इसकी वजह थी, ग़ाज़ा युद्ध की पृष्ठभूमि में इसराइल और लेबनान के हिज़बुल्लाह गुट के बीच बढ़ता तनाव व हिंसक टकराव. लेबनान की संसद में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए 128 में से 62 सांसद, इसी सशस्त्र गुट व उसके सहयोगियों के दलों से हैं.
हमने लेबनान में नाटकीय घटनाक्रम के बीच सुरक्षा परिषद के इस अहम प्रस्ताव पर आपके लिए जानकारी जुटाई है. ये एक ऐसा प्रस्ताव है, जिसने क़रीब पिछले दो दशकों से इसराइल व लेबनान के बीच शान्ति बनाए रखने में योगदान दिया है.
संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले 10 हज़ार से अधिक शान्तिरक्षक इसी प्रस्ताव को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए मुस्तैदी से अपना दायित्व निभा रहे हैं.
युद्ध रोकने के लिए सुरक्षा परिषद ने उठाया क़दम
इस प्रस्ताव को वर्ष 2006 में सर्वसम्मति से पारित किया गया था, और इसका उद्देश्य हिज़बुल्लाह व इसराइल के बीच युद्ध का अन्त करना था. सुरक्षा परिषद ने एक बफ़र ज़ोन तैयार किए जाने के आधार पर स्थाई युद्धविराम की पुकार लगाई थी.
सुरक्षा परिषद द्वारा, मूल रूप से वर्ष 1978 में लेबनान में यूएन मिशन (UNIFIL) को स्थापित किया था, ताकि लेबनान से इसराइल की वापसी की पुष्टि की जा सके, शान्ति व सुरक्षा बहाल हो और लेबनान सरकार द्वारा अपनी राजसत्ता लागू की जा सके.
मगर, जुलाई/अगस्त 2006 के संकट व युद्ध के बाद, सुरक्षा परिषद ने इस मिशन को नए सिरे से मज़बूती प्रदान की और उसके मूल शासनादेश के अलावा भी अन्य दायित्व सौंपे गए.
इस मिशन का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच टकराव में कमी लाना, दक्षिणी लेबनान से इसराइल की वापसी के बाद लेबनान के सशस्त्र बलों को समर्थन देना, और विस्थापितों की सुरक्षित वापसी को सुनिश्चति करना है.
इस प्रस्ताव में क्या महत्वपूर्ण प्रावधान हैं?
19 पैराग्राफ़ लम्बे इस प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद ने हिज़बुल्लाह से हमले और इसराइल से सैन्य अभियान पूर्ण रूप से रोकने का आग्रह किया है.
प्रस्ताव में इसराइल व लेबनान से एक स्थाई युद्धविराम को अपना समर्थन देने की अपील की गई है. साथ ही, निम्न सिद्धान्तों पर आधारित एक दीर्घकालिक समाधान की तलाश की जानी होगी:
- ‘ताइफ़ समझौते’ के प्रासंगिक प्रावधानों, प्रस्ताव 1559 (2004) और प्रस्ताव 1680 (2006) के को पूर्ण रूप से अमल में लाना, जिसके लिए लेबनान में सभी सशस्त्र गुटों का निरस्त्रीकरण ज़रूरी होगा, ताकि वहाँ लेबनान की राजसत्ता के अलावा कोई अन्य शक्ति केन्द्र ना उभर सके.
- लेबनान में सरकार की अनुमति के बिना विदेशी सैनिकों की मौजूदगी पर रोक लगाना
- सरकार की स्वीकृति के अलावा, लेबनान में हथियारों की बिक्री या आपूर्ति नहीं होने देना
- लेबनान में बारूदी सुरंगों के मानचित्रों के बारे में जानकारी, इसराइल द्वारा संयुक्त राष्ट्र को मुहैया कराना
- दोनों पक्षों द्वारा ब्लू लाइन के लिए पूर्ण सम्मान व्यक्त करना और टकराव टालने के लिए सुरक्षा व्यवस्था का प्रबन्ध करना
‘ब्लू लाइन’ क्या है?
लेबनान के दक्षिणी हिस्से और इसराइल की उत्तरी सीमा पर, 120 किलोमीटर के दायरे में फैली तथाकथित ‘ब्लू लाइन’, क्षेत्र में शान्ति के लिए अहम है.
