मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) के 16वें सम्मेलन यानि COP16 में लगभग 200 देशों ने शिरकत की.
इन देशों ने भूमि बहाली व सूखे के प्रति सहनशीलता को राष्ट्रीय नीतियों और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्धताएँ व्यक्त कीं.
इस मुद्दे को खाद्य सुरक्षा व जलवायु अनुकूलन के लिए एक आवश्यक रणनीति समझा गया है.
पक्ष देश अलबत्ता, एक सूखा व्यवस्था की एक नई व्यवस्था पर सहमत नहीं हो सके मगर एक मज़बूत राजनैतिक घोषणा और 39 निर्णय अपनाए गए, जो आगे का रास्ता तय करते हैं.
यूएनसीसीडी की हाल ही में जारी विश्व सूखा एटलस और सूखा सहनशीलता के अर्थशास्त्र रिपोर्टों के अनुसार, सूखा दुनिया भर में 1.8 अरब लोगों की आजीविका को प्रभावित करता है, और यह पहले से ही कमज़ोर समुदायों को और परे हाशिए पर धकेल चुका है.
इससे प्रति वर्ष अनुमानित $300 अरब का नुक़सान भी होता है, जो कृषि, ऊर्जा व पानी जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को, जोखिम में डालता है.
COP16 में हासिल हुए मुख्य परिणाम:
- अन्तरराष्ट्रीय सूखा सहनशीलता वेधशाला का एक प्रोटोटाइप जारी किया गया है जो देशों को कठोर सूखे से निपटने के लिए उनकी क्षमता का आकलन करने और उसे बढ़ाने में मदद करने वाला पहला वैश्विक AI-संचालित मंच है.
- ‘भूमि के लिए करोबार’ नामक पहल के तहत निजी क्षेत्र की भागेदारी को जुटाना.
- आदिवासी जन और स्थानीय समुदायों के लिए एक व्यवस्था सृजित – यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और चुनौतियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो.
ऑस्ट्रेलिया के आदिवासीजन के प्रतिनिधि ओलिवर टेस्टर का कहना था, “आज, इतिहास रच दिया गया है. हम एक समर्पित व्यवस्था के माध्यम से धरती माता की रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं और यहाँ से भरोसे के साथ रवाना हो रहे हैं कि हमारी आवाज़ सुनी जाएगी.”
…जारी…