रभावित देश कौन से हैं?
अनुमान है कि विश्व भर में 90 करोड़ लोग, यानि हर 10 में से एक व्यक्ति समुद्र के नज़दीक रहते हैं.
घनी आबादी वाले देशों, जैसेकि बांग्लादेश, चीन, भारत, नैदरलैंड्स और पाकिस्तान समेत अन्य देशों में तटीय इलाक़ों में बसे समुदायों के लिए जोखिम है और उन्हें विनाशकारी बाढ़ से जूझना पड़ सकता है.
इनके अलावा, हर महाद्वीप पर बड़े शहरों, जैसेकि बैंकॉक, ब्यूनस आयर्स, लागोस, लंदन, मुम्बई, न्यूयॉर्क व शंघाई समेत अन्य शहरों को ख़तरा है.
लघु द्वीपीय देशों और निचले तटीय इलाक़ों के लिए यह एक विकराल चुनौती है. समुद्री जलस्तर के बढ़ने और अन्य जलवायु प्रभावों के कारण प्रशान्त महासागर में स्थित देशों, फ़िजी, वानुआतू और सोलोमन आइलैंड्स में लोग जबरन विस्थापन का शिकार हो रहे हैं.
समुद्री जलस्तर में वृद्धि को रोकने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
इसके लिए सबसे कारगर और ज़रूरी उपाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के ज़रिये जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार में कमी लाना है – जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्यत: यही ज़िम्मेदार है.
कार्बन उत्सर्जन में कटौती के साथ-साथ बढ़े हुए समुद्री जलस्तर के प्रति अनुकूलन उपाय भी महत्वपूर्ण हैं. इस क्रम में कई प्रकार के समाधान मौजूद हैं, मगर ऐसे बुनियादी ढाँचों की बड़ी क़ीमत है.
जैसेकि समुद्री तटों पर दीवारों का निर्माण, तूफ़ान को थामने के लिए अवरोध तैयार करना ताकि बाढ़ व क्षरण से बचाव हो सके. बेहतर निकासी व्यवस्था, बाढ़ प्रतिरोधी इमारतें, मैनग्रोव व प्रवाल भित्तियों की बहाली समेत अन्य उपायों से तूफ़ानों के दंश में कमी लाई जा सकती है.
अनेक देशों ने आपदा जोखिम में कमी लाने के लिए अपने प्रयासों का दायरा व स्तर बढ़ाया है, और समुद्री जलस्तर सम्बन्धी ख़तरों को टालने में यूएन समर्थित समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों की भी अहम भूमिका है.
कुछ मामलों में, अनुकूलन समाधानों के तहत स्थानीय समुदायों को सम्वेदनशील तटीय इलाक़ों से दूर ले जाकर कहीं और बसाया जा सकता है.
यूएन किस प्रकार से मदद कर रहा है?
समुद्री जलस्तर में वृद्धि से निपटने के लिए एक व्यापक और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वित उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है. इन प्रयासों की अगुवाई में संयुक्त राष्ट्र की अहम भूमिका है.
जलवायु परिवर्तन मामलों पर यूएन की अग्रणी संस्था (UNFCCC) ने पेरिस समझौते पर वैश्विक सहमति हासिल करने में उल्लेखनीय कोशिशें की. भविष्य में जलवायु परिवर्तन की चुनौती पर पार पाने और समुद्री जलस्तर में वृद्धि को थामने के लिए इस समझौते में निर्धारित लक्ष्य ज़रूरी हैं.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा लघु द्वीपीय विकासशील देशों (Small Island Developing States) को भी समर्थन प्रदान किया जा रहा है. वैश्विक समुदाय के साथ सर्वाधिक सम्वेदनशील देशों को वित्त पोषण मुहैया कराया जाता है ताकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुरूप ढल सकें.