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यूक्रेन युद्ध: मृतकों व मानवाधिकार उल्लंघन मामलों की बढ़ती संख्या, नई रिपोर्ट

यूक्रेन युद्ध: मृतकों व मानवाधिकार उल्लंघन मामलों की बढ़ती संख्या, नई रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष फ़रवरी और जुलाई महीने के दौरान हर दिन औसतन छह लोगों की मौत हुई और 20 घायल हुए.

यूक्रेन में मानवाधिकार निगरानी मिशन की प्रमुख डेनियल बेल ने कहा कि इस रिपोर्ट के लिए केवल छह महीनों की जानकारी जुटाई गई है, और इसी अवधि में एक हज़ार से अधिक आम नागरिक मारे गए और लगभग चार हज़ार घायल हुए हैं.  

रिहायशी इलाक़ों, अहम बुनियादी ढाँचों और अनाज व कृषि सुविधा केन्द्रों पर रूसी मिसाइल हमलों से विध्वंस हुआ और देश भर में भय बरक़रार है.

इस बीच, रूस के नियंत्रण वाले इलाक़ों में आम लोगों को यातना, बुरे बर्ताव, यौन हिंसा और मनमाने ढंग से हिरासत में रखे जाने समेत मानवाधिकार हनन के अन्य मामलो से जूझना पड़ रहा है.

सैकड़ों अब भी बन्दी के तौर पर रखे गए हैं और उनके परिजनों को कोई जानकारी प्रदान नहीं की गई है.

यूक्रेन में युद्ध की वजह से लाखों नागरिक निर्धनता रेखा से नीचे जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर हो गए हैं. महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचों और कृषि सुविधा केन्द्रों पर हमलों की वजह से आर्थिक व सामाजिक स्तर पर गम्भीर चुनौतियाँ पनपी हैं. 

‘भयावह विरासत’

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, इस वर्ष जून महीने में कख़ोवका बांध की बर्बादी ऐसा ही एक उदाहरण है.

बांध टूटने से बड़े पैमाने पर आई बाढ़ अपने साथ पर्यावरणीय आपदा की वजह बनी, जिसका उस क्षेत्र के निवासियों के अधिकारों और कल्याण पर विपरीत असर हुआ है. 

यूएन निगरानी मिशन की प्रमुख डेनियल बेल ने ध्यान दिलाया कि इस युद्ध के लाखों पीड़ितों में बच्चे भी हैं, जो मानव हानि, विध्वंस, पर्यावरणीय क्षति और आयुध सामग्री के दूषण की भयावह विरासत की छाया में रहने के लिए मजबूर हैं.

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि इनके प्रभाव आने वाले कई वर्षों तक जारी रह सकते हैं.

यूक्रेन के इरपिन में बमबारी के बाद, स्थानीय राहतकर्मी मलबे को हटा रहे हैं.

© UNDP/Oleksandr Ratushniak

यूक्रेन के इरपिन में बमबारी के बाद, स्थानीय राहतकर्मी मलबे को हटा रहे हैं.

यातना व बुरा बर्ताव

मानवाधिकार निगरानीकर्ताओं ने बताया है कि आम नागरिकों और युद्ध बन्दियों को यातना व उनके साथ बुरा बर्ताव किए जाने के मामले अब भी बड़े पैमाने पर सामने आ रहे हैं. 

इनमें गम्भीर रूप से पिटाई किया जाना, बिजली के झटके देना, यौन हिंसा, बनावटी ढंग से मौत की सज़ा देना और अपमानजनक व्यवहार समेत अन्य हनन मामले हैं. 

हिरासत केन्द्रों पर हालात बेहद ख़राब हैं, और बन्दियों के पास भोजन व स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है. उन्हें भीड़भाड़ भरे केन्द्रों पर कठिन परिस्थितियों में रखा गया है, जहाँ साफ़-सफ़ाई की सुविधा नहीं है.

ना तो बन्दियों को पर्याप्त समय के लिए सोने दिया जाता है और ना ही उनका बाहरी दुनिया से कोई सम्पर्क है. रूस ने यूएन के मानवाधिकार निगरानी मिशन के सदस्यों को वहाँ जाने की अनुमति अभी तक नहीं दी है.

इसके विपरीत, मिशन के सदस्यों को यूक्रेन में युद्ध बन्दियों से निर्बाध रूप से मिलने दिया गया है और लिविव शहर में हिरासत केन्द्रों में बन्दीगृहों की परिस्थितियाँ बेहतर हुई हैं.

बच्चों को देश निकाला 

रिपोर्ट में यूक्रेनी बच्चों के लिए हालात पर भी चिन्ता व्यक्त की गई है, जिनमें से कुछ को रूसी क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में या फिर हस्तांतरण के बाद रूस में संस्थागत देखभाल में रखा गया है.

उन बच्चों के मामलों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जिन्हें उनके अभिभावकों की कथित सहमति से ‘समर कैम्प’ भेजा गया था, मगर वे फिर वहाँ से नहीं लौटे हैं.

रूस फ़िलहाल इन बच्चों की शिनाख़्त करने और उन्हें उनके परिवारों से मिलाने में विफल रहा है. इसके मद्देनज़र, देश निकाला दिए गए और हस्तांतरित किए गए सभी बच्चों की वापसी सुनिश्चित किए जाने पर बल दिया गया है. 

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