2024 के मानवाधिकार दिवस की थीम है, ‘हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, बिल्कुल अभी.’ इस विषय से स्पष्ट होता है कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए, मानवाधिकारों की प्रासंगिकता निरन्तर बनी हुई है.
इस वर्ष, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) का उद्देश्य, मानवाधिकारों पर लोगों की सोच बदलना और उन्हें कार्रवाई के लिए प्रेरित करना है.
यहाँ मानवाधिकारों के बारे में पाँच ऐसे तथ्य दिए जा रहे हैं, जो सभी के लिए जानने ज़रूरी है:
1. मानवाधिकार सार्वभौमिक और अविभाज्य हैं
मानवाधिकार किन्हीं देशों द्वारा प्रदान नहीं किए जाते; मानव होने के नाते यह हर जगह, हर किसी व्यक्ति का हक़ हैं. यह अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता या मान्यताओं से परे हैं और सर्वजन के लिए समानता और गरिमा सुनिश्चित करते हैं.
इनमें मूलभूत अधिकार, जैसेकि सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा के अनुच्छेद 3 में उल्लिखित जीवन का अधिकार, तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं तक पहुँच के अधिकार शामिल हैं, जो मानव कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हैं.
सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (UDHR) एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसका सबसे अधिक भाषाओं में अनुवादकिया गया है. यह 500 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है.
मानवाधिकार अविच्छिन्न भी हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ विशेष क़ानूनी परिस्थितियों के अलावा इन्हें छीना नहीं जा सकता, जैसेकि उचित क़ानूनी प्रक्रिया के बाद कारावास की सज़ा होने पर.
2. सर्वजन के मानवाधिकार समान, अविभाज्य और परस्पर निर्भर
मानवाधिकार अविभाज्य और परस्पर निर्भर होते हैं. मतलब यह कि किसी एक अधिकार की पूर्ति, अक्सर किसी अन्य अधिकार से जुड़ी होती है.
उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार, चुनाव में मतदान करने जैसे राजनैतिक अधिकारों का उपयोग करने के लिए बेहद ज़रूरी है. इसी तरह, स्वास्थ्य का अधिकार और स्वच्छ जल तक पहुँच का अधिकार, जीवन एवं गरिमा के अधिकार के लिए अनिवार्य हैं.
इन अधिकारों के परस्पर सम्बन्ध को समझना, जटिल वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए अति आवश्यक है.
किसी एक क्षेत्र में कारर्वाई करने से अन्य क्षेत्रों में भी प्रगति हो सकती है, जैसेकि लैंगिक समानता या ग़रीबी उन्मूलन. वहीं, किसी एक अधिकार की उपेक्षा करने से, अनगिनत तरीक़ों से व्यक्तियों एवं समुदायों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है.
3. मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा: विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण मोड़
मानवाधिकार केवल अमूर्त विचार नहीं हैं; विभिन्न घोषणाओं, सन्धियों और विधेयकों के ज़रिए इन्हें व्यावहारिक मानकों में बदला गया है.
द्वितीय विश्व युद्ध के अत्याचारों से जन्में, सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (UDHR) को 1948 में अपनाया गया था. यह सार्वभौमिक मानवाधिकारों पर विश्व का पहला व्यापक वक्तव्य था.
अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून की बुनियाद के रूप में, UDHR के 30 अनुच्छेद, समानता, स्वतंत्रता व यातना से सुरक्षा जैसी प्रमुख स्वतंत्रताओं को परिभाषित करते हैं. यह घोषणापत्र, 80 से अधिक अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों का प्रेरणा स्रोत बना है.
नागरिक और राजनैतिक अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीय वाचा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीयवाचा के साथ मिलकर, इससे अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक का निर्माण किया गया है.
4. देशों का दायित्व होता है और व्यक्तियों के अधिकार
सभी देशों ने नौ प्रमुख मानवाधिकार सन्धियों में से कम से कम एक, और उनके वैकल्पिक प्रोटोकॉल में से एक की पुष्टि की है.मतलब यह कि देशों पर अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत मानवाधिकारों का सम्मान, सुरक्षा और पूर्ति करने की ज़िम्मेदारी है.
साथ ही, ये सन्धियाँ, व्यक्तियों एवं समुदायों को अपने अधिकारों की पूर्ति की मांग करने तथा बदलाव लाने की वकालत करने का ढाँचा प्रदान करती हैं.
नीतिगत बदलावों के लिए युवा-नेतृत्व वाले Fridays for the Future जैसे ज़मीनी स्तर के आन्दोलन दिखाते हैं कि किस तरह मानवाधिकार, जलवायु न्याय के आह्वान को मज़बूत कर सकते हैं.
5. मानवाधिकार दिवस: कार्रवाई का मंच
सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (UDHR) अपनाए जाने के उपलक्ष्य में, हर वर्ष मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. यद दिवस हमें मानवाधिकारों के क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों व मौजूदा संघर्षों पर चिन्तन करने का अवसर प्रदान करता है.
मानवाधिकार दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने अपने वीडियो सन्देश में कहा, “मानवाधिकार लोगों के बारे में हैं. यह आपके व आप सभी के जीवन से सम्बन्धित है: आपकी ज़रूरतों, इच्छाओं व डर के बारे में तथा वर्तमान एवं भविष्य के लिए आपकी उम्मीदों के बारे में है.”
इस वर्ष UDHR की 76वीं वर्षगाँठ पर इस बात पर बल दिया गया है कि ख़ासतौर पर संकट के समय में, मानवाधिकार, एक निवारक, सुरक्षात्मक तथा परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में कार्य कर सकते हैं.