1 फ़रवरी को म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट हुए तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं, जब म्याँमार की सेना ने देश की सत्ता पर अपना नियंत्रण स्थापित किया और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता, आंग सान सू ची समेत अन्य शीर्ष अधिकारियों को हिरासत में ले लिया था.
सैन्य तख़्तापलट के बाद से ही देश में विरोध प्रदर्शनों और हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है, मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है और हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया है
इस पृष्ठभूमि में यूएन मानवाधिकार कार्यालय के शीर्ष अधिकारी की ओर से मंगलवार को जारी वक्तव्य में कहा गया है कि विश्व भर में अनेकानेक संकटों के बीच, यह महत्वपूर्ण है कि किसी को ना भुलाया जाए.
“म्याँमार के लोग लम्बे समय से पीड़ा भोग रहे हैं. पिछले वर्ष अक्टूबर के अन्त से ही उनकी स्थिति बद से बदतर हुई है, जोकि सेना द्वारा उन्हें निशाना बनाए जाने की तिकड़मों का परिणाम है, और यह लम्बे समय से चली आ रही है.”
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सैन्य बलों और हथियारबन्द विरोधी गुटों के बीच झड़पों की वजह से बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित हुए हैं और आम नागरिक हताहत हुए हैं.
आम नागरिकों को ‘दंड’
“रणभूमि पर जिस तरह से सेना को एक के बाद दूसरा झटका लगा है, उन्होंने ताबड़तोड़ हवाई बमबारी और गोलाबारी की लहर शुरू कर दी है.”
पिछले अक्टूबर से अब तक 554 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. वर्ष 2023 में सैन्य बलों के हाथों मारे जाने वाले आम नागरिकों की संख्या 1,600 से अधिक थी, जोकि पहले के वर्ष की तुलना में लगभग 300 अधिक है.
विश्वसनीय स्रोतों के अनुसार, पिछले तीन वर्षो में 26 जनवरी तक राजनैतिक आधार पर क़रीब 26 हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें से 19 हज़ार 973 अब भी हिरासत में हैं.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने बताया कि इनमें से कई लोगों को यातना व दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई की उम्मीद नहीं है.
सैन्य बलों की हिरासत में अब तक डेढ़ हज़ार से अधिक लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है.
गोलाबारी में फँसे आम नागरिक
वोल्कर टर्क ने सचेत किया कि सैन्य तौर-तरीक़ों के ज़रिये उन आम लोगों को दंडित किए जाने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिन्हें विरोधियों को समर्थन देने के सन्देह में देखा जाता है.
“इसके परिणामस्वरूप, सेना ने नियमित रूप से आम नागरिकों व अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून के अन्तर्गत संरक्षित प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया है, विशेष रूप से चिकित्सा केन्द्रों व स्कूलों को.”
यूएन मानवाधिकार कार्यालय प्रमुख ने कहा कि म्याँमार की 74 टाउनशिप में संचार व इंटरनैट सेवाओं में आंशिक या पूर्ण व्यवधान दर्ज किया गया है, जिनमें राख़ीन प्रान्त के 17 टाउनशिप में से अधिकाँश इलाक़े हैं.
पिछले साल नवम्बर में लड़ाई फिर भड़कने के बाद से राख़ीन प्रान्त विशेष रूप से प्रभावित हुआ है, जहाँ रोहिंज्या समेत कई समुदाय पहले से ही चक्रवाती तूफ़ान के प्रभावों और सैन्य बलों द्वारा मानवीय सहायता मार्ग सीमित किए जाने की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहे थे.
रोहिंज्या समुदाय की मुश्किलें
रोहिंज्या समुदाय के गाँवों पर सैन्य बलों और अराकान आर्मी नामक गुट में गोलाबारी के बीच अनेक लोगों के हताहत होने की ख़बरें मिली हैं.
उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने ध्यान दिलाया है कि युद्धरत पक्षों को हरसम्भव सतर्कता बरतनी होगी ताकि आम लोगों व नागरिक प्रतिष्ठानों की रक्षा की जा सके.
उन्होंने बताया कि रोहिंज्या शरणार्थी, बांग्लादेश के शिविरों में गम्भीर परिस्थितियों में जीवन गुज़ार रहे हैं और उनके वापिस म्याँमार लौटने की सम्भावना फ़िलहाल क्षीण है.
इस वजह से, वे हताशा में समुद्री मार्गों से जोखिमपूर्ण यात्राएँ करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जहाँ उन्हें शरण देने या स्वागत करने के लिए बहुत कम समुदाय या बन्दरगाह ही हैं.
अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से अपील
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि म्याँमार में सैन्य शासन की जवाबदेही को तय करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को दोगुने प्रयास करने होंगे.
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के आदेश का उल्लेख किया, जिसमें रोहिंज्या समुदाय के सदस्यों की जनसंहार से रक्षा करने के लिए हरसम्भव क़दम उठाने की बात कही गई है. और साथ ही, ऐसे तथाकथित कृत्यों पर आधारित साक्ष्यों को संरक्षित करने के लिए भी उपाय किए जाने होंगे.
वोल्कर टर्क के अनुसार, मौजूदा संकट को सैन्य नेतृत्व की जवाबदेही तय करके, राजनैतिक बन्दियों की रिहाई और आम जनता के शासन को फिर से बहाल करके ही सुलटाया जा सकता है.
वोल्कर टर्क ने म्याँमार के नागरिक समाज और लोकतांत्रिक आन्दोलन के साहस और सहनसक्षमता की प्रशंसा की है. उनके अनुसार, इसमें सभी जातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व है और म्याँमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए राजनैतिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना होगा.
इस क्रम में, उन्होंने सदस्य देशों से सेना पर लक्षित प्रतिबन्ध लगाने समेत अन्य उपयुक्त क़दम उठाने का आग्रह किया, ताकि मानवाधिकार हनन मामलों की रोकथाम की जा सके. इन उपायों में हथियार बेचने, जेट ईंधन और विदेशी मुद्रा पर रोक सहित अन्य क़दम हैं.