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शरणार्थी ओलिम्पिक टीम को ऐतिहासिक पदक

25 वर्षीय सिंडी नगाम्बा, शरणार्थी ओलिम्पिक टीम में जगह बनाने वाली पहली बॉक्सर थीं और अब वो स्वर्ण, रजत या कांस्य पदक जीतने की क़तार में हैं, जिसका निर्णय इस सप्ताह के अन्त में किया जाएगा.

उन्होंने फ़्रांस की डवीना माइकल के ख़िलाफ़ 75 किलोग्राम श्रेणी में अपना दम-ख़म दिखाया. कम से कम कांस्य पदक तो पक्का है.

सिंडी नगाम्बा को अपने बचपन में ही कैमरून से भागना पड़ा था और वो ब्रिटेन पहुँचीं, जहाँ वो अंग्रेज़ी भी नहीं बोल पाती थीं और उन्हें वहाँ बुलीइंग का सामना करना पड़ा.

रविवार के मुक़ाबले के बाद उनका कहना था, “मैं दुनिया भर के सभी शरणार्थियों से कहना चाहती हूँ, उनसे भी जो शरणार्थी ऐथलीट नहीं हैं, अपनी मेहनत जारी रखें और ख़ुद में भरोसा रखें, आप जो कुछ भी अपने दिमाग़ में बिठाएंगे, वो हासिल कर सकते हैं.”

उम्मीद का पैग़ाम

सिंडी नगाम्बा की माता, मौसी और कुछ भाई-बहन पेरिस में रहते हैं और उनका कहना है कि इस कारण, पेरिस ओलिम्पिक खेल, उनके लिए और भी अधिक ख़ास बन गए हैं.

सिंडी का कहना है, “बिल्कुल प्रथम शरणार्थी पदक जीतना, मेरे लिए पूरी दुनिया की ख़ुशी है. मुझे आशा है कि मैं अपने अगले मुक़ाबले में, पदक का रंग बदल सकूँ. दरअसल, मैं बदलूंगी भी.”

नतीजा या पदक का रंग कुछ भी हो, उनकी ऐतिहासिक उपलब्धि ने, दुनिया भर में जबरन शरणार्थी बने लगभग 12 करोड़ लोगों को, उम्मीद का एक ताक़तवर पैग़ाम पहले ही भेज दिया है.

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने सिंडी की जीत पर बधाई दी है. “आपने हम सभी को बहुत-बहुत गौर्वान्वित कर दिया है.”

सबसे बड़ी शरणार्थी ओलिम्पिक टीम

सिंडी नगाम्बा पेरिस में शिरकत कर रही शरणार्थी ओलिम्पिक टीम के 37 ऐथलीटों में से एक हैं और ये अभी तक की सबसे बड़ी शरणार्थी ओलिम्पिक टीम है.

प्रथम ओलिम्पिक शरणार्थी टीम ने 2016 के रियो ओलिम्पिक खेलों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर यह ऐतिहासिक सफ़र शुरू किया था, जिसके बाद 2020 के टोकियो ओलिम्पिक खेलों में 29 खिलाड़ियों की शरणार्थी टीम ने शिरकत की थी.

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