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मु्स्लिमों की कट्टर दुश्मन से मुस्लिमों के सपोर्ट तक, ऐसे बदलती गई Shiv Sena की राजनीति

मु्स्लिमों की कट्टर दुश्मन से मुस्लिमों के सपोर्ट तक, ऐसे बदलती गई Shiv Sena की राजनीति

Shiv Sena & Muslims: वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव के समय दक्षिण मुंबई के नागपाड़ा इलाके में अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा शकील के गुर्गों ने सलीम बडगुजर की हत्या कर दी। उनकी गलती बस यही थी कि उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाके नागपाड़ा में शिव सेना की शाखा खोलने का साहस किया और भगवा पार्टी के उम्मीदवार मोहन रावले की वकालत की। सलीम ने मुस्लिम विरोधी समझे जाने वाली पार्टी के साथ संबंध बनाया और असमय ही उन्हें अपनी जिंदगी गंवानी पड़ी। यह घटना 1992-1993 के दंगों के करीब पांच साल बाद की है। एक समय नागपाड़ा अंडरवर्ल्ड गिरोह का गढ़ माना जाता था और शिव सेना जैसी कट्टरपंथी हिंदू पार्टी का यहां आना अंडरवर्ल्ड को नहीं भा रहा था। हालांकि अब की बात करें तो समय काफी बदल चुका है और अब शिव सेना का नागपाड़ा में ऑफिस है। माहौल भी ऐसा हो चुका है कि यहां के लोगों की पार्टी के प्रति शत्रुता कम दिख रही है।

मराठी की वकालत करते हुए हिंदुत्व के मंच पर पहुंची शिवसेना

बाल ठाकरे (Bal Thackeray) ने 60 के दशक में शिवसेना की शुरुआत की थी। शुरुआत में इसने मराठी हितों की वकालत करते हुए शिवसेना ने दक्षिण भारतीयों और गुजरातियों को निशाना बनाया। शिवसेना ने इनके खिलाफ हिंसक रास्ता अपनाया और यह धीरे-धीरे लोकप्रिय होती गई। हालांकि धीरे-धीरे शिवसेना को समझ आया कि मुंबई और ठाणे से बाहर अपना विस्तार करने के लिए व्यापर विचारधारा की जरूरत है।

1980 के दशक की शुरुआत में शिवसेना में अहम बदलाव आया। भाजपा के साथ गठबंधन करके यह हिंदुत्व के रास्ते पर चल पड़ी। 1984 के भिवंडी दंगों जैसी घटनाओं में शिवसेना की भागीदारी और राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए उसके समर्थन ने एक उग्र हिंदू संगठन के रूप में उसकी छवि को मजबूत किया। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समर्थन में बाल ठाकरे के भड़काऊ बयानों ने तनाव को और बढ़ा दिया। आरोप लगे कि 1992-1993 के दंगों के दौरान मुसलमानों को निशाना बनाया गया। दंगों की जांच के लिए गठित श्रीकृष्ण आयोग ने कहा कि बाल ठाकरे एक सैन्य जनरल की तरह अपने शिवसैनिकों को मुसलमानों पर हमला करने के आदेश दे रहे थे।

फिर कैसे बदला शिवसेना का मिजाज

वर्ष 2003 में शिवसेना का मिजाज बदलना शुरू हुआ जब उद्धव ठाकरे पार्टी के नेता बने। उन्होंने उदारवादी विचारधारा अपनाई। उन्होंने भड़काऊ बयानबाजी से परहेज किया। 2019 में जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तो उनकी सरकार कांग्रेस और एनसीपी जैसी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन करके बनी। उद्धव ठाकरे ने महा विकास अघाड़ी गठबंधन की प्रस्तावना पर हस्ताक्षर करके सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, जिसमें “धर्मनिरपेक्ष” शब्द का दो बार उल्लेख किया गया था। इससे यह चर्चा शुरू हो गई कि पहले की हिंदुत्ववादी शिव सेना अब एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। उन्होंने एक मुस्लिम नेता अब्दुल सत्तार को पार्टी में और बाद में अपने मंत्रिमंडल में भी शामिल किया। हालांकि अब्दुल सत्तार जून 2022 में अलग हो गए और एकनाथ शिंदे खेमे में शामिल हो गए।

कोरोना महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे ने हर समुदाय के लिए राहत प्रयास किए जिसका प्रशंसा गैर-महाराष्ट्रियन और मुस्लिम इलाकों से भी होने लगी। इसके अलावा उद्धव महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरे हैं और इसने उनकी पार्टी को मुस्लिम समुदाय के काफी करीब ला दिया है। हालांकि अब सवाल ये उठता है कि क्या इस करीबी का फायदा चुनावों में भी मिलेगा?

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