WHO महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि किशोरों के मानसिक, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य को नज़रअन्दाज़ करने से “युवजन के लिए गम्भीर व जीवन के लिए ख़तरनाक़ परिणाम” हो सकते हैं.
इसका बड़ा ख़ामियाज़ा समाज को भुगतना पड़ सकता है, इसलिए ज़रूरी है कि दुनिया भर के देशों की सरकारें, इसमें विशाल सार्वजनिक निवेश करें.
उन्होंने कहा कि किशोरियों में एनीमिया यानि रक्त की कमी “आम” है और 2010 के स्तर पर बनी हुई है. वहीं हर 10 में एक किशोर/किशोरी मोटापे के शिकार हैं.
बढ़ते यौन संचारित संक्रमण (STDs)
आमतौर पर युवाओं को होने वाले सिफ़लिस, क्लैमाइडिया, ट्राइकोमोनिएसिस, और जननांग हर्पीस जैसे रोगों में भी वृद्धि होती नज़र आ रही है.
WHO प्रमुख ने नए आँकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर इन्हें बिना इलाज के छोड़ दिया गया, तो “आजीवन उनके स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव” देखने को मिल सकते हैं.”
उन्होंने लैंगिक समानता और मानवाधिकारों के बढ़ते विरोध के मद्देनज़र, युवजन के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तथा यौन शिक्षा तक पहुँच को “वापस लेने” के प्रयासों का भी विरोध किया.
उन्होंने कहा कि सहमति की कोई भी प्रतिबन्धात्मक आयु नीति, महत्वपूर्ण सेवाओं तक युवजन की पहुँच सीमित करती है, जिनमें जिनमें यौन संचारित संक्रमण और एचआईवी भी शामिल हैं.
डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि किशोरावस्था, मानव विकास का एक अनूठा एवं नाज़ुक चरण है, जिसमें महत्वपूर्ण शारीरिक, भावनात्मक व सामाजिक बदलाव होते हैं, और यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य की नींव डालने के लिए बहुत अहम है.
उन्होंने कहा, “युवजन के स्वास्थ्य एवं अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना, हमारे विश्व के बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है.
उन्होंने कहा, “इसके विपरीत, किशोरावस्था में सामने आने वाले स्वास्थ्य ख़तरों को सम्बोधित करने में विफल रहने पर, न केवल इसके युवजन के लिए गम्भीर एवं जीवन-घातक परिणाम हो सकते हैं, बल्कि इसका उच्च आर्थिक ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ सकता है.
लाभ सम्भव हैं
यह रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र के भविष्य के लिए शिखर सम्मेलन के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में जारी की गई.
इस मौक़े पर सह-मेज़बान, ‘मातृ, नवजात व शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए भागेदारी’ संस्था के कार्यकारी निदेशक रजत खोसला ने कहा, “अपने कल्याण एवं भविष्य के एजेंडा को आकार देने में सक्षम होने पर, किशोर, एक शक्तिशाली एवं भलाई के लिए अविश्वसनीय रचनात्मक ताक़त बनते हैं.”
उन्होंने कहा, “नेताओं को यह सुनना चाहिए कि युवजन चाहते क्या हैं और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो सक्रिय भागीदार व निर्णायकों के रूप में अपनी भूमिका निभाएँ.”