म्याँमार में सैन्य बलों और विपक्षी हथियारबन्द गुटों द्वारा बड़े पैमाने पर मानवाधिकार हनन के मामलों को अंजाम दिए जाने की ख़बरें हैं, जिनमें रोहिंज्या समुदाय के लोगों की सैनिकों के तौर पर जबरन भर्ती और उनका मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किए जाने समेत अन्य आरोप हैं.
जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद ने बिना मतदान के एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें फ़रवरी 2021 में सैन्य तख़्तापलट के बाद मानवाधिकार उल्लंघन के सभी मामलों की कड़ी निन्दा की गई है.
इस प्रस्ताव में म्याँमार से सभी प्रकार की हिंसा और अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के हनन पर तुरन्त रोक लगाने, देश में सभी व्यक्तियों के मानवाधिकारों व बुनियादी स्वतंत्रता की रक्षा करने का आग्रह किया है, जिनमें रोहिंज्या मुसलमान व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय हैं.
साथ ही, देश में संकट की बुनियादी वजहों से निपटने, एक व्यावहारिक व स्थाई समाधान की तलाश करने पर बल दिया गया है. इसके तहत, राष्ट्रविहीनता का उन्मूलन करना होगा और जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव पर विराम लगाना होगा.
भयावह हिंसा
मुख्य रूप से मुसलमान रोहिंज्या समुदाय ने वर्ष 2017 से ही, म्याँमार के सैन्य बलों के हाथों भयावह हिंसा को झेला है, जिसके कारण लाखों रोहिंज्या लोगों ने जान बचाने के लिए बांग्लादेश में शरण ली, और वहाँ के शरणार्थी शिविरों में वे अब भी रह रहे हैं.
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने जनवरी 2020 में म्याँमार में रोहिंज्या के लिए हालात के विषय में अन्तरिम क़दम उठए जाने का आदेश दिया था. इसके बावजूद, महिलाओं व बच्चों समेत पूरे समुदाय को लक्षित ढंग से जान से मार दिए जाने, हवाई कार्रवाई, बमबारी, बारूदी सुरंग समेत अन्य प्रकार की ताबड़तोड़ हिंसा का सामना करना पड़ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के अनुसार, 2023 के दौरान बारूदी सुरंगों व विस्फोटक सामग्री की चपेट में आने की घटनाओं में 1,052 आम लोग हताहत हुए, जोकि 2022 में दर्ज की गई कुल घटनाओं (390) का लगभग तीन गुना है.
इनमें से 20 प्रतिशत से अधिक पीड़ित बच्चे थे.
विश्वसनीय, अन्तरराष्ट्रीय जाँच
विश्व भर में मानवाधिकारों की स्थिति पर मानवाधिकार परिषद (HRC), संयुक्त राष्ट्र का उच्चतम अन्तरसरकारी फ़ोरम है, जिसमें 47 सदस्य देश हैं.
परिषद ने म्याँमार में यौन व लिंग आधारित हिंसा, महिलाओं व बच्चों के साथ कथित दुर्व्यवहार मामलों और युद्ध अपराधों के आरोपों की अन्तरराष्ट्रीय, स्वतंत्र, निष्पक्ष व पारदर्शी जाँच कराए जाने की मांग की है.
परिषद ने दोहराया है कि इन क्रूर कृत्यों व अपराधों के दोषियों की जवाबदेही तय किया जाना अहम है, और भुक्तभोगियों के लिए क़ानूनी उपायों व न्यायिक तंत्रों के ज़रिये न्याय सुनिश्चित किया जाना होगा.
हिंसक टकराव के असर
मानवाधिकार परिषद ने चिन्ता जताई कि म्याँमार में हिंसक टकराव की आंच सीमा पार तक पहुँच सकती है. इस क्रम में, बांग्लादेश समेत अन्य सीमावर्ती देशों में मौतों व सम्पत्तियों को पहुँचे नुक़सान का उल्लेख किया गया है.
परिषद ने लड़ाई पर तत्काल रोक लगाए जाने और आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाए जाने का आग्रह किया है.
इसके समानान्तर, राष्ट्रीय स्तर पर एक समावेशी व व्यापक राजनैतिक सम्वाद व मेलमिलाप प्रक्रिया की शुरुआत की जानी होगी, और सभी जातीय समूहों की पूर्ण, अर्थपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी, जिनमें रोहिंज्या व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय, महिलाएँ, युवजन, विकलांगजन, नागरिक समाज व धार्मिक नेता हैं.
हेट स्पीच को रोकना होगा
बुधवार को पारित हुए प्रस्ताव में, यूएन परिषद ने म्याँमार से रोहिंज्या व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध घृणा भड़काने व नफ़रत भरी बोली व सन्देशों पर लगाम कसने की मांग की है. ये क़दम ऑनलाइन व ऑफ़लाइन उठाए जाने होगे, और आवश्यक क़ानूनों को लागू किया जाना अहम होगा.
परिषद ने म्याँमार से आग्रह किया है कि राख़ीन प्रान्त समेत सभी क्षेत्रों में इंटरनैट व अन्य दूरसंचार सेवाओं पर लगी पाबन्दी को वापिस लिया जाना होगा, और राय व्यक्त करने व अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए यह ज़रूरी है कि इंटरनैट व दूरसंचार सेवाओं की सुलभता सुनिश्चित की जाए.