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म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति ‘रसातल’ में, जवाबदेही तय किए जाने की मांग

यूएन कार्यालय प्रवक्ता लिज़ थ्रोसेल और म्याँमार में मानवाधिकार मामलों के प्रमुख जेम्स रोडहेवर ने मंगलवार को जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि यह रिपोर्ट, देश में मानवाधिकारों के लिए बदतरीन स्थिति, गहराते संकट और क़ानून व्यवस्था के अभाव को रेखांकित करती है. 

म्याँमार में 1 फ़रवरी 2021 को हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद से अब तक पाँच हज़ार 350 आम नागरिकों की जान जा चुकी है और 33 लाख से अधिक विस्थापित हुए हैं. देश की क़रीब 50 फ़ीसदी आबादी निर्धनता रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रही है.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार, म्याँमार में पिछले कुछ वर्षों से जारी हिंसा, विध्वंस और अभाव का आम नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर असर हुआ है. आर्थिक व सामाजिक अधिकार कमज़ोर हुए हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिति तेज़ी से ढलान पर है.

वहीं, देश की युवा आबादी सैन्य बलों में भर्ती होने से बचने या हिंसा में शामिल ना होने के लिए अन्य देशों का रुख़ कर रही है.

रिपोर्ट बताती है कि सैन्य बलों ने तख़्तापलट के बाद से अब तक 27 हज़ार से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है. फ़रवरी 2024 में सैन्य बलों में सेवा को अनिवार्य किए जाने के बाद गिरफ़्तारियों के मामले भी उभार पर हैं. 

विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कम से कम 1,853 लोगों की हिरासत में मौत हो चुकी है, जिनमें 88 बच्चे और 125 महिलाएँ हैं.

दुर्व्यवहार, यातना मामले

इनमें से अधिकाँश मामलों में यह पुष्टि हो चुकी है कि हिरासत में दुर्व्यवहार, गहन पूछताछ और बुरे बर्ताव या फिर पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल के अभाव में इन लोगों की जान गई है.

हिरासत में बन्दियों को यातना देने और उनके साथ बुरा बर्ताव किए जाने के मामले बड़े स्तर पर सामने आए हैं, और यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने इन हनन मामलों पर जानकारी जुटाई है.

जैसे छत पर बिना भोजन व पानी के लटकाया जाना, कठोर फ़र्श पर झुकने या रेंगने के लिए मजबूर किए जाने, डराने के लिए साँप व कीड़ों का इस्तेमाल किए जाने, लोहे के डंडे, राइफ़ल के बट, चमड़े की पेटी से पिटाई करने, बिजली के झटके देने, गला घोंटने, सिगरेट, गर्म पानी से जलाने, शरीर के अंगों को काटने, खुले घावों पर जलन पैदा करने वाली सामग्री का इस्तेमाल करने समेत अन्य मामले सामने आए हैं. 

साथ ही, यौन हिंसा को अंजाम दिए जाने वाली रिपोर्ट भी सामने आई हैं.

जवाबदेही पर ज़ोर

यूएन कार्यालय ने ज़ोर देकर कहा है कि मानवाधिकार और अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून के उल्लंघन के मामलों के दोषियों की जवाबदेही तय की जानी होगी. ऐसे मामलों में दोषियों को सज़ा ना देने से, इन हनन, दुर्व्यवहार व अपराध मामलों को फिर से अंजाम देने की आशंका बढ़ेगी.

रिपोर्ट के अनुसार, म्याँमार में क़ानून के राज का सम्मान सुनिश्चित करना और न्यायिक संस्थाओं में कामकाज सुचारू रूप से जारी रखना एक विशाल चुनौती है.

इन निष्कर्षों की पृष्ठभूमि में, यूएन उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने दोहराया है कि सुरक्षा परिषद को म्याँमार में मौजूदा हालात को पूर्ण रूप से अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय तक पहुँचाना होगा.

उन्होंने हिंसा पर तत्काल रोक लगाने और मनमाने ढंग से हिरासत में रखे गए बन्दियों को बिना शर्त रिहा किए जाने की अपील की है.

वोल्कर टर्क ने कहा कि म्याँमार में नागरिक समाज और समुदाय आधारित संगठन आम नागरिकों तक अति-आवश्यक सेवाएँ पहुँचा रहे हैं, जोकि स्थानीय लोगों के भविष्य के लिए ज़रूरी है. उन्हें हरसम्भव समर्थन प्रदान किया जाना होगा.

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