शिक्षा

शरणार्थी शिक्षा के शरणार्थी अग्रदूत अब्दुल्लाही मीरे को, शीर्ष UNHCR पुरस्कार

अब्दुल्लाही मीरे, केनया के पूर्वोत्तर इलाक़े विशाल दादाब शरणार्थी परिसर में पले-बढ़े, जहाँ वर्तमान में 2 लाख 40 हज़ार से अधिक पंजीकृत शरणार्थी आबादी रहती है. इनमें से ज़्यादातर लोग सोमालिया से हैं.

यहाँ संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), केनयाई सरकार और मेज़बान समुदायों के सहयोग से, भागीदारों के साथ मिलकर अपने अभियानों का संचालन करती है.

2020 के आँकड़ों के अनुसार, इस शरणार्थी आबादी में अधिकतर यानि लगभग 56 प्रतिशत बच्चे हैं.

2020 तक माध्यमिक विद्यालय स्तर तक 60 हज़ार से अधिक छात्र नामांकित थे, लेकिन इसके बावजूद, शिक्षकों, आपूर्ति और कक्षा के लिए जगह की मांग बढ़ती जा रही थी, जिससे शैक्षिक परिणाम ख़राब हो रहे हैं.

शैक्षिक अग्रदूत

माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा पूरी करने वालों में से केवल कुछ ही लोग, तृतीयक शिक्षा प्राप्त कर पा रहे थे.

अब्दुल्लाही मीरे ने 1990 के दशक की शुरुआत से, दादाब परिसर में 23 साल बिताए, और अन्ततः 2013 में केनया के केन्याटा विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसम्पर्क में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त करने के साथ, स्नातक की उपाधि भी हासिल की.

सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र प्रवासन संगठन – IOM के लिए काम करने के दौरान जब उन्होंने पूर्व लड़ाकों के निरस्त्रीकरण, विमुद्रीकरण और पुनर्एकीकरण में विशेषज्ञता हासिल की तो उन्हें अहसास हुआ कि अशिक्षित लोगों को गुमराह करके, कट्टरपंथी बनाया जा रहा था.

जीवन-परिवर्तक

इस अनुभव ने 2018 में उन्हें शरणार्थी युवा शिक्षा हब (RYEH) शुरू करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें शरणार्थी शिक्षा और युवा विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया.

उन्होंने 2020 में सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNSOM) से कहा, “मैं दादाब में रहने वाले शरणार्थी बच्चों और युवाओं का जीवन बदलना चाहता हूँ.”

उन्होंने कहा, “ऐसा करने का एकमात्र तरीक़ा है, शिक्षा. यदि आप इन बच्चों या युवजन को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देंगे, तो उनका जीवन हमेशा के लिए बेहतर हो जाएगा. समाज की प्रगति हेतु, ख़ासतौर पर दशकों के संघर्ष से उबरने के लिए, शिक्षा एक प्राथमिकता होनी चाहिए. मुझे लगता है कि यह शान्ति और स्थिरता को जन्म देने के लिए अहम कारक है.”

बदलाव के कारक

यूएन शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) फ़िलिपो ग्रैंडी ने पुरस्कार की घोषणा के अवसर पर कहा: “अब्दुल्लाही मीरे एक जीते-जागते सबूत हैं कि विस्थापित समुदायों के भीतर से परिवर्तनकारी विचारों का उदय हो सकता है.”

“उन्होंने शरणार्थी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने में महान संसाधनशीलता और दृढ़ता का प्रदर्शन किया है.”

यूएनएचसीआर ने कहा कि अब्दुल्लाही मीरे, दादाब शिविरों में बड़े होने के बाद नॉर्वे जाकर बस गए थे, “लेकिन अपने समुदाय की सेवा करने की लालसा उन्हें वापस खींच लाई.”

उनके शिक्षा केन्द्र में, शिविरों में दान की गई पुस्तकों से भरे तीन पुस्तकालय खोले गए हैं और हज़ारों विस्थापित बच्चों एवं युवाओं के लिए सीखने के अवसरों का विस्तार किया है.

36 वर्षीय अब्दुल्लाही मीरे ने कहा, “यह केवल मेरी जीत नहीं है. यह उन सभी स्वयंसेवकों की जीत है, जिनके साथ मैं काम करता हूँ…यह इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का जीत है.”

क्षेत्रीय विजेता

सोमालिया मूल के एक पूर्व बाल शरणार्थी अब्दुल्लाही मीरे को, शरणार्थियों की शिक्षा के लिए, 2023 के UNHCR पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

इसके अलावा, यूएनएचसीआर ने इस वर्ष के क्षेत्रीय विजेताओं की भी घोषणा की है:

• एलिज़ाबेथ मोरेनो बारको (अमेरिका): कोलम्बिया में सशस्त्र आंतरिक संघर्ष से प्रभावित समुदायों की वकालत करने वाली मानवाधिकार रक्षक.

• एशिया अल-मशरकी (मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका): यमन में संघर्ष से प्रभावित लगभग 20 लाख लोगों की मदद करने वाली सतत विकास संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष.
• अब्दुल्ला हबीब, सहत ज़िया हीरो, सलीम ख़ान और शाहिदा विन (एशिया-प्रशान्त): देशविहीन रोहिंज्या शरणार्थियों के अनुभवों का आलेखन करने वाले, चार रोहिंज्या कथाकार.
• लीना ग्रोचोव्स्का और व्लाडिसलाव ग्रोचोव्स्की (योरोप): पोलेंड के एक युगल, जिनकी होटल श्रृँखला और संस्थान, शरणार्थियों को आश्रय एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है.

यह पुरस्कार, 13 दिसम्बर को जिनीवा में वैश्विक शरणार्थी फ़ोरम 2023 के एक समारोह में प्रदान किए जाएंगे.

मशहूर अमेरिकी टेलीविज़न पत्रकार, एन करी द्वारा प्रस्तुत इस कार्यक्रम में, विजेताओं के कार्य प्रदर्शित किए जाएंगे और लूस व याकुजा, मियावी एवं रिकी केज द्वारा संगीत आयोजन भी होगा. इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा.

यह पुरस्कार, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड की सरकारों, IKEA फाउंडेशन और जिनीवा शहर व कैंटन के समर्थन से सम्भव हुआ है. पुरस्कार का नाम, नॉर्वेजियन खोजकर्ता, वैज्ञानिक, राजनयिक और मानवतावादी, फ्रिड्टजॉफ़ नानसेन के नाम पर रखा गया है.

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