वर्ष 2006 में हुए युद्ध के बाद से यह प्रस्ताव 1701 का एक अहम हिस्सा है. यूएन शान्तिरक्षा कार्यालय के अनुसार, UNIFIL शान्तिरक्षक इस सीमा रेखा के अस्थाई संरक्षक हैं.
इसे अनेक ऐतिहासिक मानचित्रों के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें से कुछ तो 100 वर्ष से भी पुराने हैं. ‘ब्लू लाइन’ कोई सीमा नहीं है बल्कि यह सुरक्षा बलों के वापिस लौटने की रेखा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2000 में स्थापित किया था. इसकी वजह दक्षिणी लेबनान से इसराइली सैन्य बलों की वापसी की पुष्टि करना था.
इसराइली या लेबनानी प्रशासनिक एजेंसियों की जब भी ब्लू लाइन के नज़दीक किसी गतिविधि की मंशा होती है, UNIFIL द्वारा समय रहते इस बारे में सूचना मुहैया कराने का अनुरोध किया जाता है.
इससे, संयुक्त राष्ट्र मिशन के लिए सभी पक्षों को सूचित रख पाना सम्भव होता है, ताकि तनाव भड़काने वाली ग़लतफ़हमियों को कम से कम किया जा सके.
प्रस्ताव 1701 को किस तरह से लागू किया जाता है?
यूएन शान्तिरक्षा का कहना है कि अन्तत:, भविष्य में किसी सीमा के लिए रास्ता तलाश करने का दायित्व इसराइल और लेबनान का है.
UNIFIL का शासनादेश, प्रस्ताव 1701 के प्रासंगिक प्रावधानों का पूर्ण रूप से सम्मान किए जाने और उसके उल्लंघन मामलों की रोकथाम करना है.
यूएन शान्तिरक्षा के अनुसार, ‘ब्लू लाइन’ को किसी भी पक्ष द्वारा पार करने की कोई भी घटना, यूएन सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 का उल्लंघन है. हम UNIFIL के तौर पर ऐसे सभी उल्लंघनों मामलों में समान रूप से क़दम उठाते हैं.
UNIFIL मिशन द्वारा ‘ब्लू लाइन’ की ज़मीन और आकाश की निगरानी की जाती है. उल्लंघन को रोकने के लिए समन्वय, सम्पर्क व ग़श्त की जाती है और सभी उल्लंघन मामलों को सुरक्षा परिषद के संज्ञान में लाया जाता है.
ब्लू लाइन के किसी भी हिस्से में कोई घटना होने की स्थिति में, UNIFIL द्वारा वहाँ अतिरिक्त संख्या में शान्तिकर्मियों को तैनात किया जाता है ताकि दोनों पक्षों के बीच सीधे टकराव को टाला जा सके.
साथ ही, लेबनान सशस्त्र बलों और इसराइली सेना के साथ सम्पर्क साधा जाता है ताकि तनाव में कमी लाई जा सके और टकराव के बिना ही हालात पर क़ाबू पाना सम्भव हो.
ज़मीनी स्तर पर मौजूदा परिस्थितियाँ
इसराइल पर हमास व अन्य चरमपंथी गुटों के हमलों के बाद से ही, ‘ब्लू लाइन’ पर टकराव पिछले एक वर्ष से भड़का हुआ है. इसराइल में इन हमलों में एक हज़ार से अधिक लोगों की जान गई थी और 250 से अधिक लोगों को ग़ाज़ा में बन्धक बना लिया गया था.
इसके बाद, ग़ाज़ा पट्टी में इसराइली सैन्य बलों की कार्रवाई में 41 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, 200 से अधिक मानवीय सहायताकर्मी मारे गए हैं और 200 पत्रकारों की भी जान गई है.
हिज़बुल्लाह गुट का कहना है कि इसराइल के विरुद्ध उसके हमले, एक तबाही भरे युद्ध का सामना कर रहे फ़लस्तीनियों के साथ एकजुटता दर्शाने के लिए हैं.
इन हमलों के जवाब में, इसराइल ने लेबनान में भीतर जाकर हमले किए हैं, पेजर व संचार उपकरणों में विस्फोट हुए हैं और अब एक ज़मीनी सैन्य अभियान की तैयारी है. हाल के दिनों में हुई हिंसा में, लेबनान में कम से कम 10 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं.
