31 मार्च 2017 से पहले मॉरीशस फंड के जरिये भारत में होने वाले निवेश को टैक्स संबंधी अतिरिक्त जांच से गुजरना पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मॉरीशस सरकार ने भारत-मॉरीशस टैक्स समझौते में हाल में बदलाव किया है और इस वजह से ऐसा होगा। पिछले हफ्ते मॉरीशस की कैबिनेट ने भारत के साथ हुए डबल टैक्सेशन अवॉयडेंस एग्रीमेंट (DTAA) में संशोधन पर सहमति जताई थी। इसका मकसद अंतर-सरकारी संगठन इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (OECD) के मानकों का पालन सुनिश्चित करना है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि रेगुलेटरी बदलावों के लागू होने की वजह से तय समयसीमा से पहले भारत में निवेश करने वाले मॉरीशस के फंडों को ठोस ‘सबूत’ पेश करने होंगे। साथ ही, इन फंडों को यह भी बताना पड़ेगा कि मॉरीशस को ठिकाने के तौर पर क्यों चुना गया और क्या इन फंडों का उस मुल्क में वाकई में ऑपरेशन था। एक सीनियर टैक्स एक्सपर्ट ने बताया कि अगर ये फंड ठोस ‘सबूत’ मुहैया कराने में नाकाम रहते हैं, तो भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स लागू होगा।
GAAR से पहले टैक्स समझौते का फायदा उठाने के लिए किसी भी ठोस सबूत की जरूरत नहीं थी। साल 2017 में भारत में फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट (FPI) के मामले में मॉरीशस का स्थान दूसरे नंबर पर था। रिजर्व बैंक के मुताबिक, वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2018 के दौरान मॉरीशस, भारत में फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (FDI) का सबसे प्रमुख स्रोत था।