राजनीति

रायबरेली से नामांकन के बाद बोले राहुल गांधी, बड़े भरोसे के साथ मेरी मां ने मुझे सौंपी परिवार की कर्मभूमि

राहुल गांधी ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल किया, जो लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ रहा है। सूत्र कई कारण बताते हैं जो कांग्रेस परिवार के भीतर अमेठी और रायबरेली के भविष्य पर चर्चा के दौरान सामने आए थे। राहुल को चुने जाने का मुख्य कारण विरासत या उत्तराधिकार कारक था। माना जा रहा है कि रायबरेली से राहुल गांधी की उम्मीदवारी की घोषणा करके, सोनिया गांधी लोगों को यह संदेश देना चाहती हैं कि वह उनके उत्तराधिकारी होंगे। कांग्रेस इसे राहुल बनाम स्मृति नहीं बनाना चाहती थी, क्योंकि उसे लगता है कि वह ईरानी से बड़े नेता हैं। अमेठी की तुलना में रायबरेली राहुल गांधी के लिए सुरक्षित सीट है। 

नामांकन के बाद राहुल गांधी ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा कि रायबरेली से नामांकन मेरे लिए भावुक पल था! मेरी मां ने मुझे बड़े भरोसे के साथ परिवार की कर्मभूमि सौंपी है और उसकी सेवा का मौका दिया है। अमेठी और रायबरेली मेरे लिए अलग-अलग नहीं हैं, दोनों ही मेरा परिवार हैं और मुझे ख़ुशी है कि 40 वर्षों से क्षेत्र की सेवा कर रहे किशोरी लाल जी अमेठी से पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे। उन्होंने कहा कि अन्याय के खिलाफ चल रही न्याय की जंग में, मैं मेरे अपनों की मोहब्बत और उनका आशीर्वाद मांगता हूं। मुझे विश्वास है कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने की इस लड़ाई में आप सभी मेरे साथ खड़े हैं।

प्रियंका गांधी ने लिखा कि कुछ दिनों पहले मां ने कहा था, “मेरा परिवार दिल्ली में अधूरा है। वह रायबरेली आकर पूरा होता है।” ऐसा परिवार, जिसने कई पीढ़ियों को अपने में मिला लिया; जो दशकों तक हर उतार-चढ़ाव, सुख-दुख, संकट और संघर्ष में चट्टान की तरह हमारे साथ खड़ा रहा। यह स्नेह और भरोसे का रिश्ता है। यह सेवा और आस्था का रिश्ता भी है जो आधी सदी से अटूट है। उन्होंने कहा कि हमें यहां के लोगों से जितना प्यार, जितनी आत्मीयता और सम्मान मिला है, वह अनमोल है। परिवारिक रिश्ते की सबसे बड़ी सुंदरता ये होती है कि आप चाहकर भी कभी उसके स्नेह का कर्ज नहीं उतार पाते। इस मुश्किल वक्त में, जब हम देश के लोकतंत्र, संविधान और जनता के अधिकारों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो इस लड़ाई में भी हमारा पूरा परिवार दृढ़ता से हमारे साथ खड़ा है। आज हजारों परिवारजनों की मौजूदगी में बड़े भाई राहुल जी ने अपना चुनाव नामांकन दाखिल किया।

अमेठी से गांधी परिवार की हुई दूरी

उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट को गांधी परिवार के सबसे मजबूत किलों में से एक माना जाता रहा है लेकिन 25 वर्षों में ऐसा पहली बार होगा जब गांधी परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा चुनाव में इस सीट से चुनाव मैदान में नहीं उतरेगा। वर्ष 1967 में निर्वाचन क्षेत्र बने अमेठी को गांधी परिवार का मजबूत किला माना जाता है और करीब 31 वर्षों तक गांधी परिवार के सदस्यों ने इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है। पिछले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता स्मृति ईरानी कांग्रेस के इस किले को भेदने में सफल रहीं और उन्होंने राहुल गांधी को 55 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त दी थी। अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार को 1998 में उस समय झटका लगा था, जब राजीव गांधी और सोनिया गांधी के करीबी सतीश शर्मा को भाजपा के संजय सिंह के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। यह पहला मौका था जब यह सीट गांधी परिवार के हाथ से निकल गयी थी। सोनिया गांधी ने 1999 में सिंह को तीन लाख से ज्यादा मतों से हराकर अमेठी को फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दिया था। सोनिया ने 2004 में रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और राहुल गांधी को अमेठी सीट सौंपी गयी।राहुल ने 2004, 2009 और 2014 में लगातार तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज की लेकिन 2019 में उन्हें स्मृति इरानी के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी। 

सुर्खियों में रायबरेली सीट 

राहुल गांधी को उम्मीदवार बनाये जाने से सुर्खियों में रहने वाला रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। रायबरेली सीट को ‘वीवीआईपी’ सीट भी कहा जाता है, जहां से पहले दो आम चुनाव में राहुल के दादा फिरोज गांधी विजयी हुए थे। रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में फिरोज गांधी द्वारा रखी गयी मजबूत नींव को उनकी पत्नी व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने और मजबूती प्रदान की तथा 1967, 1971 और 1980 के चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की। इंदिरा गांधी ने 1980 में दो सीट से चुनाव लड़ा, जिनमें रायबरेली और मेडक (तेलंगाना) लोकसभा सीट शामिल हैं हालांकि उन्होंने बाद में मेडक सीट अपने पास रखने का फैसला किया। उसके बाद अरुण नेहरू ने 1980 के उपचुनाव और 1984 के आम चुनाव में रायबरेली पर कांग्रेस का परचम लहराये रखा। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले अरुण नेहरू से लेकर शीला कौल तक रायबरेली सीट गांधी परिवार के सदस्यों और उनके करीबियों के पास ही रही। इंदिरा गांधी की रिश्तेदार शीला कौल ने 1989 और 1991 में रायबरेली का प्रतिनिधित्व संसद में किया था। गांधी परिवार के एक अन्य मित्र सतीश शर्मा ने 1999 में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और उसके बाद सोनिया गांधी का राजनीति में प्रवेश हुआ। वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी के राज नारायण ने इंदिरा गांधी को हराया था, जो उस समय प्रधानमंत्री थीं। वहीं 1996 और 1998 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अशोक सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को शिकस्त दी थी। सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के लिए 1999 में अमेठी सीट चुनी थी, लेकिन 2004 में उन्होंने अमेठी सीट राहुल के लिए छोड़ दी। सोनिया गांधी ने 2004 से 2019 तक चार बार रायबरेली सीट पर जीत हासिल की हालांकि उनकी जीत का अंतर कम होने लगा था। 

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