ब्लू लाइन के इर्दगिर्द, 8 अक्टूबर 2023 के बाद से ही गोलाबारी हो रही है और प्रस्ताव 1701 का उल्लंघन बार-बार हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस विषय में सुरक्षा परिषद को जुलाई महीने में एक पत्र भी भेजा था.
अब आगे क्या?
30 सितम्बर को, इसराइली सुरक्षा बलों ने UNIFIL को लेबनान में सीमित स्तर पर ज़मीनी अभियान शुरू करने की मंशा के बारे में सूचित किया. यूएन मिशन ने मंगलवार को एक वक्तव्य जारी करके इस आशय की जानकारी दी है.
UNIFIL की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि “यह एक बेहद ख़तरनाक स्थिति है मगर शान्तिरक्षक अपनी तैनाती स्थलों पर बने हुए हैं.”
यूएन मिशन द्वारा गतिविधियों में नियमित रूप से बदलाव किया जा रहा है और आपात स्थिति के लिए योजनाओं को भी तैयार किया गया है. “शान्तिरक्षकों का बचाव व सुरक्षा सर्वोपरि है और सभी पक्षों को ध्यान दिलाया गया है कि उन्हें अपने दायित्वों का सम्मान करना होगा.”
लेबनान में यूएन मिशन में 50 से अधिक देशों के 10 हज़ार से अधिक शान्तिरक्षक हैं, और हम महीने सीमा पर ग़श्त लगाने समेत 14 हज़ार से अधिक गतिविधियों को पूरा किया जाता है.
फ़िलहाल, UNIFIL द्वारा शान्तिरक्षकों को तैनात किया जाना और कुछ दायित्वों को पूरा किया जाना जारी है, मगर वाहनों पर ग़श्त लगाने का काम सम्भव नहीं है. UNIFIL ने कहा कि लेबनान में किसी भी तरह से प्रवेश करना, देश की सम्प्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है, और यह प्रस्ताव 1701 का भी उल्लंघन है.
“हम सभी पक्षों से टकराव बढ़ाने वाले ऐसे कृत्यों से क़दम पीछे हटाने का आग्रह करते हैं, जिससे केवल और अधिक हिंसा व रक्तपात होगा.” यूएन मिशन ने दोहराया कि आम नागरिकों की सदैव रक्षा की जानी होगी, बुनियादी ढाँचे को कभी भी निशाना नहीं बनाया जाना होगा.
“हम सभी पक्षों से सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों व 1701 के लिए फिर संकल्प दर्शाने का मज़बूती से आग्रह करते हैं, जोकि इस क्षेत्र में फिर से स्थिरता लाने का एकमात्र व्यावहारिक समाधान है.”
क्या UNIFIL द्वारा बल प्रयोग किया जा सकता है?
हाँ, कुछ निश्चित परिस्थितियों में.
हर वर्ष, सुरक्षा परिषद द्वारा UNIFIL मिशन का, लेबनान के अनुरोध पर नवीनीकरण किया जाता है. यह यूएन चार्टर के छठे अध्याय के अन्तर्गत संचालित किए जाने वाला एक शान्तिरक्षा मिशन है.
शासनादेश सम्बन्धी ज़िम्मेदारियों को निभाते समय, UNIFIL कर्मचारी आत्मरक्षा के अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं.
मगर, इसके अलावा भी, कुछ ख़ास परिस्थितियों में व शर्तों के साथ, UNIFIL द्वारा चरणबद्ध ढंग से, आवश्यकता अनुसार बल प्रयोग किया जा सकता है.
- यूएन मिशन के अभियान वाले इलाक़े का इस्तेमाल, शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में ना होने देने के लिए
- UNIFIL को उसके तयशुदा शासनादेश के तहत दायित्वों को निभाने से बलपूर्वक रोके जाने से निपटने के लिए
- यूएन कर्मचारियों, केन्द्रों, प्रतिष्ठानों, और उपकरण की रक्षा करने के लिए
- यूएन कर्मचारियों और मानवीय सहायताकर्मियों की सुरक्षा व आवाजाही की आज़ादी को सुनिश्चित करने के लिए
- शारीरिक हिंसा का जोखिम झेल रहे आम नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए