विश्व

म्याँमार में रोहिंज्या लोगों के ख़िलाफ़ 2017 की बर्बरता दोहराए जाने का डर

पिछले चार महीनों में, रोहिंज़्या समेत हज़ारों लोग, बुथिदौंग और माउंगडौ क़स्बों पर क़ब्ज़े के लिए, नस्लीय सशस्त्र गुट – अराकान आर्मी के हमलों से बचकर अन्य स्थानों पर भाग गए हैं.

5 अगस्त को बांग्लादेश की सीमा से लगी नफ़ नदी पर हुए इस सबसे घातक हमलों में से एक में, अनेक लोग मारे गए थे. इन हमलों में सशस्त्र ड्रोन का भी उपयोग किया गया था. हालाँकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए कौन सा पक्ष ज़िम्मेदार है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को इस घटना पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा, “हज़ारों रोहिंज्या लोगों को पैदल ही भागने के लिए मजबूर किया गया है. अराकान आर्मी उन्हें बार-बार ऐसे स्थानों पर खदेड़ रही है, जहाँ वो सुरक्षित आश्रय से महरूम हैं.”

“चूँकि बांग्लादेश की ओर जाने वाली सीमा बन्द है, रोहिंज्या समुदाय के सदस्य अपने-आपको, सेना व उसके सहयोगियों तथा नस्लीय सशस्त्र गुट – अराकान आर्मी के बीच फँसा महसूस कर रहे हैं, जहाँ सुरक्षित बच निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है.”

वोल्कर टर्क ने कहा कि बारम्बार चेतावनी देने व कार्रवाई के आहवान के बावजूद जारी हिंसा को देखर ऐसा लगता है कि चारों ओर दंडमुक्ति का माहौल है और अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत, नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगातार चुनौतियाँ पेश आ रही हैं. 

उन्होंने कहा, “इस महीने, उस सैन्य अभियान के सात साल पूरे हो गए हैं, जिसकी वजह से 7 लाख लोगों को सीमा पार बांग्लादेश जाने के लिए मजबूर किया गया था. तब विश्व ने कहा था कि ऐसा “दोबारा कभी नहीं” होना चाहिए, लेकिन इसके बावजूद, हम एक बार फिर राख़ीन में हत्याएँ, विनाश और विस्थापन देख रहे हैं. 

उन्होंने कहा है कि सशस्त्र टकराव में संलग्न सभी पक्ष, रोहिंज्या व अन्य लोगों के ख़िलाफ़ हमलों की ज़िम्मेदारी से इनकार करते हुए वक्तव्य जारी कर रहे हैं. उनका बर्ताव ऐसा है मानो वो शक्तिहीन हैं और उन लोगों की रक्षा करने में असमर्थ. इससे भरोसे की सारी हदें पार हो जाती हैं.”

मानवाधिकार हनन के गम्भीर मामले

म्याँमार के राखीन प्रांत में आन्तरिक विस्थापन का शिकार एक मुस्लिम परिवार के बच्चे खेलते हुए (जनवरी 2019)

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने जो जानकारी एकत्र इकट्ठी की है उसके अनुसार सेना और राख़ीन प्रान्त पर नियंत्रण करने वाला नस्लीय सशस्त्र गुट – अराकान आर्मी दोनों ही पक्ष रोहिंज्या लोगों के ख़िलाफ़ मानवाधिकारों के गम्भीर हनन व दुर्व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसमें बिना क़ानूनी कार्रवाई के ही हत्याएँ किया जाना, सिर काटना, अपहरण, जबरन भर्ती, ड्रोन व तोपों से क़स्बों एवं गाँवों पर अंधाधुंध बमबारी तथा आगजनी की घटनाएँ शामिल हैं. 

इस तरह के हमले, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत, सभी पक्षों के दायित्वों एवं रोहिंज्या समुदाय को और अधिक नुक़सान के जोखिम से बचाने के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेशों के एकदम विपरीत हैं.

विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, युद्ध के कारण लगी चोटों के उपचार के लिए मदद माँगने आ रहे रोहिंज्या लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. इनमें से लगभग आधे बच्चे हैं. 

स्वच्छ पेयजल की कमी और बेहद बुरे हालात में रहने के कारण डायरिया होने से, बहुत लोगों की मौत होने की भी ख़बरें आई हैं. 

नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण आपूर्ति रखने वाले खाद्य गोदामों पर हमला करके, तोड़फोड़ की गई और उन्हें जला दिया गया है. हिंसा के कारण बुथिदौंग और माउंगडौ में अस्पताल बन्द कर दिए गए हैं. 

वहीं दूरसंचार बन्द होने की वजह से, पहले से ही विनाशकारी मानवीय संकट, और भी बदतर हो गया है.  

अनुपालन का अनुरोध

वोल्कर टर्क ने कहा, “राख़ीन में उजागर हो रही मानवीय त्रासदी के लिए, सेना व अराकान सेना, दोनों ही सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं. दोनों पक्षों को नागरिकों के ख़िलाफ़ हमले तुरन्त बन्द करने चाहिए, युद्ध से बचकर से भाग रहे लोगों की रक्षा करनी चाहिए और जीवन रक्षक मानवीय सहायता तक उनकी निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए.”

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ज़ोर देकर कहा कि इन अत्याचारों को रोके जाने के लिए एक स्पष्ट कार्रवाई की ज़रूरत है – ज़िम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और न्याय दिलाने के प्रयास जारी रखने चाहिए.

उन्होंने कहा, “नैतिक कर्तव्य व क़ानूनी ज़रूरत मानकर, अतीत के अपराध और भयावहताएँ दोहराए जाने से रोका जाना होगा. यह अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की ज़िम्मेदारी है, जिसमें सबसे आगे आसियान देश हैं, जिन्हें इस क्रूर लड़ाई के पीड़ितों, रोहिंज्या व अन्य नागरिकों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करने चाहिए.”

Source link

Most Popular

To Top