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यूएन की स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने, जूलियन असांज की रिहाई का किया स्वागत

यूएन की स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने, जूलियन असांज की रिहाई का किया स्वागत

ऐसी ख़बरें हैं कि जूलियन असांज ने अमेरिकी सरकार के साथ हुए एक समझौते के तहत, रिहाई के बदले एक मामले में अपने दोष को स्वीकार कर लिया है.

जूलियन असांज कथित तौर पर राजनयिक, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े केबल व अन्य गोपनीय दस्तावेज़ों को अवैध ढंग से हासिल करने और फिर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से विकिलीक्स के ज़रिए जारी करने समेत अनेक आपराधिक मामलों का सामना कर रहे थे.

यातना व अन्य क्रूर, अमानवीय व अपमानजनक बर्ताव व दंड पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर ऐलिस जिल ऐडवर्ड्स ने मंगलवार को यूएन न्यूज़ से बातचीत में कहा कि लोगों को कभी भी ऐसी जगह प्रत्यर्पित नहीं किया जाना होगा, जहाँ उनके यातना का शिकार होने का ख़तरा हो. या फिर उनके साथ क्रूर, अमानवीय, अपमानजनक व्यवहार किए जाने या उन्हें दंडित किए जाने का ख़तरा हो.

इसके अलावा, ऐसी आशंका का भी ध्यान रखा जाना होगा, जिसमें उनके कथित अपराधों के मुक़ाबले ग़ैरआनुपातिक ढंग से कहीं ज़्यादा सज़ा दी जाए.

यूएन की विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि जूलियन असांज ने जिन अपराधों को उजागर किया था, उन्हें गम्भीरतापूर्वक संज्ञान में लिया जाना होगा. साथ ही, अमेरिका में उनकी उपयुक्त ढंग से जाँच व मुक़दमे की कार्रवाई की जानी चाहिए.

“युद्ध अपराधों और युद्ध के नियमों के अन्य हनन मामलों के लिए दंड मुक्ति से केवल उन्हीं तत्वों को मज़बूती मिलेगी, जो मामलों को अपने हाथ में ले लेते हैं.”

जूलियन असांज को वर्ष 2019 से ब्रिटेन के बेलमार्श कारागार में हिरासत में रखा गया था, जहाँ वह अमेरिका प्रत्यर्पित ना किए जाने की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. 

समाचार माध्यमों के अनुसार, अमेरिका के साथ हुए समझौते के तहत, उन्होंने जासूसी के दोष को स्वीकार कर लेने पर सहमति जताई है, जिसके बदले में उन्हें जेल में और अधिक समय नहीं व्यतीत करना पड़ेगा.

अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने की स्थिति में उन्हें क़ैदी के तौर पर या मुक़दमे की कार्रवाई होने तक लम्बी अवधि के लिए, एकान्तवास हिरासत में रखे जाने और दोषी पाए जाने की स्थिति में उन्हें 175 वर्ष तक की सज़ा सुनाई जाने की आशंका थी.

जूलियन असांज के प्रत्यर्पण पर लम्बे समय से चल रही क़ानूनी लड़ाई के बाद, अन्तिम अपील पर सुनवाई, 20-21 फरवरी को लन्दन में उच्च न्यायालय के समक्ष हुई थी. 

इसके बाद, कुछ ही हफ़्तों पहले, लंदन की एक अदालत ने उन्हें अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने वाले आदेश के विरुद्ध अपील करने की अनुमति दे दी थी. 

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