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म्याँमार: महिलाओं व एलजीबीटी व्यक्तियों के अधिकारों पर जोखिम, समर्थन का आग्रह

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने मंगलवार को जारी अपनी रिपोर्ट, “Courage amid Crisis: Gendered impacts of the coup and the pursuit of gender equality in Myanmar”, में बताया है कि सैन्य शासन के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के ऐसे मामले सामने आए, जिनका महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी समुदायों पर भयावह असर हुआ है.

“यौन व लिंग-आधारित हिंसा का ख़तरा, एक ऐसी काली परछाई है, जोकि म्याँमार में महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों का पीछा करती है. क्रूरता व अमानवीयकरण, व्यापक स्तर पर फैली हुई उस यौन हिंसा का चेहरा हैं, जिसे हिंसक टकराव वाले क्षेत्रों में सैन्य बलों द्वारा अंजाम दिया जाता है. जाँच चौकियों पर और हिरासत वाले स्थानों पर.”

रिपोर्ट में महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों के लिए उपजे ख़तरों के प्रति सचेत किया गया है. उनकी आर्थिक स्वतंत्रता का पतन हुआ है, शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल के लिए जगह सिकुड़ी है और लम्बे समय तक विस्थापित रहने का असर हुआ है.

“देश भर में शहरों, गाँवों और विस्थापन केन्द्रों में महिलाएँ अपने परिवार का बोझ निभा रही हैं. वे स्वयं भोजन नहीं कर रही हैं, ताकि उनके बच्चे खाना खा सकें. घरों में नई ज़िम्मेदारियाँ संभालते हुए हिंसक व उथलपुथल भरे माहौल में अपने परिवारों को सुरक्षित बनाए रखने में संघर्ष कर रही हैं.”

इस पृष्ठभूमि में, अनेक महिलाएँ व लड़कियाँ, तस्करी, यौन शोषण व कम उम्र में ही शादी कराए जाने का शिकार हो रही हैं.

रोहिंज्या महिलाओं व लड़कियों के लिए हालात विशेष रूप से ख़राब हैं, जिन्हें भेदभाव, सुरक्षा जोखिमों की कई परतों से जूझना पड़ता है. उनके नागरिकता अधिकारों और बुनियादी अधिकारों को ख़ारिज किया गया है, और उनके अपने समुदाय में भी भेदभावपूर्ण विश्वास व तौर-तरीक़े प्रचलित हैं.

‘प्रेरणादायक स्रोत’

रिपोर्ट बताती है कि इन चुनौतियों के बावजूद, महिलाओं ने क्रांतिकारी मुहिम में अग्रिम मोर्चे पर अहम भूमिका निभाई है, ताकि समानता, न्याय और ग़ैर-भेदभाव की नींव पर भविष्य में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित की जा सके.

महिला व एलजीबीटी समुदाय के नेता अर्थपूर्ण राजनैतिक भागीदारी के लिए अथक रूप से प्रयास कर रहे हैं, और उन जवाबदेही उपायों को साहसिक ढंग से तैयार कर रहे हैं, जिनके ज़रिये यौन और लिंग-आधारित हिंसा के दोषियों को कटघरे में खड़ा किया जा सकेगा.

टॉम एंड्रयूज़ ने कहा कि इन महिलाओं व एलजीबीटी नेताओं के साहस, सहनसक्षमता और दृढ़ता, प्रेरणादायक है, जो एक क्रांति के भीतर क्रांति को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि पितृसत्तात्मक वर्गीकरण को मिटाना और भावी पीढ़ियों के लिए लैंगिक समानता सुनिश्चित करना सम्भव हो सके.

अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह

टॉम एंड्रयूज़ ने आगाह किया है कि सैन्य नेतृत्व ने महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के साथ काम करने वाले संगठनों को ख़त्म करने के लिए एक समन्वित मुहिम चलाई है.

इन मुद्दों पर सक्रिय पैरोकारों को गिरफ़्तार कर लिए जाने, जेल में बन्दी बनाने के ख़तरों का निरन्तर सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से कुछ कार्यकर्ता अब निर्वासन में रहकर अपना काम कर रहे हैं.

“महिलाओं व एलजीबीटी नेताओं को निशाना बनाते हुए द्वेषपूर्ण मुहिम चलाते हुए हिंसक व यौन धमकियाँ दी जाती हैं.

इसके मद्देनज़र, उन्होंने अपने वक्तव्य में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि स्थानीय स्तर पर नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर महिलाओं, लड़कियों और एलजीबीटी लोगों के लिए समर्थन बढ़ाया जाना होगा.

यह ज़रूरी है कि यौन व लिंग-आधारित हिंसा का शिकार बनने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए, और उनके लिए सहायता धनराशि की व्यवस्था हो.

विशेष रैपोर्टेयर ने देशों की सरकारों और दानदाताओं से अपील की है कि शासन व्यवस्था के उभरते हुए ढाँचों, जातीय प्रतिरोध संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि महिलाओं, लड़कियों व एलजीबीटी व्यक्तियों के विरुद्ध हुए अपराधों की जवाबदेही तय की जा सके. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

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