हर वर्ष 26 सितम्बर को परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन के लिए अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है और इस अवसर पर एक उच्चस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी एंतोनियो गुटरेश ने अपने सम्बोधन में कहा कि मौत के इन उपकरणों के लिए हमारी दुनिया में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने आगाह किया कि शीत युद्ध के बदतरीन दिनों के बीत जाने के बाद अब फिर परमाणु हथियारों की स्याह छाया नज़र आ रही है.
महासचिव ने चिन्ता जताई कि परमाणु मुद्दे पर तनातनी और बयानबाज़ी हो रही है और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के लिए धमकियाँ दी जा रही हैं. हथियारों की होड़ फिर से भड़कने की आशंका है.
परमाणु हथियारों के इस्तेमाल, प्रसार और परीक्षण के विरुद्ध दशकों पहले स्थापित किए मानदंडों का क्षरण हो रहा है.
अतीत से सबक़
यूएन प्रमुख ने बताया कि उन्होंने सीधे तौर पर हिबाकुशा – 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी शहरों पर परमाणु हमलों में जीवित बचे व्यक्तियों – के अनुभवों को सुना है.
ये स्पष्टता से ध्यान दिलाता है कि परमाणु मार्ग पर आगे बढ़ने का अन्त किस तरह से हो सकता है.
“इसके बावजूद, क़रीब 80 वर्ष बाद भी, परमाणु हथियार सम्पन्न देश पासा फेंक रहे हैं, निरस्त्रीकरण उपायों का विरोध कर रहे हैं और ये मानकर चल रहे हैं कि किसी तरह, उनका भाग्य हमेशा उनका साथ देता रहेगा.”
‘भविष्य के साथ जुआ ना खेलें’
यूएन प्रमुख ने परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों से अपील की है कि उन्हें मानवता के भविष्य के साथ जुआ खेलना बन्द करना होगा, संकल्प निभाने होंगे और निरस्त्रीकरण दायित्वों को निभाना होगा.
महासचिव ने कहा कि जब तक परमाणु हथियारों का उन्मूलन नहीं हो जाता है, इन देशों को प्रतिबद्धता दर्शानी होगी कि इन्हें किसी भी हालात में इस्तेमाल में नहीं लाया जाएगा.
उन्होंने रूस और अमेरिका से अपील की है कि परमाणु हथियारों में कमी लाने की प्रक्रिया की ओर लौटना होगा, और अन्य देशों को फिर ये रास्ता अपनाना होगा.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि निरस्त्रीकरण व अप्रसार, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, और देशों को इस मुद्दे की तात्कालिकता को समझना होगा.
उन्होंने बताया कि भविष्य-सम्मेलन के दौरान वैश्विक निरस्त्रीकरण तंत्र में फिर से ऊर्जा भरने का संकल्प लिया गया है, ताकि दुनिया को परमाणु हथियार उन्मूलन की ओर ले जाया जा सके.